Vyasparva
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹90 ₹89
Save: 1%
Out of stock
Receive in-stock notifications for this.
Ships within:
Out of stock
ISBN:
Page Extent:
व्यास पर्व –
‘महाभारत’ का अध्ययन, मनन और उसकी व्याख्या किसी के लिए भी एक चुनौती है। उसके सामाजिक आशय के सम्यक् स्वरूप को पहचानना अथवा विशद रूप में समझाना तो और भी कठिन है। मराठी भाषा की प्रमुख चिन्तक साहित्यकार दुर्गा भागवत ने ‘महाभारत’ के सत्य को उसके प्रमुख पात्रों के माध्यम से अत्यन्त सहज और लालित्यपूर्ण ढंग से व्याख्यायित किया है जिससे यह पुस्तक पठनीय ही नहीं सामान्य पाठकों के लिए भी बोधगम्य बन गयी है।
‘व्यासपर्व’ गहन चिन्तन और ललित अभिव्यक्ति के सहज सामंजस्य से निर्मित एक मनोरम रचना है जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि करुणा जब प्राणों में बस जाती है तभी धर्म का दर्शन होता है। उन्होंने इस जीवन सत्य की ओर भी इंगित किया है कि मनुष्य मूलतः मनुष्य है; उसका लक्ष्य भी मनुष्य ही है।
श्रीकृष्ण, भीष्म, द्रोण, गान्धारी, अश्वत्थामा, अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण, विदुर, द्रौपदी, एकलव्य आदि की अद्भुत झाँकी दुर्गा भागवत की लेखनी से मुखरित हुई है, जिनमें व्यक्तित्व और इतिहास ही नहीं हमारा समय भी मुखरित होता है।
निःसन्देह ‘व्यासपर्व’ भारतीय संस्कृति की एक बहुआयामी व्याख्या है। यह कृति गद्य भी है और काव्य भी, जो ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के समन्वित स्वरूप को उद्भासित करती है।
मूल मराठी की इस कृति का सरस अनुवाद प्रस्तुत किया है श्री वसन्त देव ने। अपनी नयी साज-सजा के साथ, पाठकों को समर्पित है इसका यह पुनर्नवा संस्करण!
व्यास पर्व –
‘महाभारत’ का अध्ययन, मनन और उसकी व्याख्या किसी के लिए भी एक चुनौती है। उसके सामाजिक आशय के सम्यक् स्वरूप को पहचानना अथवा विशद रूप में समझाना तो और भी कठिन है। मराठी भाषा की प्रमुख चिन्तक साहित्यकार दुर्गा भागवत ने ‘महाभारत’ के सत्य को उसके प्रमुख पात्रों के माध्यम से अत्यन्त सहज और लालित्यपूर्ण ढंग से व्याख्यायित किया है जिससे यह पुस्तक पठनीय ही नहीं सामान्य पाठकों के लिए भी बोधगम्य बन गयी है।
‘व्यासपर्व’ गहन चिन्तन और ललित अभिव्यक्ति के सहज सामंजस्य से निर्मित एक मनोरम रचना है जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि करुणा जब प्राणों में बस जाती है तभी धर्म का दर्शन होता है। उन्होंने इस जीवन सत्य की ओर भी इंगित किया है कि मनुष्य मूलतः मनुष्य है; उसका लक्ष्य भी मनुष्य ही है।
श्रीकृष्ण, भीष्म, द्रोण, गान्धारी, अश्वत्थामा, अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण, विदुर, द्रौपदी, एकलव्य आदि की अद्भुत झाँकी दुर्गा भागवत की लेखनी से मुखरित हुई है, जिनमें व्यक्तित्व और इतिहास ही नहीं हमारा समय भी मुखरित होता है।
निःसन्देह ‘व्यासपर्व’ भारतीय संस्कृति की एक बहुआयामी व्याख्या है। यह कृति गद्य भी है और काव्य भी, जो ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के समन्वित स्वरूप को उद्भासित करती है।
मूल मराठी की इस कृति का सरस अनुवाद प्रस्तुत किया है श्री वसन्त देव ने। अपनी नयी साज-सजा के साथ, पाठकों को समर्पित है इसका यह पुनर्नवा संस्करण!
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Reviews
There are no reviews yet.