Kaya Sparsh (HB)
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प्रतिष्ठित कथाकार द्रोणवीर कोहली का यह उपन्यास एक अछूती समस्या को उठाता है–कतिपय आधुनिक एवं धनाढ्य परिवारों में लड़के-लड़कियों की समस्या जो भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद स्नेह-सौहार्द्र के अभाव में मनोरोगी हो जाते हैं। उनकी चिकित्सा और देख-भाल के लिए उनके पास ढेरों धन तो हैं, लेकिन ‘समय’ नामक अमूल्य धन जो उनके पास मौजूद है, उसे वह अपने बच्चों पर व्यय करना जानते ही नहीं, जिसके परिणामस्वरूप उन बच्चों का सही उपचार नहीं हो पाता और अन्त में त्रासदी शेष रह जाती है। लेखक ने इस स्थिति का बारीकी से अध्ययन किया है और बड़ी कुशलता से ‘हृदय सुगति’, ‘इक्ष्वाकु’ अर्थात ‘इच्छू बाबा’, ‘काया’ जैसे चरित्रों को परत-दर-परत खोल कर रख दिया है–किसी मनोचिकित्सक के बौद्धिक व्यायाम की तरह नहीं, किसी संवेदनशील कथाकार की भाँति। द्रोणवीर कोहली के इस उपन्यास की बड़ी विशेषता यह भी है कि प्रकाशन से पूर्व उन्होंने अपनी सम्पूर्ण पांडुलिपि प्रसिद्ध क्लिनिकल मनोचिकित्सक डॉ. नीरजा कुमार को दिखाई थी। उन्होंने उपन्यास के अन्तिम अंश के बारे में जो विचार दिए, लेखक ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया है। उन्हें पुस्तक के अन्त में ‘अनुबोध’ शीर्षक से सम्मिलित कर लिया गया है।
प्रतिष्ठित कथाकार द्रोणवीर कोहली का यह उपन्यास एक अछूती समस्या को उठाता है–कतिपय आधुनिक एवं धनाढ्य परिवारों में लड़के-लड़कियों की समस्या जो भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद स्नेह-सौहार्द्र के अभाव में मनोरोगी हो जाते हैं। उनकी चिकित्सा और देख-भाल के लिए उनके पास ढेरों धन तो हैं, लेकिन ‘समय’ नामक अमूल्य धन जो उनके पास मौजूद है, उसे वह अपने बच्चों पर व्यय करना जानते ही नहीं, जिसके परिणामस्वरूप उन बच्चों का सही उपचार नहीं हो पाता और अन्त में त्रासदी शेष रह जाती है। लेखक ने इस स्थिति का बारीकी से अध्ययन किया है और बड़ी कुशलता से ‘हृदय सुगति’, ‘इक्ष्वाकु’ अर्थात ‘इच्छू बाबा’, ‘काया’ जैसे चरित्रों को परत-दर-परत खोल कर रख दिया है–किसी मनोचिकित्सक के बौद्धिक व्यायाम की तरह नहीं, किसी संवेदनशील कथाकार की भाँति। द्रोणवीर कोहली के इस उपन्यास की बड़ी विशेषता यह भी है कि प्रकाशन से पूर्व उन्होंने अपनी सम्पूर्ण पांडुलिपि प्रसिद्ध क्लिनिकल मनोचिकित्सक डॉ. नीरजा कुमार को दिखाई थी। उन्होंने उपन्यास के अन्तिम अंश के बारे में जो विचार दिए, लेखक ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया है। उन्हें पुस्तक के अन्त में ‘अनुबोध’ शीर्षक से सम्मिलित कर लिया गया है।
About Author
द्रोणवीर कोहली
जन्म : 1932 में रावलपिंडी के निकट एक दुर्गम एवं उपेक्षित ग्रामीण परिवार में हुआ। देश विभाजन के उपरान्त वह दिल्ली आए जहाँ इनकी किशोरावस्था बीती और शिक्षा-दीक्षा हुई।
भारतीय सूचना सेवा के अन्तर्गत विभिन्न पदों पर काम करते हुए इन्होंने ‘आजकल’ साहित्यिक मासिक एवं ‘बाल भारती’ तथा तेरह भाषाओं में प्रकाशित ‘सैनिक समाचार’ का सम्पादन किया। कुछ समय के लिए वह आकाशवाणी में वरिष्ठ संवाददाता तथा बाद में हिन्दी समाचार विभाग के प्रभारी सम्पादक भी रहे।
इनके ग्यारह मौलिक उपन्यासों : ‘चौखट’, ‘मुल्क अवाणों का’ तथा ‘आँगन-कोठा संयुक्त’, ‘तकसीम’, ‘वाह कैंप’, ‘नानी’, ‘ध्रुवसत्य’, ‘टप्पर गाड़ी’, ‘खाड़ी में खुलती खिड़की’, ‘पोटली के अलावा’ उन्होंने कई पुस्तकों का अनुवाद भी किया है : फ्रेंच लेखक ज़ोला का ‘उम्मीद है आएगा वह दिन’, स्वीडिश उपन्यास ‘डॉक्टर ग्लास’ सम्मिलित हैं। इनमें बच्चों के लिए भी अनेक पुस्तकें शामिल हैं।
द्रोणवीर जाने-माने उपन्यासकार, कथाकार, सम्पादक और अनुवादक ही नहीं, वे निर्भीक पत्रकार भी रहे। ‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’, ‘हाइड पार्क’ एवं ‘राजघाट पर राजनेता’ जैसी पुस्तकें तथा ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘सारिका’ जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इनके रोचक रिपोर्ताज और इन्टरव्यू दिलचस्पी से पढ़े जाते थे।
निधन : 24 जनवरी, 2012
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