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Vishkanya
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विषकन्या –
मैं रवीन्द्र त्यागी को एक श्रेष्ठ कवि और एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार स्वीकार करता हूँ। उनकी विशिष्टता का एक प्रमुख कारण यह है कि हमारे जो पुराने क्लासिक हैं, उनमें उनकी गति है। वे सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं। ऐसा प्रवाहमय विट-सम्पन्न गद्य मुझसे लिखते नहीं बनता…।—हरिशंकर परसाई
त्यागी जी में वह ज़िन्दादिली है या मस्ती और बेफ़िक्री है कि उनके लेखन को उन्मुक्त लेखन का दर्जा दिया जा सकता है। वैसे भी हिन्दी की नामर्दी और स्त्रैणता दूर करने के लिए जिन लोगों ने काम किया है, उनमें रवीन्द्रनाथ त्यागी का नाम भुलाना मुश्किल है। जो लेखन एक ‘ज्वॉय’ दे, एक ‘एक्सटैसी’ दे, उसके महत्त्व को इनकार कैसे किया जा सकता है….।—डॉ. धनंजय वर्मा
ये रचनाएँ ढँके को उघारती हैं, औंधे को सीधा करती हैं, फूलों का सुवास बिखेरती हैं और काँटे चुभाकर भी गुदगुदी पैदा करती हैं। लगता है जैसे हीरे को तराशा जाता हुआ देख रहा हूँ। रवीन्द्रनाथ त्यागी धन्य हैं जो लाठी से बाँसुरी बजाते हैं….।—राधाकृष्ण
हमारे इने-गिने निबन्ध-लेखकों में रवीन्द्रनाथ त्यागी का अपना रंग है, अपनी जगह है—और वह भी केवल निबन्ध-लेखकों की विरलता के कारण ही नहीं वरन्, अपने स्तरीय वैशिष्ट्य के कारण….।—बालकृष्ण राव
विषकन्या –
मैं रवीन्द्र त्यागी को एक श्रेष्ठ कवि और एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार स्वीकार करता हूँ। उनकी विशिष्टता का एक प्रमुख कारण यह है कि हमारे जो पुराने क्लासिक हैं, उनमें उनकी गति है। वे सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं। ऐसा प्रवाहमय विट-सम्पन्न गद्य मुझसे लिखते नहीं बनता…।—हरिशंकर परसाई
त्यागी जी में वह ज़िन्दादिली है या मस्ती और बेफ़िक्री है कि उनके लेखन को उन्मुक्त लेखन का दर्जा दिया जा सकता है। वैसे भी हिन्दी की नामर्दी और स्त्रैणता दूर करने के लिए जिन लोगों ने काम किया है, उनमें रवीन्द्रनाथ त्यागी का नाम भुलाना मुश्किल है। जो लेखन एक ‘ज्वॉय’ दे, एक ‘एक्सटैसी’ दे, उसके महत्त्व को इनकार कैसे किया जा सकता है….।—डॉ. धनंजय वर्मा
ये रचनाएँ ढँके को उघारती हैं, औंधे को सीधा करती हैं, फूलों का सुवास बिखेरती हैं और काँटे चुभाकर भी गुदगुदी पैदा करती हैं। लगता है जैसे हीरे को तराशा जाता हुआ देख रहा हूँ। रवीन्द्रनाथ त्यागी धन्य हैं जो लाठी से बाँसुरी बजाते हैं….।—राधाकृष्ण
हमारे इने-गिने निबन्ध-लेखकों में रवीन्द्रनाथ त्यागी का अपना रंग है, अपनी जगह है—और वह भी केवल निबन्ध-लेखकों की विरलता के कारण ही नहीं वरन्, अपने स्तरीय वैशिष्ट्य के कारण….।—बालकृष्ण राव
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