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16 Lallantop Kahaniyan
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साल 2016 का नवम्बर। इस गुनगुने महीने में ‘आज तक’ ने एक दो दिवसीय साहित्य उत्सव के बहाने कुछ सरगर्मियाँ पैदा कीं। इन सरगर्मियों को बढ़ाने में एक बड़ा किरदार ‘लल्लनटॉप कहानी कॉम्पिटिशन’ का भी रहा। यह हिन्दी के इतिहास में पहला मौका था जब साहित्य के किसी समारोह में इस तरह की कोई प्रतियोगिता आयोजित की गयी। कहानी मौके पर ही लिखनी थी – हिन्दी में और देवनागरी लिपि में-आयोजकों द्वारा दी गयी कलम और कॉपी पर। कहानी अपने मनचाहे विषय पर लिखने की छूट थी। सुबह से शाम तक का वक़्त था- एक मौलिक और सर्वथा अप्रकाशित-अप्रसारित कहानी गढ़ने-रचने के लिए। इस प्रक्रिया में देश के अलग-अलग स्थानों से आये करीब 500 कहानीकारों ने हिस्सा लिया और कहानी लिखी। इन कहानियों में से 16 कहानियाँ चुनकर यह किताब बनी है। इस चयन के बारे में बेशक यह कहा जा सकता है कि इसमें कहानीकार नहीं कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी। इस सन्दर्भ में और स्पष्टीकरण आत्मप्रशंसा में ले जायेगा। इसलिए इससे बचते हुए ये कहानियाँ अब आपके सामने हैं…।
साल 2016 का नवम्बर। इस गुनगुने महीने में ‘आज तक’ ने एक दो दिवसीय साहित्य उत्सव के बहाने कुछ सरगर्मियाँ पैदा कीं। इन सरगर्मियों को बढ़ाने में एक बड़ा किरदार ‘लल्लनटॉप कहानी कॉम्पिटिशन’ का भी रहा। यह हिन्दी के इतिहास में पहला मौका था जब साहित्य के किसी समारोह में इस तरह की कोई प्रतियोगिता आयोजित की गयी। कहानी मौके पर ही लिखनी थी – हिन्दी में और देवनागरी लिपि में-आयोजकों द्वारा दी गयी कलम और कॉपी पर। कहानी अपने मनचाहे विषय पर लिखने की छूट थी। सुबह से शाम तक का वक़्त था- एक मौलिक और सर्वथा अप्रकाशित-अप्रसारित कहानी गढ़ने-रचने के लिए। इस प्रक्रिया में देश के अलग-अलग स्थानों से आये करीब 500 कहानीकारों ने हिस्सा लिया और कहानी लिखी। इन कहानियों में से 16 कहानियाँ चुनकर यह किताब बनी है। इस चयन के बारे में बेशक यह कहा जा सकता है कि इसमें कहानीकार नहीं कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी। इस सन्दर्भ में और स्पष्टीकरण आत्मप्रशंसा में ले जायेगा। इसलिए इससे बचते हुए ये कहानियाँ अब आपके सामने हैं…।
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