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21vin Shati Ka Hindi Upanyas (HB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Pushppal Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Pushppal Singh
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹1,395 ₹1,116
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ISBN:
SKU
9788183617888
Category Hindi
Category: Hindi
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एक ही अध्येता द्वारा उपन्यास-साहित्य के समग्र का परीक्षण कर विशिष्ट कृति के मूल्यांकन की परम्परा का प्रायः अभाव है। एकाध प्रयत्न को छोड़कर उपन्यास-आलोचना में बड़ा शून्य है। इसी शून्य को भरने का प्रयास सुप्रसिद्ध वरिष्ठ आलोचक डॉ. पुष्पपाल सिंह प्रणीत इस ग्रन्थ में हुआ है जिसमें 21वीं शती के उपन्यास-साहित्य की समग्रता में प्रवेश कर, 2013 (के मध्य तक) के प्रकाशित उपन्यासों पर गम्भीरता से विचार का सुचिन्तित निष्कर्ष प्रतिपादित किए गए हैं। उपन्यासों के कथ्य की विराट चेतना पर विचार करते हुए दर्शाया गया है कि आज उपन्यास का क्षितिज कितना विस्तृत हो चुका है। भूमंडल की कदाचित् कोई ही ऐसी समस्या होगी जिस पर हिन्दी उपन्यास में विचार नहीं हुआ हो। भूमंडलीकृत आर्थिकता (इकॉनमी) तथा अमेरिकी संस्कृति के वर्चस्व ने न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया में जो खलबली मचा रखी है, उस सबका सशक्त आकलन ‘21वीं शती का हिन्दी उपन्यास’ प्रस्तुत करता है। उपन्यास का चिन्तन और विमर्श-पक्ष इतना सशक्त है कि उस सबके चुनौतीपूर्ण अध्ययन में पुष्पपाल सिंह अपने पूरे आलोचकीय औज़ारों और पैनी भाषा-शैली के साथ प्रवृत्त होते हैं।
उपन्यास के ढाँचे, रूपाकार में भी इतने व्यापक प्रयोग इस काल-खंड के उपन्यास में हुए हैं जिन्होंने उपन्यास की धज ही पूरी तरह बदल दी है। उपन्यास की शैल्पिक संरचना पर हिन्दी में ‘न’ के बराबर विचार हुआ है। प्रस्ततु अध्ययन में विद्वान लेखक ने उपन्यास की शैल्पिक संरचना के परिवर्तनों का भी सोदाहरण विवेचन कर विषय के साथ पूर्ण न्याय किया है। लेखक ने उपन्यास के विपुल का अध्ययन कर उसके श्रेष्ठ के रेखांकन का प्रयास किया है किन्तु फिर भी अपने निष्कर्षों पर अड़े रहने का आग्रह उनमें नहीं है, वे सर्वत्र एक बहस को आहूत करते हैं। उपन्यास-आलोचना के सम्मुख जो चुनौतियाँ हैं, उन पर भी प्रकाश डालते हुए एक विचारोत्तेजक बहस का अवसर दिया गया है। पुस्तक के दूसरे खंड—विशिष्ठ उपन्यास खंड—में वर्षानुक्रम से अड़तीस विशिष्ट उपन्यासों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इन उपन्यासों की समीक्षा-शैली में इतना वैविध्य है कि वह अपने ढंग से हिन्दी आलोचना की नई समृद्धि प्रदान करता हुआ लेखकीय गौरव की अभिवृद्धि करता है। पुष्पपाल सिंह की यह कृति निश्चय ही हिन्दी आलोचना के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अवदान है।
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Description
एक ही अध्येता द्वारा उपन्यास-साहित्य के समग्र का परीक्षण कर विशिष्ट कृति के मूल्यांकन की परम्परा का प्रायः अभाव है। एकाध प्रयत्न को छोड़कर उपन्यास-आलोचना में बड़ा शून्य है। इसी शून्य को भरने का प्रयास सुप्रसिद्ध वरिष्ठ आलोचक डॉ. पुष्पपाल सिंह प्रणीत इस ग्रन्थ में हुआ है जिसमें 21वीं शती के उपन्यास-साहित्य की समग्रता में प्रवेश कर, 2013 (के मध्य तक) के प्रकाशित उपन्यासों पर गम्भीरता से विचार का सुचिन्तित निष्कर्ष प्रतिपादित किए गए हैं। उपन्यासों के कथ्य की विराट चेतना पर विचार करते हुए दर्शाया गया है कि आज उपन्यास का