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Dr. Babasaheb Ambedkar (HB)
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Hind Swaraj : Nav Sabhyata Vimarsh (HB)
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Dr. Babasaheb Ambedkar (PB)
Publisher:
RADHA
| Author:
Surynarayan Ransubhe
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
RADHA
Author:
Surynarayan Ransubhe
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹199 ₹198
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ISBN:
SKU
9788171196807
Category Hindi
Category: Hindi
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जाति और अस्पृश्यता के दलदल में फँसे भारतीय समाज को उबारने का उपक्रम करनेवालों में डॉ. आंबेडकर अग्रणी हैं। उनका चिंतन मनुष्य की मुक्ति से जुड़ा है। वह समतावादी समाज का सपना देख रहे थे। आकाशवाणी पर दिए गए अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था, “शंकराचार्य के दर्शन के कारण हिन्दू समाज-व्यवस्था में जाति-संस्था और विषमता के बीज बोए गए। मैं इसे नकारता हूँ। मेरा सामाजिक दर्शन केवल तीन शब्दों में रखा जा सकता है। ये शब्द हैं—स्वतंत्रता, समता और बन्धुभाव। मैंने इन शब्दों को फ्रेंच राज्य क्रान्ति से उधार नहीं लिया है। मेरे दर्शन की जड़ें धर्म में हैं, राजनीति में नहीं। मेरे गुरु बुद्ध के व्यक्तित्व और कृतित्व से मुझे ये तीन मूल्य मिले हैं।”
हिन्दी में डॉ. आंबेडकर पर ढेरों पुस्तकें और पुस्तिकाएँ उपलब्ध हैं। जो पुस्तकें ठीक हैं, वे मिलती नहीं और पुस्तिकाओं में सिवाय व्यक्तिपूजा के कुछ होता नहीं। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक लिखी गई है, ताकि एक शताब्दी पूर्व जन्मे इस महापुरुष का विराट व्यक्तित्व खुलकर सामने आए और पाठकों को उद्वेलित कर सके।
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Description
जाति और अस्पृश्यता के दलदल में फँसे भारतीय समाज को उबारने का उपक्रम करनेवालों में डॉ. आंबेडकर अग्रणी हैं। उनका चिंतन मनुष्य की मुक्ति से जुड़ा है। वह समतावादी समाज का सपना देख रहे थे। आकाशवाणी पर दिए गए अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था, “शंकराचार्य के दर्शन के कारण हिन्दू समाज-व्यवस्था में जाति-संस्था और विषमता के बीज बोए गए। मैं इसे नकारता हूँ। मेरा सामाजिक दर्शन केवल तीन शब्दों में रखा जा सकता है। ये शब्द हैं—स्वतंत्रता, समता और बन्धुभाव। मैंने इन शब्दों को फ्रेंच राज्य क्रान्ति से उधार नहीं लिया है। मेरे दर्शन की जड़ें धर्म में हैं, राजनीति में नहीं। मेरे गुरु बुद्ध के व्यक्तित्व और कृतित्व से मुझे ये तीन मूल्य मिले हैं।”
हिन्दी में डॉ. आंबेडकर पर ढेरों पुस्तकें और पुस्तिकाएँ उपलब्ध हैं। जो पुस्तकें ठीक हैं, वे मिलती नहीं और पुस्तिकाओं में सिवाय व्यक्तिपूजा के कुछ होता नहीं। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक लिखी गई है, ताकि एक शताब्दी पूर्व जन्मे इस महापुरुष का विराट व्यक्तित्व खुलकर सामने आए और पाठकों को उद्वेलित कर सके।
About Author
सूर्यनारायण रणसुभे
जन्म : 7 अगस्त, 1942
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (हिन्दी)
कृतियाँ : हिन्दी की मौलिक पुस्तकें—‘आधुनिक मराठी साहित्य का प्रवृत्तिमूलक अध्ययन’, ‘कहानीकार कमलेश्वर : सन्दर्भ और प्रकृति’, ‘देश-विभाजन और हिन्दी कथा-साहित्य’; अनूदित पुस्तकें—‘यादों के पंछी’, ‘अक्करमाशी’, ‘साक्षीपुरम्’, ‘उठाईगीर’, ‘डॉ. आम्बेडकर और उनका धम्म’।
विशेष : कुछ पुस्तकों का सह-लेखन, कुछ का सह-सम्पादन, अनेक पुस्तकों में लेखन सहयोग, परिसंवादों में हिस्सेदारी, रेडियो वार्ताओं, व्याख्यानमालाओं में प्रमुख वक्ता, विभिन्न शिविरों, कार्यशालाओं, सम्मेलनों, परिषद् के अधिवेशनों में सक्रिय सहयोग, अनेक संस्थाओं के सदस्य, एक मराठी दैनिक का प्रतिदिन सम्पादकीय लेखन, पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन।
पुरस्कार व सम्मान : ‘यादों के पंछी’ को भारत सरकार का अनुवाद पुरस्कार; महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादेमी द्वारा ‘गजानन माधव मुक्तिबोध पुरस्कार’। महाराष्ट्र की अनेक साहित्यिक एवं ग़ैर-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान।
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