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Aadhunik Bharat Ka Aarthik Itihas : 1850 1947 (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sabyasachi Bhattacharya
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sabyasachi Bhattacharya
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9788126700806
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प्रो. सब्यसाची भट्टाचार्य देश के जाने-माने इतिहासकार हैं, जिनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र औपनिवेशिक भारत रहा है। उनकी पुस्तक ब्रिटिश राज के वित्तीय आधार चर्चित और प्रशंसित पुस्तकों में से है।
आधुनिक भारत के आर्थिक विकास पर रमेशचंद्र दत्त तथा रजनी पाम दत्त की पुस्तकें काफी पहले प्रकाशित हुई थीं, लेकिन प्रस्तुत पुस्तक उनकी पुस्तकों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें इस विषय पर किए गए अद्यतन शोधों तथा अभिलेखागार में उपलब्ध सामग्री का भरपूर उपयोग किया गया है। यह सामग्री उपर्युक्त पुस्तकों के लेखन के समय उपलब्ध नहीं थी।
प्रो. भट्टाचार्य ने अपनी इस पुस्तक में औपनिवेशिक भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की है। लेकिन यह एक जटिल कार्य था और औपनिवेशिक भारत के आर्थिक इतिहासकारों के जो कई घराने हैं, उनके विकास और वैशिष्ट्य का मूल्यांकन किए बिना प्रतिपाद्य विषय के साथ न्याय नहीं किया जा सकता था। अतएव प्रो. भट्टाचार्य ने इस शताब्दी की सीमाओं में विभिन्न ऐतिहासिक विचारधाराओं का आकलन करते हुए अनेक बुनियादी सवाल उठाए हैं और बाद के अध्यायों में उन सवालों पर विस्तार से विचार किया है। भारत का अर्थनीतिक उपनिवेशीकरण कैसे हुआ, इस प्रश्न को उन्होंने विभिन्न कोणों से देखा-परखा है और इस प्रसंग में ब्रिटिश सरकार की विभिन्न नीतियों के अच्छे या बुरे परिणामों को सामने रखा है। साथ ही, उन नीतियों की संपूर्ण रूप से और साम्राज्यवादी राष्ट्र के चरित्र को साधारण रूप से समझने की चेष्टा भी की है। उल्लेखनीय है कि प्रो. भट्टाचार्य ने उपनिवेशवादी शोषण के चरित्र और विद्रूपित आर्थिक विकास को विशेष रूप से रेखांकित किया है।
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Description
प्रो. सब्यसाची भट्टाचार्य देश के जाने-माने इतिहासकार हैं, जिनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र औपनिवेशिक भारत रहा है। उनकी पुस्तक ब्रिटिश राज के वित्तीय आधार चर्चित और प्रशंसित पुस्तकों में से है।
आधुनिक भारत के आर्थिक विकास पर रमेशचंद्र दत्त तथा रजनी पाम दत्त की पुस्तकें काफी पहले प्रकाशित हुई थीं, लेकिन प्रस्तुत पुस्तक उनकी पुस्तकों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें इस विषय पर किए गए अद्यतन शोधों तथा अभिलेखागार में उपलब्ध सामग्री का भरपूर उपयोग किया गया है। यह सामग्री उपर्युक्त पुस्तकों के लेखन के समय उपलब्ध नहीं थी।
प्रो. भट्टाचार्य ने अपनी इस पुस्तक में औपनिवेशिक भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की है। लेकिन यह एक जटिल कार्य था और औपनिवेशिक भारत के आर्थिक इतिहासकारों के जो कई घराने हैं, उनके विकास और वैशिष्ट्य का मूल्यांकन किए बिना प्रतिपाद्य विषय के साथ न्याय नहीं किया जा सकता था। अतएव प्रो. भट्टाचार्य ने इस शताब्दी की सीमाओं में विभिन्न ऐतिहासिक विचारधाराओं का आकलन करते हुए अनेक बुनियादी सवाल उठाए हैं और बाद के अध्यायों में उन सवालों पर विस्तार से विचार किया है। भारत का अर्थनीतिक उपनिवेशीकरण कैसे हुआ, इस प्रश्न को उन्होंने विभिन्न कोणों से देखा-परखा है और इस प्रसंग में ब्रिटिश सरकार की विभिन्न नीतियों के अच्छे या बुरे परिणामों को सामने रखा है। साथ ही, उन नीतियों की संपूर्ण रूप से और साम्राज्यवादी राष्ट्र के चरित्र को साधारण रूप से समझने की चेष्टा भी की है। उल्लेखनीय है कि प्रो. भट्टाचार्य ने उपनिवेशवादी शोषण के चरित्र और विद्रूपित आर्थिक विकास को विशेष रूप से रेखांकित किया है।
About Author
सब्यसाची भट्टाचार्य
विख्यात इतिहासकार सब्यसाची भट्टाचार्य का जन्म 21 अगस्त, 1938 को कोलकाता में हुआ।
उन्होंने जाधवपुर विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (कोलकाता), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्राध्यापन किया। विश्व भारती शान्ति निकेतन के कुलपति रहे। शिकागो विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तथा एल कॉलेजियो द मैक्सिको में भी प्राध्यापन और शोध कार्य किया। भारतीय इतिहास कांग्रेस के आधुनिक इतिहास विभाग के सभापति और भारत सरकार के इंडियन हिस्टॉरिकल रेकाड्स कमीशन के सदस्य रहे।
भारत में 1857 की क्रान्ति के बाद के दो दशकों में ब्रिटिश राज की वित्तीय नीतियों पर केन्द्रित उनका शोध-प्रबन्ध फ़ाइनेंशियल फ़ाउंडेशंस ऑफ़ ब्रिटिश राज अंग्रेज़ी, बांग्ला और हिन्दी में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। टॉकिंग बैंक : द आइडिया ऑफ़ सिविलाइजेशन इन द इंडियन नेशनलिस्ट डिस्कोर्स, वन्दे मातरम : ए बायोग्राफ़ी ऑफ़ ए साँग,
द डिफ़ाइनिंग मोमेंट्स इन बंगाल 1920-1947,
द कोलोनियल स्टेट : थियरी एंड प्रैक्टिस, द महात्मा एंड द पोएट : लेटर्स एंड डिबेट्स बिटवीन गांधी एंड टैगोर, अर्काइविंग द ब्रिटिश राज आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
उन्हें 2011 में ‘रवीन्द्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 2016 में डी.लीट. की उपाधि मिली।
निधन : 8 जनवरी, 2019
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