Aaj Ke Aiene Mein Rashtravad (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ravikant
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Ravikant
Language:
Hindi
Format:
Paperback

239

Save: 20%

In stock

Ships within:
3-5 days

In stock

Weight 0.172 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789387462458 Category
Category:
Page Extent:

जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और थोथी देशभक्ति के जुमले उछालकर जेएनयू को बदनाम किया जा रहा था, तब वहाँ छात्रों और अध्यापकों द्वारा राष्ट्रवाद को लेकर बहस शुरू की गई। खुले में होनेवाली ये बहस राष्ट्रवाद पर कक्षाओं में तब्दील होती गई, जिनमें जेएनयू के प्राध्यापकों के अलावा अनेक रचनाकारों और जन-आन्दोलनकारियों ने राष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिए। इन व्याख्यानों में राष्ट्रवाद के स्वरूप, इतिहास और समकालीन सन्दर्भों के साथ उसके ख़तरे भी बताए-समझाए गए।
राष्ट्रवाद कोई निश्चित भौगोलिक अवधारणा नहीं है। कोई काल्पनिक समुदाय भी नहीं। यह आपसदारी की एक भावना है, एक अनुभूति जो हमें राष्ट्र के विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों से जोड़ती है। भारत में राष्ट्रवाद स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान विकसित हुआ। इसके मूल में साम्राज्यवाद-विरोधी भावना थी। लेकिन इसके सामने धार्मिक राष्ट्रवाद के ख़तरे भी शुरू से थे। इसीलिए टैगोर समूचे विश्व में राष्ट्रवाद की आलोचना कर रहे थे तो गांधी, अम्बेडकर और नेहरू धार्मिक राष्ट्रवाद को ख़ारिज कर रहे थे।
कहने का तात्पर्य यह कि राष्ट्रवाद सतत् विचारणीय मुद्दा है। कोई अन्तिम अवधारणा नहीं। यह किताब राष्ट्रवाद के नाम पर प्रतिष्ठित की जा रही हिंसा और नफ़रत के मुक़ाबिल एक रचनात्मक प्रतिरोध है। इसमें जेएनयू में हुए तेरह व्याख्यानों को शामिल किया गया है। साथ ही योगेन्द्र यादव द्वारा पुणे और अनिल सद्गोपाल द्वारा भोपाल में दिए गए व्याख्यान भी इसमें शामिल हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Aaj Ke Aiene Mein Rashtravad (PB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और थोथी देशभक्ति के जुमले उछालकर जेएनयू को बदनाम किया जा रहा था, तब वहाँ छात्रों और अध्यापकों द्वारा राष्ट्रवाद को लेकर बहस शुरू की गई। खुले में होनेवाली ये बहस राष्ट्रवाद पर कक्षाओं में तब्दील होती गई, जिनमें जेएनयू के प्राध्यापकों के अलावा अनेक रचनाकारों और जन-आन्दोलनकारियों ने राष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिए। इन व्याख्यानों में राष्ट्रवाद के स्वरूप, इतिहास और समकालीन सन्दर्भों के साथ उसके ख़तरे भी बताए-समझाए गए।
राष्ट्रवाद कोई निश्चित भौगोलिक अवधारणा नहीं है। कोई काल्पनिक समुदाय भी नहीं। यह आपसदारी की एक भावना है, एक अनुभूति जो हमें राष्ट्र के विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों से जोड़ती है। भारत में राष्ट्रवाद स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान विकसित हुआ। इसके मूल में साम्राज्यवाद-विरोधी भावना थी। लेकिन इसके सामने धार्मिक राष्ट्रवाद के ख़तरे भी शुरू से थे। इसीलिए टैगोर समूचे विश्व में राष्ट्रवाद की आलोचना कर रहे थे तो गांधी, अम्बेडकर और नेहरू धार्मिक राष्ट्रवाद को ख़ारिज कर रहे थे।
कहने का तात्पर्य यह कि राष्ट्रवाद सतत् विचारणीय मुद्दा है। कोई अन्तिम अवधारणा नहीं। यह किताब राष्ट्रवाद के नाम पर प्रतिष्ठित की जा रही हिंसा और नफ़रत के मुक़ाबिल एक रचनात्मक प्रतिरोध है। इसमें जेएनयू में हुए तेरह व्याख्यानों को शामिल किया गया है। साथ ही योगेन्द्र यादव द्वारा पुणे और अनिल सद्गोपाल द्वारा भोपाल में दिए गए व्याख्यान भी इसमें शामिल हैं।

About Author

रविकान्त
जन्म : 25 जून, 1979; गाँव—जगम्मनपुर, ज़िला—जालौन, बुन्देलखंड, (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : जेएनयू से हिन्दी साहित्य में एम.ए., एम.फिल्., लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएच.डी.।
रचनात्मक सक्रियता : 'आलोचना और समाज', 'आज़ादी और राष्ट्रवाद' पुस्तकों का सम्‍पादन। 'अदहन' पत्रिका का सम्पादन। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख, शोधालेख एवं कविताएँ प्रकाशित।
दूरदर्शन से कई साहित्यिक आयोजन प्रसारित;  समाचार चैनलों पर बहस में दलित चिन्तक और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में नियमित सहभागिता; अंक विचार मंच, लखनऊ के माध्यम से साहित्यिक और सामाजिक उत्थान के कार्यक्रमों का नियमित संचालन; साहित्य अकादेमी के ‘ग्रामालोक’ कार्यक्रम का संयोजन; संस्थापक ‘अंक फ़ाउंडेशन’, लखनऊ।
सम्प्रति : सहायक प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।

 

 

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Aaj Ke Aiene Mein Rashtravad (PB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED