![](https://padhegaindia.in/wp-content/themes/woodmart/images/lazy.png)
Save: 1%
![](https://padhegaindia.in/wp-content/themes/woodmart/images/lazy.png)
Save: 10%
कविता पेंटिंग पेड़ कुछ नहीं | KAVITA PANTING PED KUCHH NAHI
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹200 ₹199
Save: 1%
In stock
Ships within:
In stock
ISBN:
Page Extent:
कैलाश बनवासी एक अत्यंत मूल्यवान गठरी पर बैठे हैं। छत्तीसगढ़, बस्तर, सरगुजा के अँधेरों में एक ऐसा मनुष्य करवट ले रहा है जिसका बीज मुक्तिबोध ने बोया था। प्रेमचंद युग में भी बैल बिकने से वापस होते हैं, जैनेंद्र कुमार की गाय मनुष्यों की तरह बोलने लगती है बाज़ार में, उपेंद्रनाथ अश्क की डाची का भी संकेत इसी तरह जबरदस्त है और हमारे कैलाश बनवासी ने भी इसी मार्ग को रचनात्मक रूप से स्वीकार किया है। कैलाश बनवासी की कहानियाँ देहाती मध्यम वर्ग की प्रतिनिधि कहानियाँ हैं। इस समाज पर लिखने वाले विरल हैं। शिवपूजन सहाय की देहाती दुनिया से लेकर कैलाश बनवासी की देहाती दुनिया तक अगर देखा जाए तो दिलचस्प और खतरनाक परिवर्तन हो गये हैं । शोहदों, दलालों, फूहड़ अमीरों, हिंसक धर्मप्राणों और ज़मीन हड़पने का प्रचंड महाभारत चलाने वालों, यथास्थिति के लिए अपने प्राण झोंक देने वाले अध्यापकों के संदर्भ में अपनी कसैली कहानियाँ लिखने वाले कैलाश बनवासी का मैं हार्दिक अभिवादन करता हूँ। कैलाश की कहानियाँ श्वेत-श्याम हैं, कभी-कभी वे अमृता शेरगिल की कलाकृतियों की तरह धूसर हैं। हिंदी की रक्त वाहिनियों के बीच, धीमी जगह में, शहरी जौहर से दूर रहने वाले कैलाश बनवासी की बनायी गयी शोहरत नहीं है, उसने उसे सम्मान से अर्जित किया है। बनवासी की प्रकृति में विक्रय कला नहीं है, वह बिल्कुल कछुवा है, सख्त और धीमा है, हड़बड़ी में नहीं रहता। उसे पहचाना गया।
कैलाश बनवासी एक अत्यंत मूल्यवान गठरी पर बैठे हैं। छत्तीसगढ़, बस्तर, सरगुजा के अँधेरों में एक ऐसा मनुष्य करवट ले रहा है जिसका बीज मुक्तिबोध ने बोया था। प्रेमचंद युग में भी बैल बिकने से वापस होते हैं, जैनेंद्र कुमार की गाय मनुष्यों की तरह बोलने लगती है बाज़ार में, उपेंद्रनाथ अश्क की डाची का भी संकेत इसी तरह जबरदस्त है और हमारे कैलाश बनवासी ने भी इसी मार्ग को रचनात्मक रूप से स्वीकार किया है। कैलाश बनवासी की कहानियाँ देहाती मध्यम वर्ग की प्रतिनिधि कहानियाँ हैं। इस समाज पर लिखने वाले विरल हैं। शिवपूजन सहाय की देहाती दुनिया से लेकर कैलाश बनवासी की देहाती दुनिया तक अगर देखा जाए तो दिलचस्प और खतरनाक परिवर्तन हो गये हैं । शोहदों, दलालों, फूहड़ अमीरों, हिंसक धर्मप्राणों और ज़मीन हड़पने का प्रचंड महाभारत चलाने वालों, यथास्थिति के लिए अपने प्राण झोंक देने वाले अध्यापकों के संदर्भ में अपनी कसैली कहानियाँ लिखने वाले कैलाश बनवासी का मैं हार्दिक अभिवादन करता हूँ। कैलाश की कहानियाँ श्वेत-श्याम हैं, कभी-कभी वे अमृता शेरगिल की कलाकृतियों की तरह धूसर हैं। हिंदी की रक्त वाहिनियों के बीच, धीमी जगह में, शहरी जौहर से दूर रहने वाले कैलाश बनवासी की बनायी गयी शोहरत नहीं है, उसने उसे सम्मान से अर्जित किया है। बनवासी की प्रकृति में विक्रय कला नहीं है, वह बिल्कुल कछुवा है, सख्त और धीमा है, हड़बड़ी में नहीं रहता। उसे पहचाना गया।
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Related products
BHARTIYA ITIHAAS KA AADICHARAN: PASHAN YUG (in Hindi)
Save: 15%
BURHANPUR: Agyat Itihas, Imaratein aur Samaj (in Hindi)
Save: 15%
RELATED PRODUCTS
BHARTIYA ITIHAAS KA AADICHARAN: PASHAN YUG (in Hindi)
Save: 15%
BURHANPUR: Agyat Itihas, Imaratein aur Samaj (in Hindi)
Save: 15%
Reviews
There are no reviews yet.