क्षितिज कितना विस्तृत हो चुका है। भूमंडल की कदाचित् कोई ही ऐसी समस्या होगी जिस पर हिन्दी उपन्यास में विचार नहीं हुआ हो। भूमंडलीकृत आर्थिकता (इकॉनमी) तथा अमेरिकी संस्कृति के वर्चस्व ने न केवल भारत अपितु पूरी दुनिया में जो खलबली मचा रखी है, उस सबका सशक्त आकलन ‘21वीं शती का हिन्दी उपन्यास’ प्रस्तुत करता है। उपन्यास का चिन्तन और विमर्श-पक्ष इतना सशक्त है कि उस सबके चुनौतीपूर्ण अध्ययन में पुष्पपाल सिंह अपने पूरे आलोचकीय औज़ारों और पैनी भाषा-शैली के साथ प्रवृत्त होते हैं।
उपन्यास के ढाँचे, रूपाकार में भी इतने व्यापक प्रयोग इस काल-खंड के उपन्यास में हुए हैं जिन्होंने उपन्यास की धज ही पूरी तरह बदल दी है। उपन्यास की शैल्पिक संरचना पर हिन्दी में ‘न’ के बराबर विचार हुआ है। प्रस्ततु अध्ययन में विद्वान लेखक ने उपन्यास की शैल्पिक संरचना के परिवर्तनों का भी सोदाहरण विवेचन कर विषय के साथ पूर्ण न्याय किया है। लेखक ने उपन्यास के विपुल का अध्ययन कर उसके श्रेष्ठ के रेखांकन का प्रयास किया है किन्तु फिर भी अपने निष्कर्षों पर अड़े रहने का आग्रह उनमें नहीं है, वे सर्वत्र एक बहस को आहूत करते हैं। उपन्यास-आलोचना के सम्मुख जो चुनौतियाँ हैं, उन पर भी प्रकाश डालते हुए एक विचारोत्तेजक बहस का अवसर दिया गया है। पुस्तक के दूसरे खंड—विशिष्ठ उपन्यास खंड—में वर्षानुक्रम से अड़तीस विशिष्ट उपन्यासों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इन उपन्यासों की समीक्षा-शैली में इतना वैविध्य है कि वह अपने ढंग से हिन्दी आलोचना की नई समृद्धि प्रदान करता हुआ लेखकीय गौरव की अभिवृद्धि करता है। पुष्पपाल सिंह की यह कृति निश्चय ही हिन्दी आलोचना के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अवदान है।
About Author
पुष्पपाल सिंह
जन्म : 4 नवम्बर, 1941; भदस्याना (मेरठ, उ.प्र.)।
शिक्षा : कलकत्ता विश्वविद्यालय, कलकत्ता से डी.फिल., जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू से डी.लिट्., पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष के रूप में सेवा-निवृत्ति।
प्रमुख कृतियाँ : ‘आधुनिक हिन्दी कविता में महाभारत के कुछ पात्र’, ‘काव्य-मिथक’, ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य : विकास के विविध सोपान’, ‘कमलेश्वर : कहानी का सन्दर्भ’, ‘समकालीन कहानी : युगबोध का सन्दर्भ’, ‘समकालीन कहानी : रचना-मुद्रा’, ‘समकालीन कहानी : सोच और समझ’, ‘समकालीन हिन्दी कहानी’, ‘बीसवीं शती : कृष्ण कथा-काव्य’, ‘हिन्दी कहानी : विश्वकोश’ (प्रथम खंड), ‘कबीर ग्रन्थावली सटीक’, ‘भ्रमरगीत सार : समीक्षा और व्याख्या’, ‘हिन्दी गद्य : इधर की उपलब्धियाँ’, ‘समकालीन कहानी : नया परिप्रेक्ष्य’, ‘भूमंडलीकरण और हिन्दी उपन्यास’, ‘वैश्विक गाँव और आम आदमी’, ‘हिन्दी कहानीकार कमलेश्वर : पुनर्मूल्यांकन’, ‘कहानी का उत्तर समय : सृजन-सन्दर्भ’, ‘रवीन्द्रनाथ त्यागी : विनिबन्ध’ (आलोचना); ‘तारीख़ का इन्तज़ार’ (कहानी-संग्रह); ‘जुग बीते, युग आए’ (रिपोर्ताज); ‘हिन्दी की क्लासिक कहानियाँ’ (छह खंड), 'सुनीता जैन समग्र’ (14 खंड), ‘भारतीय साहित्य के स्वर्णाक्षर : प्रेमचन्द’, ‘जयशंकर प्रसाद’, ‘हिन्दी का प्रथम उपन्यास : देवरानी जेठानी की कहानी’ (सम्पादन); ‘समकालीन पंजाबी प्रतिनिधि कहानियाँ’, 'सरबत दा भला’ (अनुवाद)।
सम्मान : 'साहित्य-भूषण’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान), ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान), ‘शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार’ आदि।
निधन : 29 अगस्त, 2015
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