Aadhunik Awadhi Kavita : Pratinidhi Chayan : 1850 Se Ab Tak-(HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ed. Amrendra Nath Tripathi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
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Ed. Amrendra Nath Tripathi
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अवधी भाषा की कविता-यात्रा हज़ार वर्षों से कहीं अधिक लम्बी रही है जिसे अब तक गतिमान भाषा की महायात्रा के रूप में देखा जाना चाहिए। सभी आधुनिक आर्यभाषाओं की तरह अवधी की शुरुआत भी दसवीं शताब्दी से मानी जाती है। भाषा के लिखित रूप के साक्ष्य पर। लेकिन इस भाषा का उद्भव दसवीं सदी के कितने सैकड़े पहले हुआ, ठीक-ठीक कह पाना कठिन है। अवधी में लोकसाहित्य कब से लिखा जा रहा है, यह भी कोई नहीं बता सकता। परन्तु यह अनुमान हवाई नहीं है कि जो भाषा दसवीं-ग्यारहवीं सदी के आसपास अपने लिखित रूप में मौजूद दिखती है, उसका मौखिक रूप भी कहीं और पहले से आकार लेता हुआ, विस्तृत, ऊर्जावान और आकर्षक रहा होगा। भाषा से ‘बोली’ के दर्जे में पहुँचा दिए जाने के बावजूद आधुनिक काल में अवधी रचनात्मकता रुकी नहीं। कवियों ने अपने घर, गाँव और अवध की भाषा में लिखा और असरदार लिखा। कोई उन्हें देख रहा है कि नहीं, रचना कहीं से छपेगी कि नहीं, कोई कभी मूल्यांकन करेगा कि नहीं; इन सबसे बेख़बर होकर अवधी साहित्यकारों ने सिर्फ़ लिखा। इसका सुपरिणाम यह हुआ कि अवधी के आधुनिक काम में रचनाकारों और रचनाओं की कमी नहीं है। पूरे अवध में, और अवध से बाहर भी, अवधी रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा। वह कितना मूल्यवान है, यह अलग मसला है, लेकिन नाना नकारात्मकताओं के मध्य अवधी की रचनात्मक चेष्टा की सराहना की जानी चाहिए। यह किताब उसी दिशा में एक प्रयास है।

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अवधी भाषा की कविता-यात्रा हज़ार वर्षों से कहीं अधिक लम्बी रही है जिसे अब तक गतिमान भाषा की महायात्रा के रूप में देखा जाना चाहिए। सभी आधुनिक आर्यभाषाओं की तरह अवधी की शुरुआत भी दसवीं शताब्दी से मानी जाती है। भाषा के लिखित रूप के साक्ष्य पर। लेकिन इस भाषा का उद्भव दसवीं सदी के कितने सैकड़े पहले हुआ, ठीक-ठीक कह पाना कठिन है। अवधी में लोकसाहित्य कब से लिखा जा रहा है, यह भी कोई नहीं बता सकता। परन्तु यह अनुमान हवाई नहीं है कि जो भाषा दसवीं-ग्यारहवीं सदी के आसपास अपने लिखित रूप में मौजूद दिखती है, उसका मौखिक रूप भी कहीं और पहले से आकार लेता हुआ, विस्तृत, ऊर्जावान और आकर्षक रहा होगा। भाषा से ‘बोली’ के दर्जे में पहुँचा दिए जाने के बावजूद आधुनिक काल में अवधी रचनात्मकता रुकी नहीं। कवियों ने अपने घर, गाँव और अवध की भाषा में लिखा और असरदार लिखा। कोई उन्हें देख रहा है कि नहीं, रचना कहीं से छपेगी कि नहीं, कोई कभी मूल्यांकन करेगा कि नहीं; इन सबसे बेख़बर होकर अवधी साहित्यकारों ने सिर्फ़ लिखा। इसका सुपरिणाम यह हुआ कि अवधी के आधुनिक काम में रचनाकारों और रचनाओं की कमी नहीं है। पूरे अवध में, और अवध से बाहर भी, अवधी रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा। वह कितना मूल्यवान है, यह अलग मसला है, लेकिन नाना नकारात्मकताओं के मध्य अवधी की रचनात्मक चेष्टा की सराहना की जानी चाहिए। यह किताब उसी दिशा में एक प्रयास है।

About Author

अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

जन्म : 15 अगस्त, 1984; उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद में।

स्नातक तक की शिक्षा गाँव से। उच्च शिक्षा और शोध-कार्य जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से। पिछले कई वर्षों तक मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और वर्तमान में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में अध्यापनरत हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया पर सक्रिय लेखन-कर्म करते हुए विगत दस वर्षों से अवधी की ऑनलाइन पत्रिका ‘अवधी कै अरघान’ (www.awadh.org) का सम्पादन कर रहे हैं। यह ISSN नम्बर पानेवाली अवधी भाषा की पहली और अकेली पत्रिका है। इंडिया टुडे समूह की वेबसाइट ‘द लल्लनटॉप’ पर चर्चित साप्ताहिक स्तम्भ ‘देहातनामा’ के लेखक हैं। प्रख्यात भाषाशास्त्री गणेश एन. देवी के सम्पादन में हुए भारतीय भाषा सर्वेक्षण के अन्तर्गत 'अवधी भाषा' वाला हिस्सा लिखा है।

प्रकाशित पुस्तकें : 'बेचैन पत्तों का कोरस' (कुँवर नारायण के कहानी-संग्रह का सम्पादन), 'समकालीन अवधी साहित्य में प्रतिरोध', 'जनमत की राजनीति' और 'जियौ बहादुर खद्दरधारी' (अवधी कवि रफ़ीक़ शादानी के कविता-संग्रह का सम्पादन)।

 

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