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Suno Radhike Suno
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₹250 ₹188
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सुनो राधिके सुनो –
यह शीर्षक सुनने में जितना मधुर लग रहा है, भीतर उतना ही उच्चस्तरीय आध्यात्मिक तत्व के गुम स्वरूप को सँजोए हुए है। यह भी सुखद संयोग ही है कि ‘श्री जी’ ने जिस दिव्य भूखण्ड पर लेखक को निज भक्ति का आभास करवाया, वह वृन्दावन ‘निधिवन’ तो आज भी रहस्यमय रूप से उस ‘अद्वैत द्वैत तत्त्व’ के अलौकिक रस-रासजन्य चिन्मय क्रीड़ा का साक्षात प्रमाण है। उसी का आस्वादन कर कवि ‘सुनो राधिके सुनो’ के द्वारा प्रसाद कण बाँटने में सक्षम हुआ है। साधुवाद है।
पुस्तक के पूर्वार्ध में लेखक ने दर्शनशास्त्र के इस मुख्य उद्देश्य को स्पष्ट किया है कि सच्चिदानन्द की मूल प्रकृति ही सत्तात्मिका, ज्ञानात्मिका और आनन्दात्मिका स्वरूप में सर्वत्र पसरी हुई है। वही महामाया सन्धिनी। संविद और आह्लादिनी शक्ति के रूप में अनेक प्रकार से प्रकट होती है। यही निर्गुण-निराकार और सगुण साकार के रूप में उत्पत्ति, पालन व संहार करते हुए आविर्तिरोभाव या ‘भूत्वा भूत्वा प्रलीयते’ का कारण बनती है। इस पुस्तक के ‘प्रेम भाव’, ‘प्रतीक्षा’ व ‘मोह’ सर्ग में इसी का दर्शन होता है। पर इस काव्य खण्ड का प्रमुख विषय परम रसाम्बुधि प्रेमस्वरूपा आह्लादिनी शक्ति हैं। जो कारण, सूक्ष्म, स्थूल रूप में व साधन-साधना-साध्य रूप में स्वयं ही प्रसरित हैं। पुस्तक के उत्तरार्ध में लेखक वर्तमान की स्थिति से चिन्तित है। संवाद के माध्यम से युवा पीढ़ी को सावधान करते हैं। प्रेम के विकृत, अविवेकी, स्वार्थजन्य और कामवासना युक्त स्वरुप से बचने का परामर्श देते हैं। इस पुस्तक में आध्यात्मिक और आधिभौतिक स्तर को मिलाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण सेतु का निर्माण किया गया है।
‘आहट’ सर्ग इसी चिन्ता, चिन्तन व सजगता को समर्पित है।
मुझे विश्वास है यह खण्ड काव्य आधुनिक जगत का तथा विशेषकर युवा वर्ग का मार्गदर्शन करेगा। आज के श्रीमद् भागवत महापुराण के कथावाचक भी इसमें वर्णित सात्विक भक्ति का अवलोकन कर प्रेरणा प्राप्त करेंगे।–स्वामी भक्ति मणि
सुनो राधिके सुनो –
यह शीर्षक सुनने में जितना मधुर लग रहा है, भीतर उतना ही उच्चस्तरीय आध्यात्मिक तत्व के गुम स्वरूप को सँजोए हुए है। यह भी सुखद संयोग ही है कि ‘श्री जी’ ने जिस दिव्य भूखण्ड पर लेखक को निज भक्ति का आभास करवाया, वह वृन्दावन ‘निधिवन’ तो आज भी रहस्यमय रूप से उस ‘अद्वैत द्वैत तत्त्व’ के अलौकिक रस-रासजन्य चिन्मय क्रीड़ा का साक्षात प्रमाण है। उसी का आस्वादन कर कवि ‘सुनो राधिके सुनो’ के द्वारा प्रसाद कण बाँटने में सक्षम हुआ है। साधुवाद है।
पुस्तक के पूर्वार्ध में लेखक ने दर्शनशास्त्र के इस मुख्य उद्देश्य को स्पष्ट किया है कि सच्चिदानन्द की मूल प्रकृति ही सत्तात्मिका, ज्ञानात्मिका और आनन्दात्मिका स्वरूप में सर्वत्र पसरी हुई है। वही महामाया सन्धिनी। संविद और आह्लादिनी शक्ति के रूप में अनेक प्रकार से प्रकट होती है। यही निर्गुण-निराकार और सगुण साकार के रूप में उत्पत्ति, पालन व संहार करते हुए आविर्तिरोभाव या ‘भूत्वा भूत्वा प्रलीयते’ का कारण बनती है। इस पुस्तक के ‘प्रेम भाव’, ‘प्रतीक्षा’ व ‘मोह’ सर्ग में इसी का दर्शन होता है। पर इस काव्य खण्ड का प्रमुख विषय परम रसाम्बुधि प्रेमस्वरूपा आह्लादिनी शक्ति हैं। जो कारण, सूक्ष्म, स्थूल रूप में व साधन-साधना-साध्य रूप में स्वयं ही प्रसरित हैं। पुस्तक के उत्तरार्ध में लेखक वर्तमान की स्थिति से चिन्तित है। संवाद के माध्यम से युवा पीढ़ी को सावधान करते हैं। प्रेम के विकृत, अविवेकी, स्वार्थजन्य और कामवासना युक्त स्वरुप से बचने का परामर्श देते हैं। इस पुस्तक में आध्यात्मिक और आधिभौतिक स्तर को मिलाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण सेतु का निर्माण किया गया है।
‘आहट’ सर्ग इसी चिन्ता, चिन्तन व सजगता को समर्पित है।
मुझे विश्वास है यह खण्ड काव्य आधुनिक जगत का तथा विशेषकर युवा वर्ग का मार्गदर्शन करेगा। आज के श्रीमद् भागवत महापुराण के कथावाचक भी इसमें वर्णित सात्विक भक्ति का अवलोकन कर प्रेरणा प्राप्त करेंगे।–स्वामी भक्ति मणि
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