Anand Raghunandan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
महाराजा विश्वनाथ सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
महाराजा विश्वनाथ सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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आनन्द रघुनन्दन –
1830 ई. के पूर्व या उसके आसपास विश्वनाथ सिंह ने हिन्दी में आनन्द रघुनन्दन नाटक की रचना की थी, जब वे युवराज थे। इसके रचनाकाल का उल्लेख नाटककार ने कहीं नहीं किया है।
संस्कृत का आनन्द-रघुनन्दन-नाटकम् हिन्दी में विरचित आनन्द रघुनन्दन नाटक का अनुवाद नहीं है। किन्तु दोनों की कथावस्तु एक ही है। अंकों और दृश्यों में एकरूपता है, समानता है। संवादों में भी यत्र-तत्र समानता है। हिन्दी के संवादों में यत्र-तत्र फ़ारसी, मराठी, अरबी, बांग्ला, भोजपुरी, मारवाड़ी और अंग्रेज़ी भाषाओं के भी प्रयोग मिलते हैं। किन्तु इसके संस्कृत रूप में मात्र संस्कृत भाषा ही है। प्राकृत भाषा के संवाद, गीतों की ताल-धुन तथा ‘प्रविशति’, ‘निष्क्रान्तः’ आदि रंगमंचीय निर्देश दोनों नाटकों में समान ही हैं। पूर्ववर्ती संस्कृत नाटकों की परम्परा में अद्भुत रस को विशेष प्रश्रय प्राप्त हुआ है। आनन्दरघुनन्दन नाटकम् भी इस तथ्य की पुनरावृत्ति करता है।

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Description

आनन्द रघुनन्दन –
1830 ई. के पूर्व या उसके आसपास विश्वनाथ सिंह ने हिन्दी में आनन्द रघुनन्दन नाटक की रचना की थी, जब वे युवराज थे। इसके रचनाकाल का उल्लेख नाटककार ने कहीं नहीं किया है।
संस्कृत का आनन्द-रघुनन्दन-नाटकम् हिन्दी में विरचित आनन्द रघुनन्दन नाटक का अनुवाद नहीं है। किन्तु दोनों की कथावस्तु एक ही है। अंकों और दृश्यों में एकरूपता है, समानता है। संवादों में भी यत्र-तत्र समानता है। हिन्दी के संवादों में यत्र-तत्र फ़ारसी, मराठी, अरबी, बांग्ला, भोजपुरी, मारवाड़ी और अंग्रेज़ी भाषाओं के भी प्रयोग मिलते हैं। किन्तु इसके संस्कृत रूप में मात्र संस्कृत भाषा ही है। प्राकृत भाषा के संवाद, गीतों की ताल-धुन तथा ‘प्रविशति’, ‘निष्क्रान्तः’ आदि रंगमंचीय निर्देश दोनों नाटकों में समान ही हैं। पूर्ववर्ती संस्कृत नाटकों की परम्परा में अद्भुत रस को विशेष प्रश्रय प्राप्त हुआ है। आनन्दरघुनन्दन नाटकम् भी इस तथ्य की पुनरावृत्ति करता है।

About Author

महाराजा विश्वनाथ सिंह - महाराजा विश्वनाथ सिंह रीवा के विद्यार्थी और भक्त नरेश तथा प्रसिद्ध कवि महाराज रघुराज सिंह के पिता थे। सम्वत् 1778 से लेकर 1797 तक रीवा की गद्दी पर रहे। जिस तरह वे ईश्वर की भक्ति के लिए जाने जाते थे उसी तरह ही काव्य रचना में भी सिद्धहस्त थे। यद्यपि वे राम के परम उपासक थे लेकिन कुल की परम्परा के अनुसार निर्गुण सन्त की वाणी का भी आदर करते थे। ब्रज भाषा में नाटक लिखने का श्रेय इन्हें ही जाता है। इस दृष्टि से महाराजा विश्वनाथ सिंह द्वारा रचित नाटक 'आनन्द रघुनन्दन' साहित्य के परिप्रेक्ष्य से विशेष महत्व रखता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने इस नाटक को हिन्दी भाषा का प्रथम नाटक माना है। यद्यपि इसमें पदों की प्रचुरता है लेकिन संवाद ब्रजभाषा में है। इस नाटक में अंक विधान और पात्र विधान भी है। हिन्दी के प्रथम नाटककार के रूप महाराजा विश्वनाथ सिंह चिरस्मरणीय हैं। सम्पादक - रामनिरंजन परिमलेन्दु - जन्म: 24 अगस्त, 1935। बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) से प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त। लेखन कार्य: 1953 से अब तक भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सहस्राधिक रचनाओं का प्रकाशन हुआ। भारतेन्दु काल के भूले-बिसरे कवि और उनका काव्य, भारतेन्दु काल का अल्पज्ञात हिन्दी गद्य साहित्य आदि अनेक कालजयी ग्रन्थों के मान्य लेखक। हिन्दी साहित्य का इतिहास विशेषतया उन्नीसवीं शताब्दी का सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य, हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास, देवनागरी लिपि आन्दोलन का इतिहास, राष्ट्रलिपि, उन्नीसवीं शताब्दी के हिन्दी गद्य की विभिन्न विधाएँ, हिन्दी के आरम्भिक उपन्यास, भारत में सार्वजनीन लिपि की अवधारणा का इतिहास और उसमें हिन्दीतर भाषियों का योगदान। हिन्दी साहित्य के इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ने हेतु सक्रिय।

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