SaleHardback
Manto Ki Sadi
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रवींद्र कालिया
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रवींद्र कालिया
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789326350440
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
328
मंटो की सदी –
यह उर्दू के महान अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो का शताब्दी वर्ष है। मंटो इस उप-महाद्वीप के निराले कथाकार थे। इन सौ बरसों में मंटो जैसी शख़्सियत न अवतरित हुई और न शायद अगले सौ बरसों में हो। आज अगर मंटो होते तो 2011 में वह सौवें साल में प्रवेश कर जाते। मंटो उर्दू के कथाकार थे, मगर हिन्दी में उनकी मक़बूलियत कम नहीं थी। हिन्दी क्या, किसी भी भारतीय अथवा विदेशी भाषा के लिए मंटो एक जाना-पहचाना नाम है। उनके कथा-शिल्प की तुलना विश्व के श्रेष्ठतम कथाकारों से की जा सकती है।
अपने दौर में मंटो पर कृशन चन्दर, उपेन्द्रनाथ अश्क, इस्मत चुग़ताई ने बहुत आत्मीय संस्मरण लिखे थे। इस्मत आपा का संस्मरण प्रकाशित करने की हमारी बहुत इच्छा थी, मगर वह हमें प्राप्त नहीं हो पाया। कृशन चन्दर ने मंटो पर दो संस्मरण लिखे थे, एक उनके जीवन काल में और दूसरा उनके निधन के बाद इन दोनों संस्मरणों के लिए भी तलाश शुरू की। उर्दू के अनेक रचनाकारों से सम्पर्क साधा, मगर फिर निराशा ही हाथ लगी। कृशन चन्दर ने कहीं ठीक ही लिखा था कि मंटो एक ग़रीब सतायी हुई ज़ुबान का ग़रीब और सताया हुआ साहित्यकार था। उर्दू को एक सतायी हुई ज़ुबान तो कहा जा सकता है मगर उर्दू ज़ुबान को एक दौलतमन्द ज़ुबान का दर्जा हासिल है, जो लगातार गुरबत की तरफ़ बढ़ रही है। उर्दू में मंटो पर सामग्री खोजना मुश्क़िल काम है, मगर हिन्दी में मंटो पर सामग्री जुटाने में ज़्यादा मुश्क़िल नहीं आयी।
वैसे तो मंटो उर्दू के अफ़सानानिग़ार थे, मगर हिन्दी में भी कम लोकप्रिय न थे। आने वाली नस्लों ने मंटो को ख़ूब पढ़ा। मंटो विश्व के उन चन्द अफ़सानानिग़ारों में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने केवल कहानी विधा के बल पर अदब में इतना बड़ा मुक़ाम में हासिल किया। इस दृष्टि से वह चेखव, मोपासाँ, ओ. हेनरी की कतार में शामिल किये जा सकते हैं।
हमारी कोशिश रही है कि प्रस्तुत संचयन की मार्फ़त हमारे पाठक उर्दू की इस अजीम शख़्सियत सआदत हसन मंटो के व्यक्तित्व और कृतित्व से भली भाँति रू-ब-रू हो सकें।
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Description
मंटो की सदी –
यह उर्दू के महान अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो का शताब्दी वर्ष है। मंटो इस उप-महाद्वीप के निराले कथाकार थे। इन सौ बरसों में मंटो जैसी शख़्सियत न अवतरित हुई और न शायद अगले सौ बरसों में हो। आज अगर मंटो होते तो 2011 में वह सौवें साल में प्रवेश कर जाते। मंटो उर्दू के कथाकार थे, मगर हिन्दी में उनकी मक़बूलियत कम नहीं थी। हिन्दी क्या, किसी भी भारतीय अथवा विदेशी भाषा के लिए मंटो एक जाना-पहचाना नाम है। उनके कथा-शिल्प की तुलना विश्व के श्रेष्ठतम कथाकारों से की जा सकती है।
