SaleHardback
Dr. Bhimrao Ambedkar
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मनोहर बाथम , शृंखला सम्पादक लीलाधर मंडलोई
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मनोहर बाथम , शृंखला सम्पादक लीलाधर मंडलोई
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789326355445
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
64
डॉ. भीमराव अम्बेडकर –
‘यदि व्यक्ति का प्रेम तथा घृणा प्रबल नहीं है, तो वह आशा नहीं कर सकता कि वह अपने युग पर कोई प्रभाव छोड़ सकेगा और ऐसी सहायता प्रदान कर सकेगा, जो महान सिद्धांतों तथा संघर्ष की अपेक्षा लक्ष्यों के लिए उचित हो। मैं अन्याय, अत्याचार, आडंबर तथा अनर्थ से घृणा करता हूँ और मेरी घृणा उन सब लोगों के प्रति है, जो इन्हें अपनाते हैं। वह दोषी हैं। मैं अपने आलोचकों को यह बताना चाहता हूँ कि मैं अपने इन भावों को वास्तविक बल व शक्ति मानता हूँ। वे केवल उस प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, जो मैं उन लक्ष्यों व उद्देश्यों के लिए प्रकट करता हूँ, जिनके प्रति मेरा विश्वास है।’
– डॉ. भीमराव अम्बेडकर
܀܀܀
‘आज के अर्थ में मैं जात-पात को नहीं मानता। यह समाज का फालतू अंग है और तरक्की के रास्ते में रूकावट जैसा है। इसी तरह आदमी आदमी के बीच ऊँच-नीच का भेद भी मैं नहीं मानता। हम सब पूरी तरह बराबर हैं… कोई भी मनुष्य अपने को दूसरे से ऊँचा मानता है, तो वह ईश्वर और मनुष्य दोनों के सामने पाप करता है।
‘आज कल हिन्दू धर्म में जो देखने में आती है, वह उसका एक अमिट कलंक है। मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि वह हमारे समाज में बहुत पहले से चली आयी है। मेरा खयाल है कि अस्पृश्यता की यह घृणित भावना हम लोगों में तब आयी जब हम अपने पतन की चरम सीमा पर रहे होंगे। मैं मानता हूँ कि यह एक भयंकर अभिशाप है।’
– महात्मा गाँधी
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Description
डॉ. भीमराव अम्बेडकर –
‘यदि व्यक्ति का प्रेम तथा घृणा प्रबल नहीं है, तो वह आशा नहीं कर सकता कि वह अपने युग पर कोई प्रभाव छोड़ सकेगा और ऐसी सहायता प्रदान कर सकेगा, जो महान सिद्धांतों तथा संघर्ष की अपेक्षा लक्ष्यों के लिए उचित हो। मैं अन्याय, अत्याचार, आडंबर तथा अनर्थ से घृणा करता हूँ और मेरी घृणा उन सब लोगों के प्रति है, जो इन्हें अपनाते हैं। वह दोषी हैं। मैं अपने आलोचकों को यह बताना चाहता हूँ कि मैं अपने इन भावों को वास्तविक बल व शक्ति मानता हूँ। वे केवल उस प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, जो मैं उन लक्ष्यों व उद्देश्यों के लिए प्रकट करता हूँ, जिनके प्रति मेरा विश्वास है।’
– डॉ. भीमराव अम्बेडकर
܀܀܀
‘आज के अर्थ में मैं जात-पात को नहीं मानता। यह समाज का फालतू अंग है और तरक्की के रास्ते में रूकावट जैसा है। इसी तरह आदमी आदमी के बीच ऊँच-नीच का भेद भी मैं नहीं मानता। हम सब पूरी तरह बराबर हैं… कोई भी मनुष्य अपने को दूसरे से ऊँचा मानता है, तो वह ईश्वर और मनुष्य दोनों के सामने पाप करता है।
‘आज कल हिन्दू धर्म में जो देखने में आती है, वह उसका एक अमिट कलंक है। मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि वह हमारे समाज में बहुत पहले से चली आयी है। मेरा खयाल है कि अस्पृश्यता की यह घृणित भावना हम लोगों में तब आयी जब हम अपने पतन की चरम सीमा पर रहे होंगे। मैं मानता हूँ कि यह एक भयंकर अभिशाप है।’
– महात्मा गाँधी
About Author
मनोहर बाथम -
सृजन एवं पुरस्कार : पहली गद्य पुस्तक 'आतंकवाद- चुनौती और संघर्ष' के लिए पं. गोविन्दवल्लभ पंत पुरस्कार एवं इंदिरा गाँधी राजभाषा राष्ट्रीय पुरस्कार । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा सृजनात्मक लेखन के लिए 'अस्तित्व का संकट और मानव अधिकार' पुस्तक पुरस्कृत। अँग्रेजी पुस्तक 'The man who saw tomorrow' एवं 'Writing of a Rustam' का सम्पादन । 'उत्कृष्ट सेवा राष्ट्रपति पुलिस पदक' एवं 'सराहनीय सेवा राष्ट्रपति पुलिस पदक' से सम्मानित ।
अनुभव एवं उपलब्धि : सीमा प्रबंधन, आतंकवाद एवं मानवाधिकार विषयों पर विशेष शोध एवं लेखन । तीन कविता संग्रह प्रकाशित। 'सरहद से' कविता-संग्रह का 17 भारतीय भाषाओं में अनुवाद ।
सम्प्रति : सीमा सुरक्षा बल में अपर महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त । भारत सरकार के युवा एवं खेल मन्त्रालय में राजभाषा सलाहकार ।
सम्पर्क : सी-204, सेक्टर-6, टूरु फैंड अपार्टमेंट, द्वारका, नयी दिल्ली।
मोबाइल : 8743999898, 8827071919
ई-मेल : mlbathambsf@gmail.com
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