Sevasadan
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सेवासदन –
प्रेमचन्द का उपन्यास ‘सेवासदन’ एक कालजयी रचना है जिसमें दहेज-प्रथा, अनमेल-विवाह, नारियों के प्रति दृष्टिकोण आदि विषयों को उपन्यास का कथावस्तु बनाया गया है। सुमन के माध्यम से लेखक ने स्त्रीत्व की गरिमा को एक ऊँचाई पर दिखाने का प्रयास किया है। उपन्यास इस बात को मज़बूत आधार देता है कि नारियाँ अब अपने बौद्धिक विवेक और चेतना का इस्तेमाल करती हैं। वे किसी भी तरफ़ की विचारधारा में क़ैद होकर जीने वाली नहीं है, उसे तो ठोस सत्य और अनन्त आकाश चाहिए।
इस उपन्यास का मूल प्रश्न यही है कि क्या सुमन इस समाज में अपने पूर्वकर्मों को छोड़कर एक नया जीवन शुरू कर सकती है या नहीं? क्या उसे एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का इस समाज में कोई अधिकार है या नहीं? क्या उसकी निष्ठा हमेशा सन्देहास्पद ही समझी जायेगी? क्या उसके पास कोई वैकल्पिक जीवन नहीं है? क्या वो किसी पुरुष के साथ अपना जीवन फिर से शुरू नहीं कर सकती? क्या समाज उसे त्याग की मूर्ति और वैराग्य का जीवन जीने का ही एकमात्र मार्ग दे पायेगा? ये सभी प्रश्न उलझे हुए हैं और इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रेमचन्द के पास भी शायद नहीं था इसीलिए उन्होंने उपन्यास के अन्त में सुमन के त्याग को और अधिक ऊँचाई दे दी।
सेवासदन –
प्रेमचन्द का उपन्यास ‘सेवासदन’ एक कालजयी रचना है जिसमें दहेज-प्रथा, अनमेल-विवाह, नारियों के प्रति दृष्टिकोण आदि विषयों को उपन्यास का कथावस्तु बनाया गया है। सुमन के माध्यम से लेखक ने स्त्रीत्व की गरिमा को एक ऊँचाई पर दिखाने का प्रयास किया है। उपन्यास इस बात को मज़बूत आधार देता है कि नारियाँ अब अपने बौद्धिक विवेक और चेतना का इस्तेमाल करती हैं। वे किसी भी तरफ़ की विचारधारा में क़ैद होकर जीने वाली नहीं है, उसे तो ठोस सत्य और अनन्त आकाश चाहिए।
इस उपन्यास का मूल प्रश्न यही है कि क्या सुमन इस समाज में अपने पूर्वकर्मों को छोड़कर एक नया जीवन शुरू कर सकती है या नहीं? क्या उसे एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का इस समाज में कोई अधिकार है या नहीं? क्या उसकी निष्ठा हमेशा सन्देहास्पद ही समझी जायेगी? क्या उसके पास कोई वैकल्पिक जीवन नहीं है? क्या वो किसी पुरुष के साथ अपना जीवन फिर से शुरू नहीं कर सकती? क्या समाज उसे त्याग की मूर्ति और वैराग्य का जीवन जीने का ही एकमात्र मार्ग दे पायेगा? ये सभी प्रश्न उलझे हुए हैं और इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रेमचन्द के पास भी शायद नहीं था इसीलिए उन्होंने उपन्यास के अन्त में सुमन के त्याग को और अधिक ऊँचाई दे दी।
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