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हमारे दौर की राजनीति, समाज, आदमी–सब अपने भीतर से लेकर बाहर तक जाने कैसे तो जंजाल में उलझे हुए हैं, और जब उसे सुलझाने चलते हैं, उस जाल से निकलकर खुली, साफ़ जगह में आने के लिए हाथ-पाँव पटकते हैं तो सुलझते-निकलते नहीं, और उलझ जाते हैं।
क्या नहीं है हमारे पास? जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, अब वह भी है, और भरोसा है कि अब जिसकी कल्पना करेंगे, वह भी कल हो उठेगा।
लेकिन ताला अगर कहीं लग गया है तो वह कल्पना ही पर है; और उसके संगी-साथी दूसरे कई मनोभाव-मनोशक्तियाँ और इनका सरदार एक सूफ़ी मन, उजली कामनाओं, और धरती-आकाश को एक करते धवल सपनों की छतरी; यह सब उस ताले के भीतर कहीं छटपटा-सिसक रहे हैं।
खुसरो एक पैदा हुआ, मध्यकालीन कहे जानेवाले उस साँवले हिन्दुस्तान में जिसकी छतें इतनी ऊँची होती थीं, कि हम बौनों की तिमंज़िला बाँबियाँ उनमें खड़ी हो जाएँ। यह उस ख़ुसरो की आत्मकथा से रचा हुआ उपन्यास है जिसमें ख़ुसरो की चेतना को जीनेवाले आज के कुछ सूफ़ी मनवालों की कहानी भी साथ में पिरो दी गई है।
ख़ुसरो इस कथा में अपना वह सब बताते हैं जिस तक हम उनकी नातों, क़व्वालियों और पहेलियों की ओट में नहीं पहुँच पाते–कि उनका एक परिवार था, एक बेटी थी, बेटे थे, पत्नी थी, और थे निज़ाम पिया जिनकी निगाहों के साए तले उन्होंने वह सब सहा जो एक साफ़, हस्सास दिल अपने ख़ून-सने वक़्तों और बेलगाम सनकों से हासिल कर सकता था।
और इसमें कहानी है सपना की, नफ़ीस की, ललिता दी और सरोज की भी, जो आज के हत्यारे समय के सामने अपने दिल के आईने लिए खड़े हैं, लहूलुहान हो रहे हैं, पर हट नहीं रहे, जा नहीं रहे, क्योंकि वे उकताकर या हारकर अगर चले गए तो न पद्मिनियों के जौहर पर मौन रुदन करनेवाला कोई होगा, न इंसानियत को उसके क्षुद्रतर होते वजूद के लिए एक वृहत्तर विकल्प देनेवाला।
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Description
हमारे दौर की राजनीति, समाज, आदमी–सब अपने भीतर से लेकर बाहर तक जाने कैसे तो जंजाल में उलझे हुए हैं, और जब उसे सुलझाने चलते हैं, उस जाल से निकलकर खुली, साफ़ जगह में आने के लिए हाथ-पाँव पटकते हैं तो सुलझते-निकलते नहीं, और उलझ जाते हैं।
क्या नहीं है हमारे पास? जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, अब वह भी है, और भरोसा है कि अब जिसकी कल्पना करेंगे, वह भी कल हो उठेगा।
लेकिन ताला अगर कहीं लग गया है तो वह कल्पना ही पर है; और उसके संगी-साथी दूसरे कई मनोभाव-मनोशक्तियाँ और इनका सरदार एक सूफ़ी मन, उजली कामनाओं, और धरती-आकाश को एक करते धवल सपनों की छतरी; यह सब उस ताले के भीतर कहीं छटपटा-सिसक रहे हैं।
खुसरो एक पैदा हुआ, मध्यकालीन कहे जानेवाले उस साँवले हिन्दुस्तान में जिसकी छतें इतनी ऊँची होती थीं, कि हम बौनों की तिमंज़िला बाँबियाँ उनमें खड़ी हो जाएँ। यह उस ख़ुसरो की आत्मकथा से रचा हुआ उपन्यास है जिसमें ख़ुसरो की चेतना को जीनेवाले आज के कुछ सूफ़ी मनवालों की कहानी भी साथ में पिरो दी गई है।
ख़ुसरो इस कथा में अपना वह सब बताते हैं जिस तक हम उनकी नातों, क़व्वालियों और पहेलियों की ओट में नहीं पहुँच पाते–कि उनका एक परिवार था, एक बेटी थी, बेटे थे, पत्नी थी, और थे निज़ाम पिया जिनकी निगाहों के साए तले उन्होंने वह सब सहा जो एक साफ़, हस्सास दिल अपने ख़ून-सने वक़्तों और बेलगाम सनकों से हासिल कर सकता था।
और इसमें कहानी है सपना की, नफ़ीस की, ललिता दी और सरोज की भी, जो आज के हत्यारे समय के सामने अपने दिल के आईने लिए खड़े हैं, लहूलुहान हो रहे हैं, पर हट नहीं रहे, जा नहीं रहे, क्योंकि वे उकताकर या हारकर अगर चले गए तो न पद्मिनियों के जौहर पर मौन रुदन करनेवाला कोई होगा, न इंसानियत को उसके क्षुद्रतर होते वजूद के लिए एक वृहत्तर विकल्प देनेवाला।
About Author
अनामिका
जन्म : 1961 के उत्तरार्द्ध में मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार।
शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य से पीएच.डी.।
कृतियाँ : पोस्ट एलिएट पोएट्री : अ वॉएज फ्रॉम कांफ्लिक्ट टु आइसोलेशन, डन क्रिटिसिज़्म डाउन दि एजेज, ट्रीटमेंट ऑव लव एंड डेथ इन पोस्ट वार अमेरिकन विमेन पोएट्स (आलोचना); स्त्रीत्व का मानचित्र, मन माँजने की ज़रूरत, पानी जो पत्थर पीता है, साझा चूल्हा, त्रिया चरित्रम् : उत्तरकांड, स्वाधीनता का स्त्री-पक्ष (विमर्श); ग़लत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, समय के शहर में, अनुष्टुप, कविता में औरत, खुरदुरी हथेलियाँ,
दूब-धान, टोकरी में दिगन्त : थेरी गाथा : 2014, पानी को सब याद था (कविता); प्रतिनायक (कहानी); एक ठो शहर था, एक थे शेक्सपियर, एक थे चार्ल्स डिकेंस (संस्मरण); आईनासाज़, अवान्तर कथा, दस द्वारे का पींजरा, तिनका तिनके पास (उपन्यास)।
अनुवाद : नागमंडल (गिरीश कारनाड), रिल्के की कविताएँ, एफ्रो-इंग्लिश पोएम्स, अटलांट के आर-पार (समकालीन अंग्रेजी कविता), कहती हैं औरतें (विश्व साहित्य की स्त्रीवादी कविताएँ) तथा द ग्रास इज़ सिंगिंग।
सम्मान : साहित्य अकादेमी पुरस्कार, राजभाषा परिषद् पुरस्कार, भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, गिरिजाकुमार माथुर सम्मान, परम्परा सम्मान, साहित्य सेतु सम्मान, केदार सम्मान, शमशेर सम्मान, सावित्रीबाई फुले सम्मान, मुक्तिबोध सम्मान और महादेवी सम्मान आदि।
सम्प्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य का अध्यापन।
सम्पर्क : anamikapoetry@gmail.com
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