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1984 (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
GEORGE ORWELL,ABHISHEK SRIVASTAVA
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
GEORGE ORWELL,ABHISHEK SRIVASTAVA
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Hindi
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Paperback

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SKU 9789390971084 Category
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1984 सर्वसत्तावादी शासन के खतरों से आगाह करने वाला विश्वविख्यात उपन्यास है। यह अनिवार्यत: विचार और भाषा के सम्बन्धों पर केन्द्रित एक कृति है। जाहिर है, जब विचार और भाषा एक-दूसरे को प्रभावित करते हों तो यह परिघटना किसी कालखंड में बँधी नहीं रह सकती। जब-जब कोई विचार विशेष सत्ता में होगा, उससे जुड़ी शब्दावली भी वापस प्रचलन में आएगी। यही बात इस उपन्यास को सार्वकालिक नहीं बनाती है और, उसको सर्वोपरि बनाए रखने के लिए अगर व्यवस्था को नागरिकों से भी महत्त्वपूर्ण मान लिया जाएगा तब किसी राज्य और समाज के लोगों को करना एक ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा, जहाँ कोई प्रत्यक्ष जंजीर भले न हो, लेकिन आज़ादी नहीं होगी;  जीवन भले हो पर कोई गरिमा न होगी।

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Description

1984 सर्वसत्तावादी शासन के खतरों से आगाह करने वाला विश्वविख्यात उपन्यास है। यह अनिवार्यत: विचार और भाषा के सम्बन्धों पर केन्द्रित एक कृति है। जाहिर है, जब विचार और भाषा एक-दूसरे को प्रभावित करते हों तो यह परिघटना किसी कालखंड में बँधी नहीं रह सकती। जब-जब कोई विचार विशेष सत्ता में होगा, उससे जुड़ी शब्दावली भी वापस प्रचलन में आएगी। यही बात इस उपन्यास को सार्वकालिक नहीं बनाती है और, उसको सर्वोपरि बनाए रखने के लिए अगर व्यवस्था को नागरिकों से भी महत्त्वपूर्ण मान लिया जाएगा तब किसी राज्य और समाज के लोगों को करना एक ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा, जहाँ कोई प्रत्यक्ष जंजीर भले न हो, लेकिन आज़ादी नहीं होगी;  जीवन भले हो पर कोई गरिमा न होगी।

About Author

जॉर्ज ऑरवेल

जॉर्ज ऑरवेल (1903-1950) को अंग्रेज़ी भाषा के सर्वाधिक चर्चित लेखकों में से एक थे। ‘बर्मीज डेज़’, ‘एनिमल फ़ार्म’ और ‘1984’ उनके प्रतिनिधि उपन्यास हैं। उनके कथेतर गद्य को भी काफ़ी सराहा गया। उन्होंने अपने समय-समाज की राजनीतिक और वैचारिक हलचलों को जिस गहरी नज़र से देखा-परखा वैसा बहुत कम देखने में आता है। सत्ता तंत्र और साम्राज्यवाद की बारीक़ आलोचना उनके लेखन की उल्लेखनीय विशेषता है।

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