Bharatiya Sahitya : Asha Aur Astha (HB)
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सांस्कृतिक और भाषाई एकता के उद्देश्य से सृजित एक विशिष्ट कृति। व्यापक भाषिक विविधता के बावजूद भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक चेतना मूलतः एक है। यह पुस्तक इस सार्वकालिक सत्य को नए ढंग से प्रमाणित करती है।
दो खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड ‘आशा’ में हिन्दी के उत्थान में अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका के साथ अन्य भाषाओं के साहित्य के माध्यम से उन प्रदेशों की भाषा, संस्कृति व इतिहास से परिचय कराया गया है और यह स्थापित किया गया है कि साहित्य का सन्देश एक ही होता है—मानवीय संस्कृति को जाग्रत कर मानव को संवेदना से परिपूर्ण बनाना।
इस खंड में उल्लिखित लेखकों तथा विश्व-शान्ति के सन्दर्भ में भारतीय साहित्य व दर्शन के विवेचन से परिचित कराने के साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, तमिल के कवि सुब्रह्मण्य भारती और मलयालम के कवि वल्लत्तोल के काव्य और उनके विचारों से भी अवगत कराया गया है।
दूसरे खंड ‘आस्था’ में विभिन्न भाषाओं—असमिया, बांग्ला, डोगरी, अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल व उर्दू के शीर्षस्थ साहित्यकारों से भेंटवार्ताएँ दी गई हैं। इन भेंटवार्ताओं के माध्यम से हमें साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व से ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं तथा तत्कालीन समाज की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का भी पता चलता है।
सांस्कृतिक और भाषाई एकता के उद्देश्य से सृजित एक विशिष्ट कृति। व्यापक भाषिक विविधता के बावजूद भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक चेतना मूलतः एक है। यह पुस्तक इस सार्वकालिक सत्य को नए ढंग से प्रमाणित करती है।
दो खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड ‘आशा’ में हिन्दी के उत्थान में अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका के साथ अन्य भाषाओं के साहित्य के माध्यम से उन प्रदेशों की भाषा, संस्कृति व इतिहास से परिचय कराया गया है और यह स्थापित किया गया है कि साहित्य का सन्देश एक ही होता है—मानवीय संस्कृति को जाग्रत कर मानव को संवेदना से परिपूर्ण बनाना।
इस खंड में उल्लिखित लेखकों तथा विश्व-शान्ति के सन्दर्भ में भारतीय साहित्य व दर्शन के विवेचन से परिचित कराने के साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, तमिल के कवि सुब्रह्मण्य भारती और मलयालम के कवि वल्लत्तोल के काव्य और उनके विचारों से भी अवगत कराया गया है।
दूसरे खंड ‘आस्था’ में विभिन्न भाषाओं—असमिया, बांग्ला, डोगरी, अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल व उर्दू के शीर्षस्थ साहित्यकारों से भेंटवार्ताएँ दी गई हैं। इन भेंटवार्ताओं के माध्यम से हमें साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व से ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं तथा तत्कालीन समाज की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का भी पता चलता है।
About Author
आरसु
जन्म : 1950
मातृभाषा : मलयालम
हिन्दी में उच्च शिक्षा कालीकट विश्वविद्यालय, केरल में; ‘स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यास पर विदेशी संस्कृति और चिन्तन का प्रभाव’ विषय पर शोध, पत्रकारिता और अनुवाद में डिप्लोमा, 1977 से हिन्दी प्राध्यापन। हिन्दी विभाग, कालीकट विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष रहते सेवानिवृत्त।
प्रमुख हिन्दी कृतियाँ : ‘साहित्यानुवाद : संवाद और संवेदना’, ‘स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यास’, ‘मलयालम
साहित्य : परख और पहचान’, ‘भारतीय भाषाओं के पुरस्कृत साहित्यकार’, ‘अनुवाद : अनुभव और अवदान’, ‘हिन्दी साहित्य : सरोकार और साक्षात्कार’, ‘मलयालम के महान कथाकार’, ‘केरल : कला, साहित्य और संस्कृति’, ‘भारतीय साहित्य : ऊर्जा और उन्मेष’, ‘एक अनुवादक का यअलबम’ आदि।
कई हिन्दी पत्रिकाओं के मलयालम विशेषांकों के अतिथि सम्पादक; भारत सरकार, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित कई संस्थाओं के राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित, जापान के चार विश्वविद्यालयों में भारतीय साहित्य पर व्याख्यान (2002), केरल हिन्दी परिषद्, गांधी अध्ययन पीठ, भाषा समन्वय वेदी के अध्यक्ष रहे।
हिन्दी और मलयालम में अनेक कृतियाँ प्रकाशित।
ई-मेल : arsusaketh@yahoo.com
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