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Vibhajan : Bharatiya Bhashaon Ki Kahaniya (Khand-2)
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
नरेंद्र मोहन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
नरेंद्र मोहन
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9788126340866
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
424
विभाजन : भारतीय भाषाओं की कहानियाँ (खण्ड 2) –
किसी बड़े हादसे के सन्दर्भ में सामाजिक ढाँचा कैसे चरमराता है, राजनीति-तन्त्र कैसे बेअसर हो जाता है, सामाजिक जीवन किन गुत्थियों से भर जाता है, इन सबका सामना करती हुई विभाजन सम्बन्धी भारतीय कहानियाँ इतिहास का महज अनुकरण नहीं करती, उनका अतिक्रमण करने की, उनके पार देखने की दृष्टि भी देती हैं। तथ्य और संवेदना के बीच गज़ब का रिश्ता स्थापित करती हुई ये कहानियाँ कभी टिप्पणी, व्यंग्य और फ़न्तासी में तब्दील हो जाती हैं तो कभी तने हुए ब्यौरों से उस वक़्त के संकट की गहरी छानबीन करती दिखती हैं, जिससे सामाजिक सांस्कृतिक, राजनीतिक प्रसंगों की दहला देने वाली तस्वीर सामने आ जाती है। इन कहानियों की ऊपरी परतों के नीचे जो और-और परतें हैं, उनमें ऐसे अनुभवों और विचारों की बानगियाँ हैं जिन्हें आम लोगों का इतिहास सम्बन्धी अनुभव कह सकते हैं। कहानियों में छिपे हुए और कभी-कभी उनसे बाहर झाँकते आदमी का इतिहास और राजनीति का यह अनुभव इतिहास सम्बन्धी चर्चा से अकसर बाहर कर दिया जाता है।
इन कहानियों को यह जानने के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए कि बड़े-बड़े सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक मुद्दे आम लोगों की समझ से निखर कर कैसे स्मृति स्पन्दित मानवीय सच्चाइयों की शक्ल ले लेते हैं और इतिहास के परिचित चौखटे को तोड़कर उनकी पुनर्व्याख्या या पुनर्रचना का प्रयत्न करते हैं। जुड़ाव और अलगाव, स्थापित और विस्थापित, परम्परा, धर्म, संस्कृति और वतन के प्रश्न भी इन कहानियों में वे एक संश्लिष्ट मानवीय इकाई के रूप में सामने आये हैं।
भारतीय लेखकों ने विभाजन की त्रासदी के बार-बार घटित होने के सन्दर्भ को, स्वाधीनता की एकांगिता और अधूरेपन के मर्मान्तक बोध के साथ, कई बार कहानियों में उठाया है—कई तरीक़ों से, कई आयामों में। ध्यान से देखे तो स्वाधीनता, विभाजन और इस थीम पर भारतीय भाषाओं की कई लेखक पीढ़ियों द्वारा लिखी गयी कहानियाँ एक महत्त्वपूर्ण कथा दस्तावेज़ है, जिसे ‘विभाजन : भारतीय भाषाओं की कहानियाँ’, खण्ड-एक, खण्ड-दो में प्रस्तुत किया गया है।
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विभाजन : भारतीय भाषाओं की कहानियाँ (खण्ड 2) –
किसी बड़े हादसे के सन्दर्भ में सामाजिक ढाँचा कैसे चरमराता है, राजनीति-तन्त्र कैसे बेअसर हो जाता है, सामाजिक जीवन किन गुत्थियों से भर जाता है, इन सबका सामना करती हुई विभाजन सम्बन्धी भारतीय कहानियाँ इतिहास का महज अनुकरण नहीं करती, उनका अतिक्रमण करने की, उनके पार देखने की दृष्टि भी देती हैं। तथ्य और संवेदना के बीच गज़ब का रिश्ता स्थापित करती हुई ये कहानियाँ कभी टिप्पणी, व्यंग्य और फ़न्तासी में तब्दील हो जाती हैं तो कभी तने हुए ब्यौरों से उस वक़्त के संकट की गहरी छानबीन करती दिखती हैं, जिससे सामाजिक सांस्कृतिक, राजनीतिक प्रसंगों की दहला देने वाली तस्वीर सामने आ जाती है। इन कहानियों की ऊपरी परतों के नीचे जो और-और परतें हैं, उनमें ऐसे अनुभवों और विचारों की बानगियाँ हैं जिन्हें आम लोगों का इतिहास सम्बन्धी अनुभव कह सकते हैं। कहानियों में छिपे हुए और कभी-कभी उनसे बाहर झाँकते आदमी का इतिहास और राजनीति का यह अनुभव इतिहास सम्बन्धी चर्चा से अकसर बाहर कर दिया जाता है।
इन कहानियों को यह जानने के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए कि बड़े-बड़े सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक मुद्दे आम लोगों की समझ से निखर कर कैसे स्मृति स्पन्दित मानवीय सच्चाइयों की शक्ल ले लेते हैं और इतिहास के परिचित चौखटे को तोड़कर उनकी पुनर्व्याख्या या पुनर्रचना का प्रयत्न करते हैं। जुड़ाव और अलगाव, स्थापित और विस्थापित, परम्परा, धर्म, संस्कृति और वतन के प्रश्न भी इन कहानियों में वे एक संश्लिष्ट मानवीय इकाई के रूप में सामने आये हैं।
भारतीय लेखकों ने विभाजन की त्रासदी के बार-बार घटित होने के सन्दर्भ को, स्वाधीनता की एकांगिता और अधूरेपन के मर्मान्तक बोध के साथ, कई बार कहानियों में उठाया है—कई तरीक़ों से, कई आयामों में। ध्यान से देखे तो स्वाधीनता, विभाजन और इस थीम पर भारतीय भाषाओं की कई लेखक पीढ़ियों द्वारा लिखी गयी कहानियाँ एक महत्त्वपूर्ण कथा दस्तावेज़ है, जिसे ‘विभाजन : भारतीय भाषाओं की कहानियाँ’, खण्ड-एक, खण्ड-दो में प्रस्तुत किया गया है।
About Author
नरेन्द्र मोहन -
एक साथ कई साहित्यिक विधाओं और माध्यमों में सृजनशील रहने वाले हिन्दी के प्रमुख कवि, नाटककार और आलोचक।
जन्म: 30 जुलाई, 1935, लाहौर।
अपनी कविताओं (कविता संग्रह) 'इस हादसे में','सामना होने पर', 'एक अग्निकांड जगहें बदलता', 'हथेली पर अंगारे की तरह', 'संकट दृश्य का नहीं', 'और एक सुलगती ख़ामोशी', 'एक खिड़की खुली है अभी', 'नीले घोड़े का सवार' और नाटकों—'कहै कबीर सुनो भाई साधो', 'सींगधारी', 'कलन्दर', 'नो मैंस लैंड', 'अभंगगाथा', 'मि. जिन्ना', 'मंच अँधेरे में' और 'हद हो गयी, यारो' द्वारा उन्होंने कविता और नाटक की नयी परिकल्पना को विकसित किया है। नयी रंगत में ढली उनकी डायरी रचना 'साथ-साथ मेरा साया' ने इस विधा को नये मायने दिये हैं, नये चिन्तन को उकसाया है।
नरेन्द्र मोहन ने अपनी आलोचना पुस्तकों और सम्पादन कार्यों द्वारा सृजन और समीक्षा के नये आधारों की खोज करते हुए नये काव्य माध्यमों (लम्बी कविता), नवीन, प्रवृत्तियों (विचार कविता) नये विमर्श (विभाजन, विद्रोह और साहित्य) को भी रेखांकित किया है। हिन्दी कविता, कहानी और उपन्यास पर उनकी आलोचना पुस्तकें व्यापक चर्चा का विषय बनी हैं। 'मंटो की कहानियाँ' और 'मंटो के नाटक' उनको सम्पादन प्रतिभा के परिचायक हैं।
उनके नाटक, डायरी और कविताएँ भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में भी अनूदित एवं प्रकाशित हैं। ये कई राष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत साहित्यकार हैं। आठ खण्डों में 'नरेन्द्र मोहन रचनावली' प्रकाशित हो चुकी है।
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