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Daslakshan Dharm
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इस पुस्तक का मूल उद्देश्य जैन दर्शन में हर साल आने वाले पर्व दसलक्षण पर्व का विवेचन है कि दसलक्षण धर्म क्या होते है? और जैन दर्शन कनुर इस पर्व की पालना क्यों करते हैं? असल में कोई भी धर्म मानवता से ऊपर नहीं हो सकता। मानवता ही मनुष्य का प्रमुख चर्म है। सभी चों के शास्त्रों में लिखा है कि व्यक्ति की आत्मा ही परमात्मा है। जैन दर्शन किसी भी मत, संप्रदाय या किसी भी शारीरिक तिया के अपितु आत्मस्वरूप की पहचान का दर्शन है। इस पुस्तक में चर्म के दसलक्षणी (सुमन्त्र उत्तम मार्दव, आर्जय, सत्य, शौच, संयम, रूप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य साधारण बोलचाल की भाषा में किया गया है, जिससे सभी व्यक्ति दसलक्षण धर्म महत्ता को समझ सके और अपनी आत्मा में लीन होकर आत्मस्वरूप को पहचानकर अपने का नैतिक बना सकें। मनुष्य की आत्मा गुणों का भंडार है लेकिन मनुष्य आत्मा के स्वभाव को न पहचान कर सांसारिक आपाधापी में मन रहता है। इस पुस्तक में आग्मा के दस गुणों वचन किया गया है जिससे मनुष्य आत्मा के स्वाभाव को पहचान कर स्वकल्याण कर सको
इस पुस्तक का मूल उद्देश्य जैन दर्शन में हर साल आने वाले पर्व दसलक्षण पर्व का विवेचन है कि दसलक्षण धर्म क्या होते है? और जैन दर्शन कनुर इस पर्व की पालना क्यों करते हैं? असल में कोई भी धर्म मानवता से ऊपर नहीं हो सकता। मानवता ही मनुष्य का प्रमुख चर्म है। सभी चों के शास्त्रों में लिखा है कि व्यक्ति की आत्मा ही परमात्मा है। जैन दर्शन किसी भी मत, संप्रदाय या किसी भी शारीरिक तिया के अपितु आत्मस्वरूप की पहचान का दर्शन है। इस पुस्तक में चर्म के दसलक्षणी (सुमन्त्र उत्तम मार्दव, आर्जय, सत्य, शौच, संयम, रूप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य साधारण बोलचाल की भाषा में किया गया है, जिससे सभी व्यक्ति दसलक्षण धर्म महत्ता को समझ सके और अपनी आत्मा में लीन होकर आत्मस्वरूप को पहचानकर अपने का नैतिक बना सकें। मनुष्य की आत्मा गुणों का भंडार है लेकिन मनुष्य आत्मा के स्वभाव को न पहचान कर सांसारिक आपाधापी में मन रहता है। इस पुस्तक में आग्मा के दस गुणों वचन किया गया है जिससे मनुष्य आत्मा के स्वाभाव को पहचान कर स्वकल्याण कर सको
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