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Abbu Ne Kaha Tha
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
चंद्रकांता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
चंद्रकांता
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹195 ₹194
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ISBN:
SKU
9788119014828
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
हिन्दी की प्रसिद्ध कथाकार चन्द्रकान्ता की कहानियाँ कश्मीर पर केन्द्रित न हों, ऐसा सम्भव नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे सिर्फ़ कश्मीरियों के दुःख-दर्द का बयान करती हैं, उनकी कहानियाँ चेतना के कई रूपों को अनावृत कर विस्तृत आयाम देती हैं। वे उत्तर- -आधुनिकता के विश्वव्यापी संकटों पर भी मुखर रही हैं ।
इन कहानियों में जहाँ भूमण्डलीकरण की अन्धी दौड़ में बहुत ज़्यादा बटोरने की ख़्वाहिशों में अपनों से कटने और सम्बन्धों के करुण क्षय की व्यथा है वहीं एक ऐसी आत्मीय छुअन भी है, जो अन्तर्मन के द्वन्द्वभरे सन्ताप की प्रतीति कराती है।
स्वभाव से संवेदनशील होने के नाते चन्द्रकान्ता अपनी इन रचनाओं में लगातार उन प्रवृत्तियों से जूझती हैं जो मनुष्य को आतंक के तहखाने में क़ैद करती हैं और लगातार पाशविकता में लिप्त रहती हैं। वे उन बिन्दुओं को भी चिह्नित करती हैं, जिनके ख़तरों को समझकर मनुष्यता को बोझिल होने से बचाया जा सकता है; आत्मीयता और करुणा का स्पर्श दिया जा सकता है। लेखिका की यह चिन्ता है कि लड़ाइयाँ लड़ते-लड़ते कहीं हम प्यार की भाषा न भूल जायें ।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रस्तुत है चन्द्रकान्ता का यह सशक्त कहानी-संग्रह — अब्बू ने कहा था।
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Description
हिन्दी की प्रसिद्ध कथाकार चन्द्रकान्ता की कहानियाँ कश्मीर पर केन्द्रित न हों, ऐसा सम्भव नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे सिर्फ़ कश्मीरियों के दुःख-दर्द का बयान करती हैं, उनकी कहानियाँ चेतना के कई रूपों को अनावृत कर विस्तृत आयाम देती हैं। वे उत्तर- -आधुनिकता के विश्वव्यापी संकटों पर भी मुखर रही हैं ।
इन कहानियों में जहाँ भूमण्डलीकरण की अन्धी दौड़ में बहुत ज़्यादा बटोरने की ख़्वाहिशों में अपनों से कटने और सम्बन्धों के करुण क्षय की व्यथा है वहीं एक ऐसी आत्मीय छुअन भी है, जो अन्तर्मन के द्वन्द्वभरे सन्ताप की प्रतीति कराती है।
स्वभाव से संवेदनशील होने के नाते चन्द्रकान्ता अपनी इन रचनाओं में लगातार उन प्रवृत्तियों से जूझती हैं जो मनुष्य को आतंक के तहखाने में क़ैद करती हैं और लगातार पाशविकता में लिप्त रहती हैं। वे उन बिन्दुओं को भी चिह्नित करती हैं, जिनके ख़तरों को समझकर मनुष्यता को बोझिल होने से बचाया जा सकता है; आत्मीयता और करुणा का स्पर्श दिया जा सकता है। लेखिका की यह चिन्ता है कि लड़ाइयाँ लड़ते-लड़ते कहीं हम प्यार की भाषा न भूल जायें ।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रस्तुत है चन्द्रकान्ता का यह सशक्त कहानी-संग्रह — अब्बू ने कहा था।
About Author
चन्द्रकान्ता
जन्म : 3 सितम्बर 1938 को श्रीनगर (कश्मीर) में ।
शिक्षा : एम. ए. ।
प्रकाशित रचनाएँ : दस कहानी-संग्रह - सलाखों के पीछे, ग़लत लोगों के बीच, पोशनूल की वापसी, दहलीज़ पर न्याय, ओ सोनकिसरी, सूरज उगने तक, कोठे पर कागा, काली बर्फ़, कथा नगर, और बदलते हालात में। सात उपन्यास—अर्थान्तर, अन्तिम साक्ष्य, बाक़ी सब ख़ैरियत है, ऐलान गली ज़िन्दा है, अपने अपने कोणार्क, यहाँ वितस्ता बहती है कथा सतीसर । तीन कथा- संकलन - चर्चित कहानियाँ, प्रेम कहानियाँ और आंचलिक कहानियाँ | एक कविता-संग्रह- यही कहीं आसपास। विभिन्न भारतीय भाषाओं और अँग्रेज़ी में अनेक कहानियों और उपन्यासों के अनुवाद ।
पुरस्कार-सम्मान : जम्मू कश्मीर कल्चरल अकादमी से बेस्ट बुक अवार्ड, मानव संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार, हरियाणा साहित्य अकादमी तथा हिन्दी अकादमी दिल्ली से कई बार पुरस्कृत- सम्मानित ।
सम्पर्क : म. नं. 3020, सेक्टर-23, पालम विहार, दिल्ली हरियाणा बॉर्डर, गुरुग्राम-122017
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