SaleSold outPaperback
Visham Kone
Publisher:
Rajpal and Sons
| Author:
Gyan Chaturvedi
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajpal and Sons
Author:
Gyan Chaturvedi
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹350 ₹298
Save: 15%
Out of stock
Receive in-stock notifications for this.
Ships within:
1-4 Days
Out of stock
Book Type |
---|
Page Extent:
208
ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य में इस कदर मुब्तला लेखक हैं कि व्यंग्य से उन्हें अलगाकर देख पाना संभव नहीं। मानो ज्ञान और व्यंग्य एक दूसरे के पर्याय बन गए हों, सिक्के के दो कभी न अलग होने वाले पहलुओं की तरह। लेखन का छोटा-बड़ा कोई भी प्रारूप उन्हें सीमित नहीं करता। वे हमारे समय के सर्वाधिक समर्थ व्यंग्यकार हैं। अपने व्यंग्यों में वे समय-समाज के निर्मम सत्यों का मात्र उद्घाटन ही नहीं करते बल्कि उन पर गहन वैचारिक टिप्पणी करते हैं। यह वैचारिक टिप्पणियाँ भी व्यंग्य की बहुआयामिकता से सम्पन्न होने के कारण पाठक को सहज रूप से प्रभावित करती हैं। कहना न होगा कि व्यंग्यदृष्टि और लोकदृष्टि के सम्यक बहाव में ज्ञान लोकप्रियता और साहित्यिकता की खाई को भरसक पाटने का भी कार्य करते हैं। हम आज उस समाज के नागरिक हैं जहाँ नंगापन एक जीवनशैली के रूप में स्वीकृत हो गया है। विसंगतियों से भरपूर इस उत्तर आधुनिक समय मे ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य लेखन को एक जरूरी हस्तक्षेप की तरह देखा और पढ़ा जाना चाहिए। कई अर्थों में वह परसाई और जोशी के मानस अभिमन्यु की तरह विकृत यथार्थ के उस चक्रव्यूह को भेदते प्रतीत होते हैं जहाँ आम लेखक की पहुँच नहीं। उदात्त मानवीयता से परिपूर्ण अपने उद्देश्य में जिसकी नीयत और पक्षधरता शीशे की तरह एकदम साफ है। अपनी इस यात्रा में वे नितांत नई परंपरा गढ़ते हैं जिसे व्यंग्य की ‘ज्ञान परंपरा‘ कहा जाना चाहिए।
Description
ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य में इस कदर मुब्तला लेखक हैं कि व्यंग्य से उन्हें अलगाकर देख पाना संभव नहीं। मानो ज्ञान और व्यंग्य एक दूसरे के पर्याय बन गए हों, सिक्के के दो कभी न अलग होने वाले पहलुओं की तरह। लेखन का छोटा-बड़ा कोई भी प्रारूप उन्हें सीमित नहीं करता। वे हमारे समय के सर्वाधिक समर्थ व्यंग्यकार हैं। अपने व्यंग्यों में वे समय-समाज के निर्मम सत्यों का मात्र उद्घाटन ही नहीं करते बल्कि उन पर गहन वैचारिक टिप्पणी करते हैं। यह वैचारिक टिप्पणियाँ भी व्यंग्य की बहुआयामिकता से सम्पन्न होने के कारण पाठक को सहज रूप से प्रभावित करती हैं। कहना न होगा कि व्यंग्यदृष्टि और लोकदृष्टि के सम्यक बहाव में ज्ञान लोकप्रियता और साहित्यिकता की खाई को भरसक पाटने का भी कार्य करते हैं। हम आज उस समाज के नागरिक हैं जहाँ नंगापन एक जीवनशैली के रूप में स्वीकृत हो गया है। विसंगतियों से भरपूर इस उत्तर आधुनिक समय मे ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य लेखन को एक जरूरी हस्तक्षेप की तरह देखा और पढ़ा जाना चाहिए। कई अर्थों में वह परसाई और जोशी के मानस अभिमन्यु की तरह विकृत यथार्थ के उस चक्रव्यूह को भेदते प्रतीत होते हैं जहाँ आम लेखक की पहुँच नहीं। उदात्त मानवीयता से परिपूर्ण अपने उद्देश्य में जिसकी नीयत और पक्षधरता शीशे की तरह एकदम साफ है। अपनी इस यात्रा में वे नितांत नई परंपरा गढ़ते हैं जिसे व्यंग्य की ‘ज्ञान परंपरा‘ कहा जाना चाहिए।
About Author
मऊरानीपुर (झाँसी) उत्तर प्रदेश में 2 अगस्त, 1952 को जन्मे डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी की मध्य प्रदेश में ख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ की तरह विशिष्ट पहचान। चिकित्सा शिक्षा के दौरान सभी विषयों में स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले छात्र का गौरव हासिल किया। भारत सरकार के एक संस्थान (बी.एच.ई.एल.) के चिकित्सालय में कोई तीन दशक से ऊपर सेवाएँ देने के पश्चात् हाल ही में शीर्षपद से सेवा-निवृत्ति।
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
BHARTIYA ITIHAAS KA AADICHARAN: PASHAN YUG (in Hindi)
Save: 15%
BURHANPUR: Agyat Itihas, Imaratein aur Samaj (in Hindi)
Save: 15%
Tintin Samagra Box Set of 8 Volumes
Save: 5%