Yalgar

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शरणकुमार लिम्बाले, अनुवाद पद्मजा घोरपड़े
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
शरणकुमार लिम्बाले, अनुवाद पद्मजा घोरपड़े
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789389563733 Category
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136

यह कविता बॉम्बस्फोट का सच हैं!

खूनी है यह कविता!

खेतों की इन मेंड़ों को

कारावास की इन दीवारों को

शीशमहल की इन खिड़कियों को

पता नहीं है मेरे शब्दों में का सन्तप्त सौन्दर्य ?

ये तूफ़ान मेरे घमण्डी प्रश्वास से उठते हैं

मेरे हुंकार से प्रलय प्रसारित होती है

शोषितों के कण्ठ-कण्ठ में!

मेरी सख्त कलाई से इस देश का नया चेहरा उभर रहा है

मेरे शब्द-शब्द में सजा है नया इतिहास

इन शब्दों में दबोचा हुआ एक दुख है

इन अक्षरों में एक खण्डित सुख है।

शब्दों पर फैल रहा है अर्थ कोड़ों-सा

अक्षरों में से शब्द फैल रहे हैं।

लैस की गयी बन्दूक़-से

मेरे आसपास का धधकता असन्तोष

मुझे ही प्रज्वलित कर रहा है क़लम में से

कल के सन्दर्भ के लिए!

मेरे पैरों तले जल रही रेत और

आसमान आँसू टपका रहा है

मैं भयभीत हूँ किसी अनाहूत डर से लेकिन

सधी हुई लापरवाही से ।

बोल रहा हूँ कल के बारे में!

कल मैं रहूँगा नहीं रहूँगा।

लेकिन कल के अपने स्वागत हेतु

अपने ये शब्द-फल

अपने शिलालेख के रूप में छोड़े जा रहा हूँ।

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Description

यह कविता बॉम्बस्फोट का सच हैं!

खूनी है यह कविता!

खेतों की इन मेंड़ों को

कारावास की इन दीवारों को

शीशमहल की इन खिड़कियों को

पता नहीं है मेरे शब्दों में का सन्तप्त सौन्दर्य ?

ये तूफ़ान मेरे घमण्डी प्रश्वास से उठते हैं

मेरे हुंकार से प्रलय प्रसारित होती है

शोषितों के कण्ठ-कण्ठ में!

मेरी सख्त कलाई से इस देश का नया चेहरा उभर रहा है

मेरे शब्द-शब्द में सजा है नया इतिहास

इन शब्दों में दबोचा हुआ एक दुख है

इन अक्षरों में एक खण्डित सुख है।

शब्दों पर फैल रहा है अर्थ कोड़ों-सा

अक्षरों में से शब्द फैल रहे हैं।

लैस की गयी बन्दूक़-से

मेरे आसपास का धधकता असन्तोष

मुझे ही प्रज्वलित कर रहा है क़लम में से

कल के सन्दर्भ के लिए!

मेरे पैरों तले जल रही रेत और

आसमान आँसू टपका रहा है

मैं भयभीत हूँ किसी अनाहूत डर से लेकिन

सधी हुई लापरवाही से ।

बोल रहा हूँ कल के बारे में!

कल मैं रहूँगा नहीं रहूँगा।

लेकिन कल के अपने स्वागत हेतु

अपने ये शब्द-फल

अपने शिलालेख के रूप में छोड़े जा रहा हूँ।

About Author

शरणकुमार लिंबाले जन्म : 1 जून 1956 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991 देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994 दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000 नरवानर (उपन्यास) 2004 दलित ब्राह्मण (कहानी संग्रह) 2004 हिन्दू (उपन्यास) 2004 बहुजन (उपन्यास) 2009 दलित साहित्य : वेदना और विद्रोह (सम्पादन) 2010 झुंड (उपन्यास) 2012 प्रज्ञासूर्य : डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर 2013 गैर-दलित (समीक्षा) 2017 दलित पैन्थर (सम्पादन) 2019 यल्गार (कविता संग्रह) 2020 सनातन (उपन्यास) 2020 ई-मेल : sharankumarlimbale@gmail.com/ ܀܀܀ पद्मजा घोरपड़े (एम.ए., पीएच. डी., हिन्दी) हिन्दी के व्याख्याता, एसोसिएट प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत (1981 से 2017) प्रकाशित पुस्तकें-40 कविता संग्रह-4 कहानी संग्रह-2 पत्रकारिता-1 जीवनी-2 समीक्षात्मक-3 हिन्दी-मराठी-हिन्दी-अनुवाद-3 गौरव ग्रन्थ (सम्पादन)-3 अनुवाद एवं सम्पादन-2 हिन्दी-मराठी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षात्मक लेख एवं अनुवाद-80 सर्जना साहित्य एवं कला मंच की स्थापना एवं सचिव (1986 से 2000) सम्प्रति : 'परिक्रमा' आधारभूत सामाजिक सेवाकार्य न्यास की स्थापना एवं न्यास के प्रमुख न्यासी, अध्यक्ष के रूप में कार्यरत

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