Gantantra Ka Ganit

Publisher:
Vani prakashan
| Author:
Narendra Kohli
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani prakashan
Author:
Narendra Kohli
Language:
Hindi
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Hardback

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196

गणतंत्र का गणित –
अक्सर यह देखने में आया है कि सामाजिक विसंगतियों पर चोट करने के लिए उपदेश या भाषण की तुलना में व्यंग्य एक अधिक कारगर विधा है। हल्की-हल्की हँसी और तीख़ेपन के साथ कही गयी बातें भारी-भारी नसीहतों की तुलना में लोगों के दिलों में कहीं ज़्यादा घर करती हैं। इसीलिए हिन्दी में व्यंग्य की एक सुदीर्घ परम्परा है। बालमुकुन्द गुप्त और बालकृष्ण भट्ट की तो बात ही क्या, भारतेन्दु ही से व्यंग्य की यह धारा हिन्दी में बहने लगती है और हरिशंकर परसाई और शरद जोशी तक पहुँचते-पहुँचते एक स्थापित विधा का रूप ले लेती है। आज ऐसा कोई समाचार पत्र या साप्ताहिक पत्रिका नहीं होगी जिसमें व्यंग्य का अनिवार्य स्थान न हों।
नरेन्द्र कोहली एक जाने-माने कथाकार और उपन्यासकार ही नहीं, एक चर्चित व्यंग्यकार भी हैं। अपनी कहानियों और उपन्यासों को लिखने के साथ-साथ वे बीच में व्यंग्य लेखों और टिप्पणियों पर भी हाथ आज़माते रहते हैं। सहज सरल और चुटीली भाषा-शैली और रोज़मर्रा के जीवन से उठाये गये प्रसंग-नरेन्द्र कोहली के व्यंग्य लेख हमारे आपके इर्द-गिर्द के जीवन से सम्बद्ध हैं। इसीलिए शायद इनकी पहुँच इतनी व्यापक है। विषय चाहे साम्प्रदायिकता हो या शादी या अवैध कब्ज़े या फिर अन्धविश्वास का – नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य-भरा नश्तर समान रूप से पाखण्ड को उजागर करने के लिए अपनी चीर-फाड़ करता रहता है। अक्सर उन्होंने ‘रामलुभाया’ जैसा एक पात्र भी अपनी इन टिप्पणियों में कल्पित किया है। जिसके माध्यम से जो कुछ कहना होता है, वे बखूबी कह देते हैं।

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Description

गणतंत्र का गणित –
अक्सर यह देखने में आया है कि सामाजिक विसंगतियों पर चोट करने के लिए उपदेश या भाषण की तुलना में व्यंग्य एक अधिक कारगर विधा है। हल्की-हल्की हँसी और तीख़ेपन के साथ कही गयी बातें भारी-भारी नसीहतों की तुलना में लोगों के दिलों में कहीं ज़्यादा घर करती हैं। इसीलिए हिन्दी में व्यंग्य की एक सुदीर्घ परम्परा है। बालमुकुन्द गुप्त और बालकृष्ण भट्ट की तो बात ही क्या, भारतेन्दु ही से व्यंग्य की यह धारा हिन्दी में बहने लगती है और हरिशंकर परसाई और शरद जोशी तक पहुँचते-पहुँचते एक स्थापित विधा का रूप ले लेती है। आज ऐसा कोई समाचार पत्र या साप्ताहिक पत्रिका नहीं होगी जिसमें व्यंग्य का अनिवार्य स्थान न हों।
नरेन्द्र कोहली एक जाने-माने कथाकार और उपन्यासकार ही नहीं, एक चर्चित व्यंग्यकार भी हैं। अपनी कहानियों और उपन्यासों को लिखने के साथ-साथ वे बीच में व्यंग्य लेखों और टिप्पणियों पर भी हाथ आज़माते रहते हैं। सहज सरल और चुटीली भाषा-शैली और रोज़मर्रा के जीवन से उठाये गये प्रसंग-नरेन्द्र कोहली के व्यंग्य लेख हमारे आपके इर्द-गिर्द के जीवन से सम्बद्ध हैं। इसीलिए शायद इनकी पहुँच इतनी व्यापक है। विषय चाहे साम्प्रदायिकता हो या शादी या अवैध कब्ज़े या फिर अन्धविश्वास का – नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य-भरा नश्तर समान रूप से पाखण्ड को उजागर करने के लिए अपनी चीर-फाड़ करता रहता है। अक्सर उन्होंने ‘रामलुभाया’ जैसा एक पात्र भी अपनी इन टिप्पणियों में कल्पित किया है। जिसके माध्यम से जो कुछ कहना होता है, वे बखूबी कह देते हैं।

About Author

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।

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