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Main Bach Gai Maan
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
ज़ेहरा निगाह , प्रस्तावना एवं संकलन : रख़्शंदा जलील , ट्रांस्लिट्रेशन : प्रदीप साहिल
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
ज़ेहरा निगाह , प्रस्तावना एवं संकलन : रख़्शंदा जलील , ट्रांस्लिट्रेशन : प्रदीप साहिल
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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ISBN:
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9789390678693
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
150
शायरी जिससे ज़ेहरा आपा की पहचान है, के अलावा उन्होंने टीवी ड्रामा सीरियलों और फिल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। उनके दो सगे भाई और बहन भी टेलीविज़न उद्योग से जुड़े रहे हैं। उनकी बड़ी बहन फातिमा सुरैय्या बजिया एक मशहूर पटकथा लेखिका थीं और उनके भाई अनवर मक़सूद एक जाने-माने लेखक, व्यंग्यकार और टेलीविज़न होस्ट हैं। फिलहाल वे अपना वक्त कराची के अपने घर में बिताती हैं जो किताबों और पेंटिंग्स से भरा हुआ है, या फिर वे विदेशों में बसे अपने दो बेटों और दूसरे रिश्तेदारों के साथ वक्त गुज़ारने के लिए सफर करती रहती हैं। बहरहाल वे अपने घर पर रहें या दुनिया के किसी भी शहर में, किताबें और पढ़ना उनकी जिन्दगी की बड़ी ज़रूरतें हैं। जैसा कि अपनी नज़्म ‘विस’ में वे लिखती हैं :
पीछे मुड़ कर देख रही हूँ
क्या-क्या कुछ विर्सा में मिला था
और क्या कुछ मैं छोड़ रही हूँ
– डॉ. रख़्शंदा जलील
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Description
शायरी जिससे ज़ेहरा आपा की पहचान है, के अलावा उन्होंने टीवी ड्रामा सीरियलों और फिल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। उनके दो सगे भाई और बहन भी टेलीविज़न उद्योग से जुड़े रहे हैं। उनकी बड़ी बहन फातिमा सुरैय्या बजिया एक मशहूर पटकथा लेखिका थीं और उनके भाई अनवर मक़सूद एक जाने-माने लेखक, व्यंग्यकार और टेलीविज़न होस्ट हैं। फिलहाल वे अपना वक्त कराची के अपने घर में बिताती हैं जो किताबों और पेंटिंग्स से भरा हुआ है, या फिर वे विदेशों में बसे अपने दो बेटों और दूसरे रिश्तेदारों के साथ वक्त गुज़ारने के लिए सफर करती रहती हैं। बहरहाल वे अपने घर पर रहें या दुनिया के किसी भी शहर में, किताबें और पढ़ना उनकी जिन्दगी की बड़ी ज़रूरतें हैं। जैसा कि अपनी नज़्म ‘विस’ में वे लिखती हैं :
पीछे मुड़ कर देख रही हूँ
क्या-क्या कुछ विर्सा में मिला था
और क्या कुछ मैं छोड़ रही हूँ
– डॉ. रख़्शंदा जलील
About Author
ज़ेहरा निगाह सन् 1936 में भारत के हैदराबाद में जन्मीं और सन् 1947 में वह अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गयीं। उन्होंने काफ़ी कम उम्र से मुशायरों में अपनी कविताएँ सुनाना शुरू कर दिया था, जो उस समय के लिए असामान्य बात थी। उन्होंने स्त्रियोचित और स्त्रीवाद के बीच की महीन रेखा को विस्तार देते हुए छह दशकों से पुरुष प्रधान मुशायरे के काव्य विषयक परिदृश्य में अपनी पसन्द को निर्धारित करने के लिए लिंग की प्राथमिकता को नकारा। उन्होंने पुरुष प्रधान मुशायरे के मंचों पर अपनी कविताओं के भावों और लालित्य से अपनी बुलन्द आवाज़ की उपस्थिति दर्ज की। उनकी कविताएँ एक औरत और शायरा होने की विवशता और समझौतों के साथ एक ऐसे विचारवान शख़्स की कविताएँ हैं जो दुनिया में उसके नज़दीक घट रही घटनाओं से प्रभावित होती हैं। उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं : शाम का पहला तारा, वर्क, फ़िराक़ और गुल चाँदनी। उन्होंने कई टेलीविज़न धारावाहिक भी लिखे। सन् 2006 में उनके द्वारा किये गये साहित्यिक कार्यों के लिए उन्हें प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस सहित अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया।
प्रस्तावना एवं संकलन : रख़्शंदा जलील
रख़्शंदा जलील लेखक, अनुवादक, आलोचक और साहित्यिक इतिहासकार हैं। इनके अनेक अनुवाद संकलन, बौद्धिक आलेख व पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इन्होंने 'प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट एज़ रिफ्लेक्टेड इन उर्दू' पर पीएच.डी. की है जिसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है।
स्त्रीवादी लेखिका डॉ. रशीद जहाँ की आत्मकथा, प्रेमचन्द, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, शहरयार, कृश्न चन्दर और इन्तिज़ार हुसैन की लघुकथाओं, शायरी और उपन्यासों का अनुवाद किया है। इनका निबन्ध संग्रह 'इनविजिबल सिटी' जोकि दिल्ली के प्रसिद्ध स्मारकों पर आधारित है, पाठकों द्वारा पसन्द किया गया है।
आप 2002 से 'हिन्दुस्तानी आवाज़' संस्था चला रही हैं, जो हिन्दी-उर्दू साहित्य एवं संस्कृति को लोकप्रिय बनाने के लिए समर्पित है।
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