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Ludwig Wittgenstein : Tractatus Logico-Philosophicus
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
लुडविग विट्गेन्स्टाइन, अनुवादक अशोक बोहरा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
लुडविग विट्गेन्स्टाइन, अनुवादक अशोक बोहरा
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹200 ₹199
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In stock
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1-4 Days
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ISBN:
SKU
9789326354783
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
112
लुडविग विट्सगेंस्टाइन : ट्रैक्टेटस लॉज़िको-फिलोसॉफ़िकस –
लुडविग विट्गेन्स्टाइन बीसवीं शताब्दी के प्रखरतम भाषा-दार्शनिक है। पश्चिमी जगत के श्रेष्ठ मौलिक दार्शनिकों में प्लेटो के बाद उनकी ही होती है। उनकी ही विभिन्न कृतियों में ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उनके जीवन काल में केवल यही कृति प्रकाशित हुई थी। इस ग्रन्थ में इस महान दार्शनिक ने अर्थ-सत्य के प्रकाशन में भाषा की भूमिका और उसकी सीमाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। अशोक बोहरा का यह अनुवाद मैंने आद्योपान्त पढ़ा। अनुवाद को पढ़ने के बाद ऐसा लगता ही नहीं कि यह कोई अनुवाद कृति है। वस्तुतः यह स्वयं में एक मौलिक रचना का भान देती है, विट्गेन्स्टाइन की दार्शनिक दुरूता, उनकी सोच की गहनता और विचारों की अभिव्यक्ति का ढंग इस अनुवाद में हूबहू उकेर दिया गया है। दर्शन शास्त्र के जिज्ञासु, विशेषतः विट्गेन्स्टाइन के दर्शन में रुचि रखने वाले हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति एक अनुपम उपहार है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी जगत इस रचना से उपकृत होगा।—कपिला वात्स्यायन
लुडविग विट्गेन्स्टाइन पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में एक किवदन्ती पुरुष हैं और उनका प्रथम ग्रन्थ ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस एक अत्यन्त दुर्बोध और दुःसाध्य ग्रन्थ के रूप में विख्यात रहा है। ब्रह्मसूत्र की तरह सूत्र-शैली में रचित और अपने विन्यास में उससे भी अधिक जटिल यह ग्रन्थ बेटैंड रसेल जैसे दार्शनिक के लिए भी मुद्दत तक एक पहेली रहा है। ऐसे ग्रन्थ का हिन्दी में भावान्तर एक तरह से लोहे के चने चबाने जैसा कार्य है। प्रोफ़ेसर अशोक बोहरा ने इस असम्भव कार्य को सम्भव बनाया, यह अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है। प्रोफ़ेसर अशोक वोहरा पहले भी विट्गेन्स्टाइन के फिलोसॉफ़िकस इन्वेस्टिगेशंस, कल्चर एंड वैल्यू ऑन सर्ट्रेन्टि तीन ग्रन्थों को हिन्दी में प्रस्तुत कर चुके हैं और भारतीय दर्शन के आधुनिक अध्येताओं ने उनका हार्दिक स्वागत किया है। ट्रैक्टेटस के हिन्दी अनुवाद के साथ एक तरह से उनके मिशन की पूर्णाहुति हो रही है और इस अवसर पर मैं उन्हें हार्दिक साधुवाद देता हूँ। यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि अशोक जी का यह हिन्दी ट्रैक्टेटस मूल पाठ के सन्निकट, सुबोध, सुपाठ्य एवं स्वच्छ है।—नामवर सिंह
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Description
लुडविग विट्सगेंस्टाइन : ट्रैक्टेटस लॉज़िको-फिलोसॉफ़िकस –
लुडविग विट्गेन्स्टाइन बीसवीं शताब्दी के प्रखरतम भाषा-दार्शनिक है। पश्चिमी जगत के श्रेष्ठ मौलिक दार्शनिकों में प्लेटो के बाद उनकी ही होती है। उनकी ही विभिन्न कृतियों में ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उनके जीवन काल में केवल यही कृति प्रकाशित हुई थी। इस ग्रन्थ में इस महान दार्शनिक ने अर्थ-सत्य के प्रकाशन में भाषा की भूमिका और उसकी सीमाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। अशोक बोहरा का यह अनुवाद मैंने आद्योपान्त पढ़ा। अनुवाद को पढ़ने के बाद ऐसा लगता ही नहीं कि यह कोई अनुवाद कृति है। वस्तुतः यह स्वयं में एक मौलिक रचना का भान देती है, विट्गेन्स्टाइन की दार्शनिक दुरूता, उनकी सोच की गहनता और विचारों की अभिव्यक्ति का ढंग इस अनुवाद में हूबहू उकेर दिया गया है। दर्शन शास्त्र के जिज्ञासु, विशेषतः विट्गेन्स्टाइन के दर्शन में रुचि रखने वाले हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति एक अनुपम उपहार है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी जगत इस रचना से उपकृत होगा।—कपिला वात्स्यायन
