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Kamala
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विजय तेंडुलकर , अनुवाद : दामोदर खड़से
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विजय तेंडुलकर , अनुवाद : दामोदर खड़से
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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9788119014811
Category Hindi
Category: Hindi
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78
विजय तेंडुलकर रंगमंच की दुनिया का एक अपरिहार्य नाम । नाटककार के रूप में मराठी में ही नहीं, हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं में भी वे सुविख्यात हैं। समाज व्यवस्था में मनुष्य की इयत्ता तलाश कर आईने के रूप में मंचों पर प्रस्तुत करने की उनकी अद्भुत कला का लोहा सबने माना है। देश के विशिष्ट नाट्य दिग्दर्शकों और फ़िल्म निर्देशकों ने उनकी पटकथा और संवाद-लेखन को उत्कृष्ट और प्रभावी पाया है
कमला विजय तेंडुलकर का चर्चित नाटक है। इस नाटक में उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों की विवशता का जीवन्त चित्रण किया है । स्त्री की स्थिति अधिक दयनीय है। अच्छे घर में ब्याहने के बावजूद वह पुरुष-सत्ता से बँधी है। उधर ग़रीबी, अशिक्षा और मजबूर स्त्री बाज़ार में बेची जाती है। उसकी स्थिति और विवशता रोंगटे खड़े कर देती है। साथ ही पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पुरुष अनचाही स्थितियों का शिकार हो जाता है। पत्रकारिता जगत् की सनसनीखेज ख़बरों पर सवार होकर अपना अस्तित्व बढ़ाने के लिए संघर्ष करता पत्रकार व्यवस्था के कठोर पाटों के बीच पिसता है। वह नौकरी से हाथ धो बैठता है, क्योंकि व्यवस्था शोषण की बुनियाद में होती है और पत्रकार जो ख़बर निकालकर लाता है वह व्यवस्था के ख़िलाफ़ चली जाती है।
विजय तेंडुलकर घटनाओं की गतिशीलता और संवादों की जीवन्तता का अद्भुत समन्वय कर अपनी नाट्यकृति को विशिष्टता सौंप हैं। उनका नाट्य-लेखन इतना सार्थक होता है कि नाटक पढ़ते हुए भी रंगमंच पर देखने जैसी आनन्द की अनुभूति होती है। कमला इस बात का जीवन्त उदाहरण है। मराठी नाटक कमला का दामोदर खड़से द्वारा किया गया अनुवाद प्रस्तुत है ।
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Description
विजय तेंडुलकर रंगमंच की दुनिया का एक अपरिहार्य नाम । नाटककार के रूप में मराठी में ही नहीं, हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं में भी वे सुविख्यात हैं। समाज व्यवस्था में मनुष्य की इयत्ता तलाश कर आईने के रूप में मंचों पर प्रस्तुत करने की उनकी अद्भुत कला का लोहा सबने माना है। देश के विशिष्ट नाट्य दिग्दर्शकों और फ़िल्म निर्देशकों ने उनकी पटकथा और संवाद-लेखन को उत्कृष्ट और प्रभावी पाया है
कमला विजय तेंडुलकर का चर्चित नाटक है। इस नाटक में उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों की विवशता का जीवन्त चित्रण किया है । स्त्री की स्थिति अधिक दयनीय है। अच्छे घर में ब्याहने के बावजूद वह पुरुष-सत्ता से बँधी है। उधर ग़रीबी, अशिक्षा और मजबूर स्त्री बाज़ार में बेची जाती है। उसकी स्थिति और विवशता रोंगटे खड़े कर देती है। साथ ही पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पुरुष अनचाही स्थितियों का शिकार हो जाता है। पत्रकारिता जगत् की सनसनीखेज ख़बरों पर सवार होकर अपना अस्तित्व बढ़ाने के लिए संघर्ष करता पत्रकार व्यवस्था के कठोर पाटों के बीच पिसता है। वह नौकरी से हाथ धो बैठता है, क्योंकि व्यवस्था शोषण की बुनियाद में होती है और पत्रकार जो ख़बर निकालकर लाता है वह व्यवस्था के ख़िलाफ़ चली जाती है।