अपने दौर में मंटो पर कृशन चन्दर, उपेन्द्रनाथ अश्क, इस्मत चुग़ताई ने बहुत आत्मीय संस्मरण लिखे थे। इस्मत आपा का संस्मरण प्रकाशित करने की हमारी बहुत इच्छा थी, मगर वह हमें प्राप्त नहीं हो पाया। कृशन चन्दर ने मंटो पर दो संस्मरण लिखे थे, एक उनके जीवन काल में और दूसरा उनके निधन के बाद इन दोनों संस्मरणों के लिए भी तलाश शुरू की। उर्दू के अनेक रचनाकारों से सम्पर्क साधा, मगर फिर निराशा ही हाथ लगी। कृशन चन्दर ने कहीं ठीक ही लिखा था कि मंटो एक ग़रीब सतायी हुई ज़ुबान का ग़रीब और सताया हुआ साहित्यकार था। उर्दू को एक सतायी हुई ज़ुबान तो कहा जा सकता है मगर उर्दू ज़ुबान को एक दौलतमन्द ज़ुबान का दर्जा हासिल है, जो लगातार गुरबत की तरफ़ बढ़ रही है। उर्दू में मंटो पर सामग्री खोजना मुश्क़िल काम है, मगर हिन्दी में मंटो पर सामग्री जुटाने में ज़्यादा मुश्क़िल नहीं आयी।
वैसे तो मंटो उर्दू के अफ़सानानिग़ार थे, मगर हिन्दी में भी कम लोकप्रिय न थे। आने वाली नस्लों ने मंटो को ख़ूब पढ़ा। मंटो विश्व के उन चन्द अफ़सानानिग़ारों में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने केवल कहानी विधा के बल पर अदब में इतना बड़ा मुक़ाम में हासिल किया। इस दृष्टि से वह चेखव, मोपासाँ, ओ. हेनरी की कतार में शामिल किये जा सकते हैं।
हमारी कोशिश रही है कि प्रस्तुत संचयन की मार्फ़त हमारे पाठक उर्दू की इस अजीम शख़्सियत सआदत हसन मंटो के व्यक्तित्व और कृतित्व से भली भाँति रू-ब-रू हो सकें।
About Author
रवीन्द्र कालिया -
जन्म: 1 अप्रैल, 1939।
हिन्दी साहित्य में एम.ए.। प्रख्यात कथाकार, संस्मरण लेखक और यशस्वी सम्पादक।
प्रमुख कृतियाँ: 'नौ साल छोटी पत्नी', 'ग़रीबी हटाओ', 'चकैया नीम', 'ज़रा-सी रोशनी', 'गली कूचे', 'रवीन्द्र कालिया की कहानियाँ' (कहानी संग्रह); 'ख़ुदा सही सलामत है', 'ए.बी.सी.डी.', '17 रानडे रोड' (उपन्यास); 'ग़ालिब छुटी शराब' (संस्मरण)।
उल्लेखनीय सम्पादित पुस्तकें: 'मेरी प्रिय सम्पादित कहानियाँ', 'मोहन राकेश की श्रेष्ठ कहानियाँ' और 'अमरकान्त'। देश-विदेश में अनेक संकलनों में रचनाएँ सम्मिलित। विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में उपन्यास व कहानी शामिल। कई महाविद्यालयों में हिन्दी प्रवक्ता के रूप में कार्य। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित 'भाषा' का सह-सम्पादन। 'धर्मयुग' में वरिष्ठ उप सम्पादक।
अन्य सम्पादित पत्रिकाएँ: 'वर्तमान साहित्य' (कहानी महाविशेषांक), 'वर्ष अमरकान्त', 'साप्ताहिक गंगा यमुना' और 'वागर्थ'। अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रमों के सन्दर्भ में अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान, नीदरलैंड, सूरीनाम व अन्य लातिन अमेरिकी देशों की यात्रा।
प्रमुख सम्मान व पुरस्कार: 'शिरोमणि साहित्य सम्मान' (पंजाब); 'लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान' (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान); 'साहित्य भूषण सम्मान' (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान); 'प्रेमचन्द सम्मान', 'पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सम्मान' (मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी) आदि।
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