Facebukiya Love
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वरिष्ठ कवि, कथाकार, उपन्यासकार, कला और फ़िल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज की ये कहानियाँ प्रेम, सेक्स और आधुनिक जीवन की काव्यात्मक महागाथा हैं। गौरतलब है कि विनोद भारद्वाज ने करीब चार दशकों में महज़ 11 कहानियाँ लिखी हैं, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक विशेषांकों में छपकर पहले ही चर्चित हो चुकी हैं।
पहली नज़र में देखें तो ऐसा लगता है कि संग्रह की अधिकांश कहानियाँ (चितेरी, अभिनेत्री, लेखिका, एक अभिनेत्री का अधूरा पत्र, ‘दूसरी’ पत्नी, फेसबुकिया लव) नये ज़माने में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बदलते रिश्तों पर केन्द्रित हैं। लेकिन दरअसल इन कहानियों के केन्द्र में वह ‘नयी स्त्री’ है, जिसकी प्राथमिकताएँ, सपने, आकांक्षाएँ, संघर्ष के तरीके तेज़ी से बदल रहे हैं। स्त्रीवाद, स्त्री-मुक्ति के बहुप्रचारित तुमुल कोलाहल-कलह से बहुत दूर खड़ी ये औरतें पितृसत्ता से मोल-भाव के तमाम तरीके आजमाने में माहिर हो चुकी हैं। वे अवसरों को पहचानती हैं और अपने हक़ में उनका उपयोग करना सीख चुकी हैं। नयी स्त्री के नित नये बदलते रूपों के समक्ष पुरुष किरदार कहीं भौंचक हैं, कहीं दयनीय नज़र आते हैं तो कहीं चारों खाने चित्त। इन कहानियों में एक तरफ़ लेखकीय तटस्थता का अचूक निर्वाह और औपन्यासिक विस्तार की सम्भावनाएँ दीखती हैं तो दूसरी तरफ़ हिन्दी कथा-साहित्य के बहुप्रचलित छातीपीटू ‘हाय-हाय वाद’ से मुक्ति का रास्ता भी। तमाम जटिलताओं, उलझनों और दुश्वारियों के बीच ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती और ‘सेलिब्रेशन’ का भाव यहाँ अन्तगरुंफित है। सम्भवतः इसी वजह से इन कहानियों में कुछ ऐसा आकर्षण है, जो बार-बार अपने पाठ के लिए उकसाती हैं। कथानक और भाषा, दोनों मोर्चे पर ये कहानियाँ हमें सचमुच कुछ नया देती हैं-हिन्दी गल्प का नितान्त नया लहजा। भाषा का चुस्त, चुटीला कॉमिक मिज़ाज़, जिसका रसीला आस्वाद धीरे-धीरे हमारे अन्तःलोक में उतरता है, घुलता है। कहानियों के किरदार हमारी स्मृतियों का हिस्सा बन जाते हैं।
– अभिषेक कश्यप
वरिष्ठ कवि, कथाकार, उपन्यासकार, कला और फ़िल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज की ये कहानियाँ प्रेम, सेक्स और आधुनिक जीवन की काव्यात्मक महागाथा हैं। गौरतलब है कि विनोद भारद्वाज ने करीब चार दशकों में महज़ 11 कहानियाँ लिखी हैं, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक विशेषांकों में छपकर पहले ही चर्चित हो चुकी हैं।
पहली नज़र में देखें तो ऐसा लगता है कि संग्रह की अधिकांश कहानियाँ (चितेरी, अभिनेत्री, लेखिका, एक अभिनेत्री का अधूरा पत्र, ‘दूसरी’ पत्नी, फेसबुकिया लव) नये ज़माने में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बदलते रिश्तों पर केन्द्रित हैं। लेकिन दरअसल इन कहानियों के केन्द्र में वह ‘नयी स्त्री’ है, जिसकी प्राथमिकताएँ, सपने, आकांक्षाएँ, संघर्ष के तरीके तेज़ी से बदल रहे हैं। स्त्रीवाद, स्त्री-मुक्ति के बहुप्रचारित तुमुल कोलाहल-कलह से बहुत दूर खड़ी ये औरतें पितृसत्ता से मोल-भाव के तमाम तरीके आजमाने में माहिर हो चुकी हैं। वे अवसरों को पहचानती हैं और अपने हक़ में उनका उपयोग करना सीख चुकी हैं। नयी स्त्री के नित नये बदलते रूपों के समक्ष पुरुष किरदार कहीं भौंचक हैं, कहीं दयनीय नज़र आते हैं तो कहीं चारों खाने चित्त। इन कहानियों में एक तरफ़ लेखकीय तटस्थता का अचूक निर्वाह और औपन्यासिक विस्तार की सम्भावनाएँ दीखती हैं तो दूसरी तरफ़ हिन्दी कथा-साहित्य के बहुप्रचलित छातीपीटू ‘हाय-हाय वाद’ से मुक्ति का रास्ता भी। तमाम जटिलताओं, उलझनों और दुश्वारियों के बीच ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती और ‘सेलिब्रेशन’ का भाव यहाँ अन्तगरुंफित है। सम्भवतः इसी वजह से इन कहानियों में कुछ ऐसा आकर्षण है, जो बार-बार अपने पाठ के लिए उकसाती हैं। कथानक और भाषा, दोनों मोर्चे पर ये कहानियाँ हमें सचमुच कुछ नया देती हैं-हिन्दी गल्प का नितान्त नया लहजा। भाषा का चुस्त, चुटीला कॉमिक मिज़ाज़, जिसका रसीला आस्वाद धीरे-धीरे हमारे अन्तःलोक में उतरता है, घुलता है। कहानियों के किरदार हमारी स्मृतियों का हिस्सा बन जाते हैं।
– अभिषेक कश्यप
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