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न भूतो न भविष्यति I NA BHUTO NA BHAVISHYATI (HINDI)

Publisher:
Vani prakashan
| Author:
Narendra Kohli
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback

476

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ISBN:
SKU 9788181432322 Categories , Tags ,
Page Extent:
692

‘न भूतो न भविष्यति’ स्वामी विवेकानन्द की जीवनी नहीं है। यह उनके लक्ष्य, कर्म और संघर्ष के आधार पर लिखा गया एक उपन्यास है। वे संन्यासी थे, अतः सर्वत्यागी थे। मद्रास की एक सभा में उनका परिचय देते हुए कहा गया था कि वे अपना घर परिवार, धन सम्पत्ति, मित्रा बन्धु, राग द्वेष तथा समस्त सांसारिक कामनाएँ त्याग चुके हैं। इस सर्वस्वत्यागी जीवन में यदि अब भी वे किसी से प्रेम करते हैं तो वह भारत माता है; और यदि उन्हें कोई दुःख है, तो भारत माता तथा उसकी सन्तान के अभावों और अपमान का दुःख है। स्वामी विवेकानन्द ने भारत माता को अपमानित और कलंकित करने वालों के देश में पहुँचकर उनकी जनता की पंचायत में उनकी भूल दर्शाई। अपनी माँ के गौरव को स्थापित किया। स्वामी जी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने तथा उनके कार्य का समर्थन प्रकट करने के लिए, उनके नगर कलकत्ता के नागरिकों ने जो सभा की, उसमें ‘इंडियन मिरर’ के सम्पादक ने कहा, ”वाणी की उपलब्धियों के इतिहास में इससे अधिक चमत्कारिक आज तक और कुछ नहीं हुआ। एक अज्ञात हिन्दू संन्यासी अपने अर्द्धप्राच्य परिधान में एक ऐसी सभा को सम्बोधित कर रहा था, जिसके आधे से अधिक श्रोता उसके नाम का भी शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते थे। वह एक ऐसे विषय पर बोल रहा था जो श्रोताओं के विचारों से कोसों दूर था और उसने तत्काल उनकी श्रद्धा और सम्मान अर्जित कर लिया।“ यह उपन्यास इसी सारी प्रक्रिया का विश्लेषण करता है।

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Description

‘न भूतो न भविष्यति’ स्वामी विवेकानन्द की जीवनी नहीं है। यह उनके लक्ष्य, कर्म और संघर्ष के आधार पर लिखा गया एक उपन्यास है। वे संन्यासी थे, अतः सर्वत्यागी थे। मद्रास की एक सभा में उनका परिचय देते हुए कहा गया था कि वे अपना घर परिवार, धन सम्पत्ति, मित्रा बन्धु, राग द्वेष तथा समस्त सांसारिक कामनाएँ त्याग चुके हैं। इस सर्वस्वत्यागी जीवन में यदि अब भी वे किसी से प्रेम करते हैं तो वह भारत माता है; और यदि उन्हें कोई दुःख है, तो भारत माता तथा उसकी सन्तान के अभावों और अपमान का दुःख है। स्वामी विवेकानन्द ने भारत माता को अपमानित और कलंकित करने वालों के देश में पहुँचकर उनकी जनता की पंचायत में उनकी भूल दर्शाई। अपनी माँ के गौरव को स्थापित किया। स्वामी जी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने तथा उनके कार्य का समर्थन प्रकट करने के लिए, उनके नगर कलकत्ता के नागरिकों ने जो सभा की, उसमें ‘इंडियन मिरर’ के सम्पादक ने कहा, ”वाणी की उपलब्धियों के इतिहास में इससे अधिक चमत्कारिक आज तक और कुछ नहीं हुआ। एक अज्ञात हिन्दू संन्यासी अपने अर्द्धप्राच्य परिधान में एक ऐसी सभा को सम्बोधित कर रहा था, जिसके आधे से अधिक श्रोता उसके नाम का भी शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते थे। वह एक ऐसे विषय पर बोल रहा था जो श्रोताओं के विचारों से कोसों दूर था और उसने तत्काल उनकी श्रद्धा और सम्मान अर्जित कर लिया।“ यह उपन्यास इसी सारी प्रक्रिया का विश्लेषण करता है।

About Author

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।
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