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Uttar Ki Yatrayen (HB)
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‘जापानी महाकवि बाशो उन बिरले कवियों में से हैं जिनकी कविता का अनुवाद शायद संसार की हर छोटी-बड़ी भाषा में हुआ है। हाइकू नामक विधा का ज़िक्र आते ही प्राय: सभी रसिकों को जो पहला नाम याद आता है वह बाशो का है। बाशो जितने बड़े और अविराम कवि थे उतने ही अथक यात्री भी। उनका यह यात्रा-वृत्त अपने क़िस्म का अनोखा है। वरिष्ठ कवि सुरेश सलिल ने बहुत मनोयोग और कल्पनाशीलता से इसे अंग्रेज़ी से अनूदित किया है। उन्होंने बहुत जतन से यथास्थान सन्दर्भ के नोट्स भी दिए हैं जिनसे स्थानों, कवियों, राजवंशों आदि का पता भी होता चलता है। रज़ा पुस्तक माला में एक महाकवि का यात्रा-वृत्त बहुत अच्छे हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।’
—अशोक वाजपेयी।
‘जापानी महाकवि बाशो उन बिरले कवियों में से हैं जिनकी कविता का अनुवाद शायद संसार की हर छोटी-बड़ी भाषा में हुआ है। हाइकू नामक विधा का ज़िक्र आते ही प्राय: सभी रसिकों को जो पहला नाम याद आता है वह बाशो का है। बाशो जितने बड़े और अविराम कवि थे उतने ही अथक यात्री भी। उनका यह यात्रा-वृत्त अपने क़िस्म का अनोखा है। वरिष्ठ कवि सुरेश सलिल ने बहुत मनोयोग और कल्पनाशीलता से इसे अंग्रेज़ी से अनूदित किया है। उन्होंने बहुत जतन से यथास्थान सन्दर्भ के नोट्स भी दिए हैं जिनसे स्थानों, कवियों, राजवंशों आदि का पता भी होता चलता है। रज़ा पुस्तक माला में एक महाकवि का यात्रा-वृत्त बहुत अच्छे हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।’
—अशोक वाजपेयी।
About Author
मात्सुओ बाशो
मात्सुओ बाशो (1644-1694) एक महान जापानी कवि थे जो हाइकु काव्य विधा के जनक माने जाते हैं। हाइकु कविता की लोकप्रियता और समृद्धि में उनका विशेष योगदान है।
जीवन:
बाशो एक जेन संत थे। बाशो ने हाइकु को काव्य विधा के रूप में स्थापित किया। बाशो का बचपन का नाम ‘जिन शिचरो’ था। इनके शिष्य ने केले का पौधा भेंट में दिया तो उसे रोप दिया। वहीं अपनी कुटिया भी बना ली। ‘बाशो-आन’ (केला) के नाम पर अपना नाम भी बाशो कर लिया। बाशो हाइकु को दरबारी या अन्य शब्द क्रीड़ा से बाहर लेकर आए और काव्य की वह गरिमा प्रदान की कि विश्व भर की भाषाओं में इन छन्दों को प्राथमिकता दी जाने लगी। ये घुमक्कड़ और प्रकृति प्रेमी वीतरागी सन्त कहलाए। इन्हें प्रकृति और मनुष्य की एकरूपता में भरोसा था। जेन दर्शन में जो क्षण की महत्ता है, वह इनके काव्य का प्राण बनी। यात्रा के दौरान इनके लगभग दो हजार शिष्य बने, जिनमें से 300 पर्याप्त लोकप्रिय हुए। इनका मानना था कि सार्थक पाँच हाइकु लिखने वाला सच्चा कवि और दस लिखने वाला महाकवि कहलाने का हकदार है। इनका मानना था कि इस संसार का प्रत्येक विषय हाइकु के योग्य है। एकाकीपन, सहज अभिव्यक्ति और अन्तर्दृष्टि बाशो की तीन अन्त: सलिलाएँ हैं।
मात्सुओ बाशो का जन्म एक समुराए घराने में 12 अक्टूबर, 1644 को उनो के इगा प्रदेश में हुआ। उनके द्वारा रचा साहित्य यह दर्शाता है कि उन्होंने अपनी तमाम आयु प्रकृति की गोद में बिताई। चालीस वर्ष की आयु में वे एक भिक्षु की तरह जगह-जगह घूमने लगे। बौद्ध मत को मानने वाले (जिन्हें जेन कहा जाता था) और प्रकृति को चाहने वाले हजारों लोग उनके शिष्य बन गए। उनमें से एक शिष्य ने उनके लिए एक झोंपड़ी बना दी और उसके सामने एक केले का पेड़ लगा दिया। केले को जापानी भाषा में ‘बाशो‘ कहते हैं। उनकी झोंपड़ी को ‘बाशो-एन’ कहा जाता था। इसके पश्चात वह मात्सुओ बाशो बने। वे कम शब्दों में बड़ी बात कह देते थे। जापान में बहुत से स्मारकों पर बाशो के हाइकु लिखे गए हैं। किसी बीमारी की वजह से बाशो की मृत्यु 28 नवम्बर 1694 को हो गई। बाशो हाइकु के प्रमुख चार कवियों- (बाशो, बुसोन, इस्सा, शिकि) में से एक हैं। हाइकु के इतिहास में सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से अठारहवीं शताब्दी मध्य तक का एक शताब्दी का काल बाशो-युग के नाम से अभिहित किया जाता है।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी यात्रा डायरी 'ओकु-नो-होसोमिचि' जापानी साहित्य की अमूल्य निधि मानी जाती है।
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