लुडविग विट्गेन्स्टाइन पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में एक किवदन्ती पुरुष हैं और उनका प्रथम ग्रन्थ ट्रैक्टेटस लॉजिको फिलोसॉफ़िकस एक अत्यन्त दुर्बोध और दुःसाध्य ग्रन्थ के रूप में विख्यात रहा है। ब्रह्मसूत्र की तरह सूत्र-शैली में रचित और अपने विन्यास में उससे भी अधिक जटिल यह ग्रन्थ बेटैंड रसेल जैसे दार्शनिक के लिए भी मुद्दत तक एक पहेली रहा है। ऐसे ग्रन्थ का हिन्दी में भावान्तर एक तरह से लोहे के चने चबाने जैसा कार्य है। प्रोफ़ेसर अशोक बोहरा ने इस असम्भव कार्य को सम्भव बनाया, यह अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है। प्रोफ़ेसर अशोक वोहरा पहले भी विट्गेन्स्टाइन के फिलोसॉफ़िकस इन्वेस्टिगेशंस, कल्चर एंड वैल्यू ऑन सर्ट्रेन्टि तीन ग्रन्थों को हिन्दी में प्रस्तुत कर चुके हैं और भारतीय दर्शन के आधुनिक अध्येताओं ने उनका हार्दिक स्वागत किया है। ट्रैक्टेटस के हिन्दी अनुवाद के साथ एक तरह से उनके मिशन की पूर्णाहुति हो रही है और इस अवसर पर मैं उन्हें हार्दिक साधुवाद देता हूँ। यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि अशोक जी का यह हिन्दी ट्रैक्टेटस मूल पाठ के सन्निकट, सुबोध, सुपाठ्य एवं स्वच्छ है।—नामवर सिंह
About Author
अशोक बोहरा -
अशोक बोहरा दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष रहे हैं। वे कला संकाय के डीन भी रहे हैं। इन्होंने सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज में दस वर्ष तक अध्यापन किया और वर्ष 1995 से 1998 तक भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् के सदस्य सचिव रहे। आपके राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं, पुस्तकों, समाचार पत्रों इत्यादि में दो सौ से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं। वर्ष 1986 में क्रम हेल्म द्वारा प्रकाशित विट्गेन्स्टाइन फिलोसॉफ़ी ऑफ़ माइंड पुस्तक के लिए इंडियन फिलोसॉफिकल कांग्रेस द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया। वर्ष 1989 में के सच्चिदानन्द मूर्ति के साथ लिखी इनकी पुस्तक राधाकृष्णन : हिज़ लाइफ़ एंड आइडियाज़, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क से प्रकाशित हुई। इसी पुस्तक का भारतीय संस्करण अजन्ता पब्लिकेशन्स और संशोधित लघु संस्करण ओरियन्ट पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित किया गया। वर्ष 1995 और वर्ष 1998 में भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् द्वारा प्रकाशित लुडविग विट्गेन्स्टाइन की कृतियों फ़िलोसॉफिकल इन्वेस्टिगेशन्स, कल्चर एंड वैल्यू के हिन्दी अनुवादों के लिए अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा इन्हें क्रमशः वर्ष 1996 और 1998 के स्वामी प्रणवानन्द दर्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1998 में ही लुडविग विट्गेन्स्टाइन की कृति ऑन सर्टेन्टि के इनके अनुवाद का प्रकाशन भारतीय अनुसन्धान दर्शन परिषद् द्वारा किया गया। वर्ष 2000 में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला ने राधाकृष्णन स्मृति व्याख्यान 1996 और 1997 में इनके द्वारा किये गये अनुवाद का प्रकाशन किया। वर्ष 1995 और 2005 में इनकी सह सम्पादित पुस्तकें द फ़िलोसॉफ़ी ऑफ़ के. सच्चिदानन्द मूर्ति और धर्म : द कैटेगोरियल इम्पैरेटिव प्रकाशित हुई। इनकी पुस्तक विट्गेन्स्टाइन फिलोसॉफ़ि ऑफ़ माइंड को वर्ष 2014 में रूटलेज लन्दन ने अपनी रूटलेज रवाईवल्स सिरीज में पुनः प्रकाशित किया है। वीवा ग्रुप द्वारा वर्ष 2014 में इनकी पुस्तक मैन, मोरल्स एंड सेल्फ़ : ए फिलॉसॉफिकल प्रेस्पक्टिव प्रकाशित हुई है। वे नियमित रूप से द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, द पॉयोनीयर, द हिन्दुस्तान टाइम्स और द ट्रिब्यून में धर्म और दर्शन सम्बन्धी लेख लिखते रहते हैं।
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