Aadhunik Urdu Kahani Ka Safar (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Shameem Hanfi, Tr. Shubham Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Shameem Hanfi, Tr. Shubham Mishra
Language:
Hindi
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Hardback

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मुंशी प्रेमचन्द से सुरेन्द्र प्रकाश तक की उर्दू कहानी का यह विवरण २०वीं सदी के माहौल और समाज का विवरण भी है। मैं साहित्य की किसी भी विधा को उसकी ज़मीन और ज़माने से अलग करके देखने में असमर्थ हूँ ख़ासतौर पर कथा-कहानी को। सार्त्र ने १९४८ में साहित्य की प्रतिबद्धता पर अपनी धारणा व्यक्त करते हुए कविता के मुक़ाबले में कहानी को अपने समय और भौतिक वातावरण में ज़्यादा उलझा हुआ बताया था, ज़्यादा Committed, ज़्यादा  Engaged यानी ज़्यादा प्रतिबद्ध और ज़्यादा व्यस्त। इस तरह हमारे कथा-साहित्य की हदें इतिहास से ‌जा मिलती हैं। लेकिन साहित्य, बहरहाल, इतिहास नहीं होता। साहित्य इतिहास के समानान्तर अपनी एक अलग दुनिया बनाता है। यह दुनिया इतिहास से ज़्यादा रोचक, ज़्यादा सशक्त होती है, अपनी कलात्मकता और सौन्दर्य के कारण। इसीलिए इतिहास के किसी भी युग की सीमाओं के मुक़ाबले में साहित्य और कला की सीमाएँ ज़्यादा विस्तृत और ज़्यादा दिनों तक ज़िन्दा, रोचक और पायदार रहती हैं।
—प्रस्तावना से

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Description

मुंशी प्रेमचन्द से सुरेन्द्र प्रकाश तक की उर्दू कहानी का यह विवरण २०वीं सदी के माहौल और समाज का विवरण भी है। मैं साहित्य की किसी भी विधा को उसकी ज़मीन और ज़माने से अलग करके देखने में असमर्थ हूँ ख़ासतौर पर कथा-कहानी को। सार्त्र ने १९४८ में साहित्य की प्रतिबद्धता पर अपनी धारणा व्यक्त करते हुए कविता के मुक़ाबले में कहानी को अपने समय और भौतिक वातावरण में ज़्यादा उलझा हुआ बताया था, ज़्यादा Committed, ज़्यादा  Engaged यानी ज़्यादा प्रतिबद्ध और ज़्यादा व्यस्त। इस तरह हमारे कथा-साहित्य की हदें इतिहास से ‌जा मिलती हैं। लेकिन साहित्य, बहरहाल, इतिहास नहीं होता। साहित्य इतिहास के समानान्तर अपनी एक अलग दुनिया बनाता है। यह दुनिया इतिहास से ज़्यादा रोचक, ज़्यादा सशक्त होती है, अपनी कलात्मकता और सौन्दर्य के कारण। इसीलिए इतिहास के किसी भी युग की सीमाओं के मुक़ाबले में साहित्य और कला की सीमाएँ ज़्यादा विस्तृत और ज़्यादा दिनों तक ज़िन्दा, रोचक और पायदार रहती हैं।
—प्रस्तावना से

About Author

शमीम हनफी

देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित शमीम हनफी (जन्म : 1938) उर्दू भाषा के मूर्धन्य साहित्यालोचक, नाटककार, कवि और विचारक हैं। आप जामिया मिल्लिया इस्लामिया में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे हैं और वहाँ की समादृत पत्रिका 'जामिया' का आपने वर्षों तक सम्पादन किया है।

आपकी साहित्यिक आलोचना की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं और अनेक पुस्तकों के सम्पादन सहित आपने चार नाटक, अनुवाद की चार पुस्तकों के अलावा बाल साहित्य भी लिखा है। आपकी कविताओं का एक संग्रह भी प्रकाशित है। चित्रकला और रूपंकर कलाओं में आपकी गहरी रुचि है।

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