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Yug Yug Se Tu Hi
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अजय कांडर, अनुवाद सुधाकर शेंडगे
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अजय कांडर, अनुवाद सुधाकर शेंडगे
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹325 ₹244
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ISBN:
SKU
9789357755634
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
92
अजय कांडर द्वारा रचित और सुधाकर शेंडगे द्वारा मराठी से हिन्दी में अनूदित युग-युग से तू ही बाबासाहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर केन्द्रित एक लम्बी कविता है। यह कविता की पुस्तक बाबासाहब आम्बेडकर के जीवन, संघर्ष और उनके द्वारा किये गये सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन को प्रभावित करने वाले युग प्रवर्तक कार्यों की विशद व्याख्या करती है। साथ ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनका मूल्यांकन भी करती है। बाबासाहब आम्बेडकर ने समाज को समानता, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व की राह दिखायी । वह कोई टेढ़ी-मेढ़ी राह नहीं है, एकदम सीधी और सरल है। इस राह पर कोई भी चल सकता है और सबसे बड़ी बात यह कि इस राह पर सब साथ-साथ चल सकते हैं। इस राह पर चलने से किसी को कोई भी ऊँचा-नीचा, छोटा-बड़ा या सछूत-अछूत नहीं दिखाई देगा, सब मनुष्य दिखाई देंगे। कवि बाबासाहब आम्बेडकर को ऐसे महापुरुष के रूप में देखता है जिनका जाति से ऊपर उठकर मनुष्यता में विश्वास है तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देते हैं। कवि के शब्दों में-
“इस दुनिया में
अकेले तुम ही हो
जिसके खून में मुझे कहीं भी
न जाति, न धर्म, न पन्थ
न ईश्वर कहीं दिखाई दिया।”
यह सही भी है क्योंकि बाबासाहब अकेले ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज के निर्माण का आह्वान किया और उसके लिए दीर्घ संघर्ष किया तथा संकीर्णतावादी और विषमतावादी धर्म को त्यागकर बौद्ध धम्म को अपनाया । धम्म अर्थात प्रज्ञा, शील और करुणा, समता, मैत्री और बन्धुता का मार्ग, जबकि समाज में जाति और धर्म के आधार पर समाज में वैमनस्यता, विरोध और हिंसा देखने को मिलती है। वर्चस्व की मानसिकता के लोग सबके साथ चलने को तैयार नहीं, वे अपनी अलग राह पर ही चलना पसन्द करते हैं। जातिगत श्रेष्ठता के अहंकार से मुक्त होकर, मनुष्यों के साथ मनुष्य होकर जीना उन्हें स्वीकार्य नहीं है, इसलिए वे प्रेम, सद्भाव के सीधे, सरल विचार को नहीं अपनाते, अपितु घृणा, हिंसा और असमानतावादी विचारों का पालन करते हैं। वर्चस्ववाद की यह अहंकारी भावना मनुष्यता का निरन्तर ध्वंस और दमन कर रही है। जातीय और सम्प्रदाय की अस्मिताओं की आग में जलती मनुष्यता को बचाने के लिए यदि सच्चे और पूरे मन से कोई आगे आया तो वह बाबासाहब आम्बेडकर थे।
-डॉ. जयप्रकाश कर्दम
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Description
अजय कांडर द्वारा रचित और सुधाकर शेंडगे द्वारा मराठी से हिन्दी में अनूदित युग-युग से तू ही बाबासाहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर केन्द्रित एक लम्बी कविता है। यह कविता की पुस्तक बाबासाहब आम्बेडकर के जीवन, संघर्ष और उनके द्वारा किये गये सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन को प्रभावित करने वाले युग प्रवर्तक कार्यों की विशद व्याख्या करती है। साथ ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनका मूल्यांकन भी करती है। बाबासाहब आम्बेडकर ने समाज को समानता, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व की राह दिखायी । वह कोई टेढ़ी-मेढ़ी राह नहीं है, एकदम सीधी और सरल है। इस राह पर कोई भी चल सकता है और सबसे बड़ी बात यह कि इस राह पर सब साथ-साथ चल सकते हैं। इस राह पर चलने से किसी को कोई भी ऊँचा-नीचा, छोटा-बड़ा या सछूत-अछूत नहीं दिखाई देगा, सब मनुष्य दिखाई देंगे। कवि बाबासाहब आम्बेडकर को ऐसे महापुरुष के रूप में देखता है जिनका जाति से ऊपर उठकर मनुष्यता में विश्वास है तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देते हैं। कवि के शब्दों में-
“इस दुनिया में
अकेले तुम ही हो
जिसके खून में मुझे कहीं भी
न जाति, न धर्म, न पन्थ
न ईश्वर कहीं दिखाई दिया।”