विजय तेंडुलकर घटनाओं की गतिशीलता और संवादों की जीवन्तता का अद्भुत समन्वय कर अपनी नाट्यकृति को विशिष्टता सौंप हैं। उनका नाट्य-लेखन इतना सार्थक होता है कि नाटक पढ़ते हुए भी रंगमंच पर देखने जैसी आनन्द की अनुभूति होती है। कमला इस बात का जीवन्त उदाहरण है। मराठी नाटक कमला का दामोदर खड़से द्वारा किया गया अनुवाद प्रस्तुत है ।
About Author
विजय तेंडुलकर
वर्तमान भारतीय रंग-परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण नाटककार के रूप में समादृत श्री तेंडुलकर मूलतः मराठी के साहित्यकार हैं जिनका जन्म 7 जनवरी, 1928 को हुआ। उन्होंने लगभग तीस नाटकों तथा दो दर्जन एकांकियों की रचना की है, जिनमें से अनेक आधुनिक भारतीय रंगमंच की क्लासिक कृतियों के रूप में शुमार होते हैं। उनके नाटकों में प्रमुख हैं- शांतता! कोर्ट चालू आहे (1967), सखाराम बाइंडर (1972), कमला (1981), कन्यादान (1983)। श्री तेंडुलकर के नाटक घासीराम कोतवाल (1972) की मूल मराठी में और अनूदित रूप में देश और विदेश में छह हज़ार से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। मराठी लोकशैली, संगीत तथा आधुनिक रंगमंचीय तकनीक से सम्पन्न यह नाटक दुनिया के सर्वाधिक मंचित होने वाले नाटकों में से एक का दर्जा पा चुका है।
श्री तेंडुलकर ने बच्चों के लिए भी ग्यारह नाटकों की रचना की है। उनकी कहानियों के चार संग्रह और सामाजिक आलोचना व साहित्यिक लेखों के पाँच संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इन्होंने दूसरी भाषाओं से मराठी में अनुवाद किये हैं, जिसके तहत नौ उपन्यास, दो जीवनियाँ और पाँच नाटक भी उनके कृतित्व में शामिल हैं। इसके अलावा बीस के क़रीब फ़िल्मों का लेखन। हिन्दी की निशान्त, मन्थन, आक्रोश, अर्धसत्य आदि । दूरदर्शन धारावाहिक - स्वयंसिद्ध, प्रिय तेंडुलकर टॉक शो ।
सम्मान / पुरस्कार : नेहरू फेलोशिप ( 1973-74), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में अभ्यागत प्राध्यापक के रूप में (1979-1981), पद्म भूषण (1984), फ़िल्मफेयर से पुरस्कृत । 19 मई, 2008 को पुणे (महाराष्ट्र) में महाप्रस्थान ।
दामोदर खड़से
प्रकाशित कृतियाँ : कविता-संग्रह : अब वहाँ घोंसले हैं, सन्नाटे में रोशनी, तुम लिखो कविता, अतीत नहीं होती नदी, रात, नदी कभी नहीं सूखती, पेड़ को सब याद है, जीना चाहता है मेरा समय, लौटती आवाजें । कथा-संग्रह : भटकते कोलम्बस, आख़िर वह एक नदी थी, जन्मान्तर गाथा, इस जंगल में, गौरैया को तो गुस्सा नहीं आता, सम्पूर्ण कहानियाँ, यादगारी कहानियाँ, चुनी हुई कहानियाँ । उपन्यास : काला सूरज, भगदड़, बादल राग, खिड़कियाँ । यात्रा व भेंटवार्ता : जीवित सपनों का यात्री, एक सागर और, संवादों के बीच ।
सम्मान : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली द्वारा 'बारोमास' के लिए अकादेमी पुरस्कार (अनुवाद) - 2015; महाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिन्दी सेवा सम्मान - 2016 (महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी) साथ ही केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा; उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ; मध्य प्रदेश साहित्य परिषद्, भोपाल महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी सहित अनेक सम्मान प्राप्त । महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में 'राइटर-इन- रेजीडेंस' रहे । सम्पर्क : बी-503-504 हाई ब्लिस, कैलाश जीवन के पास, धायरी, पुणे - 411 041
मो. : 9850088496, ईमेल : damodarkhadse@gmail.com
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