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Baqi Itihas (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Badal Sarkar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Badal Sarkar
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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एक इतिहास वह है जिसे राजा–महाराजा, शासक शक्तियाँ और मुख्यधारा के नायक बनाते हैं; इसके बरअक्स एक दूसरा इतिहास भी होता है। इस इतिहास में शामिल होते हैं वे तमाम बेचेहरा लोग जिनके कन्धों से होकर नायकों के विजय–मत्त घोड़े अपने झंडे फहराते हैं। मसलन, सीतानाथ जो इस नाटक का ‘नायक नहीं’ है। वह इतिहास के पिछवाड़े पड़े लाखों औसत जनों की तरह का ही एक शख़्स है, जिनका नाम कहीं दर्ज नहीं होता। लेकिन सीतानाथ इसी व्यर्थता–बोध के चलते आत्महत्या करता है और एक स्थानीय अख़बार में एक–कॉलमी ख़बर बनकर उभरता है। शरद जो ख़ुद भी ‘नायक नहीं’ है, अपनी लेखिका पत्नी वासन्ती के साथ मिलकर उस आत्महत्या पर एक कहानी गढ़ने की कोशिश करता है, लेकिन असफल होता है, और अन्त में पाता है कि वह भी सीतानाथ की ही तरह ‘बाक़ी इतिहास’ का एक अर्द्ध–नायक भर है जिसके सामने न जीने की वजह मौजूद है, न मरने की।
मध्यवर्ग की इसी उबाऊ और दमघोंटू दैनिकता का विश्लेषण ‘बाक़ी इतिहास’ अपने बहुस्तरीय शिल्प के माध्यम से करता है। देश के कोने–कोने में सैकड़ों बार सफलतापूर्वक मंचित हो चुके इस नाटक का विषय आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना तीन दशक पहले था।

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Description

एक इतिहास वह है जिसे राजा–महाराजा, शासक शक्तियाँ और मुख्यधारा के नायक बनाते हैं; इसके बरअक्स एक दूसरा इतिहास भी होता है। इस इतिहास में शामिल होते हैं वे तमाम बेचेहरा लोग जिनके कन्धों से होकर नायकों के विजय–मत्त घोड़े अपने झंडे फहराते हैं। मसलन, सीतानाथ जो इस नाटक का ‘नायक नहीं’ है। वह इतिहास के पिछवाड़े पड़े लाखों औसत जनों की तरह का ही एक शख़्स है, जिनका नाम कहीं दर्ज नहीं होता। लेकिन सीतानाथ इसी व्यर्थता–बोध के चलते आत्महत्या करता है और एक स्थानीय अख़बार में एक–कॉलमी ख़बर बनकर उभरता है। शरद जो ख़ुद भी ‘नायक नहीं’ है, अपनी लेखिका पत्नी वासन्ती के साथ मिलकर उस आत्महत्या पर एक कहानी गढ़ने की कोशिश करता है, लेकिन असफल होता है, और अन्त में पाता है कि वह भी सीतानाथ की ही तरह ‘बाक़ी इतिहास’ का एक अर्द्ध–नायक भर है जिसके सामने न जीने की वजह मौजूद है, न मरने की।
मध्यवर्ग की इसी उबाऊ और दमघोंटू दैनिकता का विश्लेषण ‘बाक़ी इतिहास’ अपने बहुस्तरीय शिल्प के माध्यम से करता है। देश के कोने–कोने में सैकड़ों बार सफलतापूर्वक मंचित हो चुके इस नाटक का विषय आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना तीन दशक पहले था।

About Author

बादल सरकार

जन्म : 1925 में।

उनके बिना नाटकों की चर्चा करना बेमानी है। मूल बंगाली में लिखे होने के बावजूद उनके दर्जनों नाटक उसी तन्मयता के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित हुए और खेले जाते रहे हैं।

प्रकाशन : ‘एवम् इन्द्रजित्’, ‘पगला घोड़ा’, ‘बड़ी बूआजी’, ‘वल्लभपुर की रूप कथा’, ‘राम-श्याम जादू’, ‘कवि कहानी’, ‘अबुहसन’, ‘सगीना महतो’, ‘स्पार्टाकस’ तथा ‘सारी रात’ (सभी नाटक)। ‘एवम् इन्द्रजित्’ तथा ‘बाक़ी इतिहास’ सहित कई नाटक मराठी, गुजराती, कन्नड़, मणिपुरी, असमि‍या, पंजाबी, हिन्दी तथा अंग्रेज़ी में अनूदित तथा मंचित।

सम्मान : संगीत नाटक अकादमी का ‘राष्ट्रपति सम्मान’, ‘नेहरू फ़ैलोशिप’ आदि।

नाट्य समूह ‘आँगन मंच’ से सम्बद्ध रहे।

निधन : 2011

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