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Waqt Ka Main Lipik (HB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
oth
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
oth
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9789386863645
Category Hindi
Category: Hindi
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‘वक़्त का मैं लिपिक’ अपने समय से सीधे मुठभेड़ तो है ही, इसमें कवि की व्यक्तिगत पीड़ा भी अनुस्यूत है। उनके व्यक्तिगत जीवन में जो कुछ घटित हुआ है, उसी का प्रतिबिम्बन इसमें हुआ है और शायद ये गीत न होते तो वे बिखर गए होते, टूट गए होते, हिंस्र पशु हो गए होते, लेकिन इन गीतों ने उन्हें सहारा देकर मनुष्य बने रहने की ताक़त दी है।
यश स्वयं ही मानते हैं कि ये गीत, उनके लिए गीत नहीं उनके जीवन की तारीख़ें हैं। इनमें बाबरी मस्जिद का क़त्ल है तो गुजरात कांड के फफोले और छाले भी इनके बदन पर हैं। इन पर रोज़-रोज़ बलात्कार का शिकार होती सुबहों की पथरा गई चीख़ों का प्रतिरोध भी दर्ज़ है।
…एक रचनाकार अपने जीवन-संघर्ष में किन-किन मोड़ों से गुज़रता है, यह देखना हो तो यश मालवीय के इन गीतों से दो-चार हुआ जा सकता है।
वे अपने गीतों को नवगीत कहलवाना पसन्द करते हैं और मानते हैं कि ढेर सारी विडम्बनाओं के साथ तकनीक के कंट्रास्ट को साधने में नवगीतों की भूमिका ऐतिहासिक रही है। लेकिन उनका ज़ोर इस बात पर सदैव रहता है कि नवगीतों की बुनियादी शर्त उनका गीत होना है।
इस संकलन में शामिल उनके गीत इस शर्त को बख़ूबी पूरा करते हैं।
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Description
‘वक़्त का मैं लिपिक’ अपने समय से सीधे मुठभेड़ तो है ही, इसमें कवि की व्यक्तिगत पीड़ा भी अनुस्यूत है। उनके व्यक्तिगत जीवन में जो कुछ घटित हुआ है, उसी का प्रतिबिम्बन इसमें हुआ है और शायद ये गीत न होते तो वे बिखर गए होते, टूट गए होते, हिंस्र पशु हो गए होते, लेकिन इन गीतों ने उन्हें सहारा देकर मनुष्य बने रहने की ताक़त दी है।
यश स्वयं ही मानते हैं कि ये गीत, उनके लिए गीत नहीं उनके जीवन की तारीख़ें हैं। इनमें बाबरी मस्जिद का क़त्ल है तो गुजरात कांड के फफोले और छाले भी इनके बदन पर हैं। इन पर रोज़-रोज़ बलात्कार का शिकार होती सुबहों की पथरा गई चीख़ों का प्रतिरोध भी दर्ज़ है।
…एक रचनाकार अपने जीवन-संघर्ष में किन-किन मोड़ों से गुज़रता है, यह देखना हो तो यश मालवीय के इन गीतों से दो-चार हुआ जा सकता है।
वे अपने गीतों को नवगीत कहलवाना पसन्द करते हैं और मानते हैं कि ढेर सारी विडम्बनाओं के साथ तकनीक के कंट्रास्ट को साधने में नवगीतों की भूमिका ऐतिहासिक रही है। लेकिन उनका ज़ोर इस बात पर सदैव रहता है कि नवगीतों की बुनियादी शर्त उनका गीत होना है।
इस संकलन में शामिल उनके गीत इस शर्त को बख़ूबी पूरा करते हैं।
About Author
यश मालवीय
जन्म : 18 जुलाई, 1962; कानपुर।
शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक।
साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन। प्रमुख रूप से नवगीत लेखन। कवि सम्मेलनों में भागीदारी के अतिरिक्त दूरदर्शन, आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से रचनाओं का प्रसारण, पत्र-पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन।
प्रमुख कृतियाँ : ‘कहो सदाशिव’, ‘उड़ान से पहले’, ‘एक चिड़िया अलगनी पर एक मन में’, ‘बुद्ध मुसकुराए’, ‘कुछ बोलो चिड़िया’, ‘रोशनी देती बीड़ियाँ’, ‘नींद काग़ज़ की तरह’, ‘समय लकड़हारा’, ‘वक़्त का मैं लिपिक’, ‘एक आग आदिम’, (नवगीत-संग्रह); ‘चिंगारी के बीज’ (दोहा-संग्रह); ‘इंटरनेट पर लड्डू’, ‘कृपया लाइन में आएँ’, ‘सर्वर डाउन है’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘ताक धिनाधिन’, ‘रेनी डे’ (बालगीत-संग्रह); एक नाटक ‘मैं कठपुतली अलबेली’ भारत रंग महोत्सव, नई दिल्ली में मंचित।
सम्मान : दो बार उ.प्र. हिन्दी संस्थान का ‘निराला सम्मान’, संस्थान का ही ‘सर्जना सम्मान’ व ‘उमाकांत मालवीय सम्मान’, मोदी कला भारती मुम्बई का ‘युवा कविता सम्मान’, परम्परा का ‘ऋतुराज सम्मान’, ‘शकुतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’।
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