यह सही भी है क्योंकि बाबासाहब अकेले ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज के निर्माण का आह्वान किया और उसके लिए दीर्घ संघर्ष किया तथा संकीर्णतावादी और विषमतावादी धर्म को त्यागकर बौद्ध धम्म को अपनाया । धम्म अर्थात प्रज्ञा, शील और करुणा, समता, मैत्री और बन्धुता का मार्ग, जबकि समाज में जाति और धर्म के आधार पर समाज में वैमनस्यता, विरोध और हिंसा देखने को मिलती है। वर्चस्व की मानसिकता के लोग सबके साथ चलने को तैयार नहीं, वे अपनी अलग राह पर ही चलना पसन्द करते हैं। जातिगत श्रेष्ठता के अहंकार से मुक्त होकर, मनुष्यों के साथ मनुष्य होकर जीना उन्हें स्वीकार्य नहीं है, इसलिए वे प्रेम, सद्भाव के सीधे, सरल विचार को नहीं अपनाते, अपितु घृणा, हिंसा और असमानतावादी विचारों का पालन करते हैं। वर्चस्ववाद की यह अहंकारी भावना मनुष्यता का निरन्तर ध्वंस और दमन कर रही है। जातीय और सम्प्रदाय की अस्मिताओं की आग में जलती मनुष्यता को बचाने के लिए यदि सच्चे और पूरे मन से कोई आगे आया तो वह बाबासाहब आम्बेडकर थे।
-डॉ. जयप्रकाश कर्दम
About Author
अजय कांडर -
जन्म : 9 अगस्त, 1970
प्रकाशित पुस्तकें : आवानओल (काव्य संग्रह); हत्ती इलो (लम्बी कविता); युगानुयुगे तूच (2019) (लंबी कविता); अजूनही जिवन्त आहे गांधी (लंबी कविता)
पुरस्कार : जैन फांउडेशन, जलगाव, महाराष्ट्र फाउंडेशन, अमेरिका; विशाखा काव्य पुरस्कार, यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र मुक्त विश्वविद्यालय, नाशिक; आरती प्रभु काव्य पुरस्कार-कोकण मराठी साहित्य परिषद; कुसुमाग्रज काव्य पुरस्कार-महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे; यशवंतराव चव्हाण स्मृति काव्य पुरस्कार-प्रकाश ढेरे चेरिटेबल ट्रस्ट, पुणे; नारायण सुर्वे काव्य पुरस्कार-मुम्बई एकता कल्चरल अकादमी; लोकसेवा साहित्य गौरव पुरस्कार-जनकल्याण संस्था, पुणे। आदि पुरस्कार समेत अन्य 20 पुरस्कार।
सम्मान : दिल्ली साहित्य अकादेमी की प्रवासवृति (2003); सदस्य, साहित्य अकादमी, दिल्ली; कई मराठी साहित्य सम्मेलनों के अध्यक्ष के रूप में सम्मान; मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई, अहिल्यादेवी होलकर विश्वविद्यालय, सोलापुर, सन्त गाडगे बाबा विश्वविद्यालय, अमरावरती, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगाव, शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर आदि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्राम में कविताओं का समावेश; हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, मलयालम, कन्नड़, दक्कनी बोली आदि भाषाओं में कविताओं का अनुवाद; 'आवानओल', 'हत्ती इलो' काव्य संग्रह पर एम.फिल. तथा पीएच.डी. का शोधकार्य सम्पन्न; 'आवानओल', 'हत्ती इलो' एवं 'युगानुयुगे तूच' इन तीनों लम्बी कविताओं का नाट्य रूपान्तरण ।
पता - अभंग : आवनओल सदन, कलमठ, गोसावीवाड़ी, कणकवली-सिन्धुदुर्ग, महाराष्ट्र, पिन कोड-416602
मोबाइल नं.- 9404395155
ई-मेल - ajay.kandar@gmail.com
܀܀܀
प्रो. सुधाकर शेंडगे -
जन्म : 19 अक्तूबर 1966
प्रोफ़ेसर एवं पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय,
औरंगाबाद (महाराष्ट्र) 431004
प्रकाशित पुस्तकें :
'वारकरी सम्प्रदाय और मराठी सन्तों की सामाजिक भूमिका', 'प्रतिनिधि भारतीय कवि', 'प्रतिनिधि भारतीय नाटककार', 'महात्मा कबीर और महात्मा फुले', 'हिन्दी मराठी साहित्य तुलनात्मक विमर्श', 'धूमिल की काव्यकला', 'हिन्दी मराठी का अनूदित साहित्य', 'आधुनिक हिन्दी कविता', 'भाषा विज्ञान तथा हिन्दी भाषा का इतिहास', 'भाषा शिक्षण', 'प्रयोजनमूलक हिन्दी', 'प्रयोगवाद और नयी कविता', 'समकालीन हिन्दी साहित्य', 'बिहार ते तिहार' (अनुवाद), 'ज्ञानेश्वर एवं मीराबाई की मधुरा भक्ति' (अनुवाद), 'भारतीय समाज' (अनुवाद), 'जनसंख्या शिक्षण' (अनुवाद), 'कार्ल मार्क्स और मॅक्स वेबर' (अनुवाद), विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, कहानी, कविता, अनुवाद प्रकाशित।
पुरस्कार :
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नयी दिल्ली की ओर से, हिन्दीत्तर भाषी लेखक पुरस्कार, हिन्दी कविता के लिए साहित्यमणि सदानन्द पेठे पुरस्कार, शैक्षिक योगदान के लिए प्रज्ञासूर्य डॉ. आंबेडकर शिक्षक पुरस्कार, रिसर्च लिंक द्वारा शोध निबन्ध के लिए सारस्वत सम्मान
संपर्क सूत्र : 0240 2403296 मो. 09421335509
ईमेल : drsudhakarshendge@gmail.com
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