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21vin Sadi : Pahala Dasak (HB)
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‘21वीं सदी : पहला दशक’ पुस्तक में विख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी के वे लेख संकलित हैं जो उन्होंने ‘जनसत्ता’ दैनिक में सन् 2000 के बाद लिखे। 2001 से 2009 के बीच प्रकाशित इन लेखों में देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन की धड़कनें सुनी जा सकती हैं।
21वीं सदी के आगमन को सत्ताधारी वर्ग ने सम्पन्नता के स्वप्न के रूप में प्रचारित किया था। लेकिन सचाई यह थी कि 21वीं सदी देश के बहुजन जीवन के लिए अभिशाप की तरह प्रकट हुई। आर्थिक उदारीकरण की नीति के दुष्परिणाम सामने आने लगे। आम लोगों का जीवन पहले की तुलना में ज़्यादा मुश्किलों के घेरे में आ गया। इस पुस्तक में प्रभाष जोशी ने आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पैदा होनेवाली इन मुश्किलों की व्याख्या विस्तार से की है। उसकी आत्महन्ता राजनीतिक परिणति को प्रभावी तरीक़े से समझाया गया है।
प्रभाष जोशी की पत्रकारिता महज़ चिन्तन और विश्लेषण की पत्रकारिता नहीं है, वह सामाजिक सक्रियता और विसंगतियों के विरुद्ध हस्तक्षेप की पत्रकारिता है। इन लेखों में एक शोषणमुक्त भारतीय समाज का स्वप्न भी देखा गया है, जिसमें एक नए विकल्प का संकेत भी दिखाई देता है। यह पुस्तक नई सदी की वास्तविक पहचान का रेखाचित्र है।
‘21वीं सदी : पहला दशक’ पुस्तक में विख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी के वे लेख संकलित हैं जो उन्होंने ‘जनसत्ता’ दैनिक में सन् 2000 के बाद लिखे। 2001 से 2009 के बीच प्रकाशित इन लेखों में देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन की धड़कनें सुनी जा सकती हैं।
21वीं सदी के आगमन को सत्ताधारी वर्ग ने सम्पन्नता के स्वप्न के रूप में प्रचारित किया था। लेकिन सचाई यह थी कि 21वीं सदी देश के बहुजन जीवन के लिए अभिशाप की तरह प्रकट हुई। आर्थिक उदारीकरण की नीति के दुष्परिणाम सामने आने लगे। आम लोगों का जीवन पहले की तुलना में ज़्यादा मुश्किलों के घेरे में आ गया। इस पुस्तक में प्रभाष जोशी ने आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पैदा होनेवाली इन मुश्किलों की व्याख्या विस्तार से की है। उसकी आत्महन्ता राजनीतिक परिणति को प्रभावी तरीक़े से समझाया गया है।
प्रभाष जोशी की पत्रकारिता महज़ चिन्तन और विश्लेषण की पत्रकारिता नहीं है, वह सामाजिक सक्रियता और विसंगतियों के विरुद्ध हस्तक्षेप की पत्रकारिता है। इन लेखों में एक शोषणमुक्त भारतीय समाज का स्वप्न भी देखा गया है, जिसमें एक नए विकल्प का संकेत भी दिखाई देता है। यह पुस्तक नई सदी की वास्तविक पहचान का रेखाचित्र है।
About Author
प्रभाष जोशी
प्रभाष जोशी 15 जुलाई, 1937 को मध्य प्रदेश में सिहोर ज़िले के आष्टा गाँव में पैदा हुए। शिक्षा इन्दौर के महाराजा शिवाजी राव मिडिल स्कूल और हाईस्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम-सेवा और अध्यापन किया। पत्रकारिता को समाज परिवर्तन का माध्यम मानकर सन् 60 में ‘नई दुनिया’ में काम शुरू किया। राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी और राहुल बारपुते के साथ काम किया। यहीं विनोबा की पहली नगर-यात्रा की रिपोर्टिंग की। 1966 में शरद जोशी के साथ भोपाल से दैनिक ‘मध्य प्रदेश’ निकाला। 1968 में दिल्ली आकर राष्ट्रीय गांधी समिति में प्रकाशन की ज़िम्मेदारी ली। 1972 में चम्बल और बुंदेलखंड के डाकुओं के समर्पण के लिए जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया। अहिंसा के इस प्रयोग पर अनुपम मिश्र और श्रवण कुमार गर्ग के साथ पुस्तक लिखी—‘चम्बल की बन्दूकें : गांधी के चरणों में’। 1974 में ‘प्रजानीति’ (साप्ताहिक) और ‘आसपास’ निकाली जो इमरजेंसी में बन्द हो गई। जनवरी 1978 से अप्रैल 81 तक चंडीगढ़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का सम्पादन किया। फिर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (दिल्ली संस्करण) के दो साल तक सम्पादक रहे। सन् 1983 में प्रभाष जोशी के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ का प्रकाशन हुआ।
प्रभाष जी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘मसि कागद’, ‘हिन्दू होने का धर्म’, ‘आगे अन्धी गली है’, ‘धन्न नरबदा मइया हो’, ‘जब तोप मुकाबिल हो’, ‘जीने के बहाने’, ‘खेल सिर्फ़ खेल नहीं है’, ‘लुटियन के टीले का भूगोल’, ‘21वीं सदी : पहला दशक’, ‘प्रभाष-पर्व’, ‘कहने को बहुत कुछ था’।
निधन : 5 नवम्बर, 2009 को दिल्ली में।
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