SalePaperback
Kitne Ghazi Aye Kitne Ghazi Gaye
₹699 ₹559
Save: 20%
MADE IN INDIA: 75 Years of Business and Enterprise
₹595 ₹536
Save: 10%
Tumhari Aukaat Kya Hai
Publisher:
RajKamal
| Author:
Piyush Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
RajKamal
Author:
Piyush Mishra
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹239
Save: 20%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
Weight | 230 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Categories: Hindi, PIRecommends
Page Extent:
248
पीयूष मिश्रा जब मंच पर होते हैं तो वहाँ उनके अलावा सिर्फ़ उनका आवेग दिखता है। जिन लोगों ने उन्हें मंडी हाउस में एकल करते देखा है, वे ऊर्जा के उस वलय को आज भी उसी तरह गतिमान देख पाते होंगे। अपने गीत, अपने संगीत, अपनी देह और अपनी कला में आकंठ एकमेक एक सम्पूर्ण अभिनेता! अब वे फिल्में कर रहे हैं, गीत लिख रहे हैं, संगीत रच रहे हैं; और यह उनकी आत्मकथा है जिसे उन्होंने उपन्यास की तर्ज पर लिखा है। और लिखा नहीं; जैसे शब्दों को चित्रों के रूप में आँका है। इसमें सब कुछ उतना ही ‘परफ़ेक्ट’ है जितने बतौर अभिनेता वे स्वयं। न अतिरिक्त कोई शब्द, न कोई ऐसा वाक्य जो उस दृश्य को और सजीव न करता हो। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ‘अनयूजुअल’—से परिवार में जन्मा एक बच्चा चरण-दर-चरण अपने भीतर छिपी असाधारणता का अन्वेषण करता है; और क़स्बाई मध्यवर्गीयता की कुंठित और करुण बाधाओं को पार करते हुए धीरे-धीरे अपने भीतर के कलाकार के सामने आ खड़ा होता है। अपने आत्म के सम्मुख जिससे उसे ताज़िन्दगी जूझना है; अपने उन डरों के समक्ष जिनसे डरना उतना ज़रूरी नहीं, जितना उन्हें समझना है। इस आत्मकथात्मक उपन्यास का नायक हैमलेट, यानी संताप त्रिवेदी यानी पीयूष मिश्रा यह काम अपनी ख़ुद की कीमत पर करता है। यह आत्मकथा जितनी बाहर की कहानी बताती है—ग्वालियर, दिल्ली, एनएसडी, मुम्बई, साथी कलाकारों आदि की—उससे ज़्यादा भीतर की कहानी बताती है, जिसे ऐसी गोचर दृश्यावली में पिरोया गया जो कभी-कभी ही हो पाता है। इसमें हम दिल्ली के थिएटर जगत, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के कई सुखद-दुखद पहलुओं को देखते हैं; एक अभिनेता के निर्माण की आन्तरिक यात्रा को भी। और एक संवेदनशील रचनात्मक मानस के भटकावों-विचलनों-आशंकाओं को भी। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि इस किताब की इसका गद्य है। पीयूष मिश्रा की कहन यहाँ अपने उरूज़ पर है। पठनीयता के लगातार संकरे होते हिन्दी परिसर में यह गद्य खिली धूप-सा महसूस होता है।
Be the first to review “Tumhari Aukaat Kya
Hai” Cancel reply
Description
पीयूष मिश्रा जब मंच पर होते हैं तो वहाँ उनके अलावा सिर्फ़ उनका आवेग दिखता है। जिन लोगों ने उन्हें मंडी हाउस में एकल करते देखा है, वे ऊर्जा के उस वलय को आज भी उसी तरह गतिमान देख पाते होंगे। अपने गीत, अपने संगीत, अपनी देह और अपनी कला में आकंठ एकमेक एक सम्पूर्ण अभिनेता! अब वे फिल्में कर रहे हैं, गीत लिख रहे हैं, संगीत रच रहे हैं; और यह उनकी आत्मकथा है जिसे उन्होंने उपन्यास की तर्ज पर लिखा है। और लिखा नहीं; जैसे शब्दों को चित्रों के रूप में आँका है। इसमें सब कुछ उतना ही ‘परफ़ेक्ट’ है जितने बतौर अभिनेता वे स्वयं। न अतिरिक्त कोई शब्द, न कोई ऐसा वाक्य जो उस दृश्य को और सजीव न करता हो। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ‘अनयूजुअल’—से परिवार में जन्मा एक बच्चा चरण-दर-चरण अपने भीतर छिपी असाधारणता का अन्वेषण करता है; और क़स्बाई मध्यवर्गीयता की कुंठित और करुण बाधाओं को पार करते हुए धीरे-धीरे अपने भीतर के कलाकार के सामने आ खड़ा होता है। अपने आत्म के सम्मुख जिससे उसे ताज़िन्दगी जूझना है; अपने उन डरों के समक्ष जिनसे डरना उतना ज़रूरी नहीं, जितना उन्हें समझना है। इस आत्मकथात्मक उपन्यास का नायक हैमलेट, यानी संताप त्रिवेदी यानी पीयूष मिश्रा यह काम अपनी ख़ुद की कीमत पर करता है। यह आत्मकथा जितनी बाहर की कहानी बताती है—ग्वालियर, दिल्ली, एनएसडी, मुम्बई, साथी कलाकारों आदि की—उससे ज़्यादा भीतर की कहानी बताती है, जिसे ऐसी गोचर दृश्यावली में पिरोया गया जो कभी-कभी ही हो पाता है। इसमें हम दिल्ली के थिएटर जगत, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के कई सुखद-दुखद पहलुओं को देखते हैं; एक अभिनेता के निर्माण की आन्तरिक यात्रा को भी। और एक संवेदनशील रचनात्मक मानस के भटकावों-विचलनों-आशंकाओं को भी। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि इस किताब की इसका गद्य है। पीयूष मिश्रा की कहन यहाँ अपने उरूज़ पर है। पठनीयता के लगातार संकरे होते हिन्दी परिसर में यह गद्य खिली धूप-सा महसूस होता है।
About Author
एक बहुत लंबे अंतराल के बाद यह पहली बार ही है जब हिन्दी सिनेमा के किसी बहुचर्चित-बहुप्रशंसित अभिनेता ने अपनी आत्मकथा अंग्रेज़ी में न लिखकर और छपवाकर, पहले अपनी मातृभाषा हिन्दी में लिखी हो और हिन्दी में ही पहले छपवाने को प्राथमिकता दे रहा हो। इससे पहले किशोर साहू ने अपनी आत्मकथा हिन्दी में लिखी थी जो लिखे जाने के 41 साल बाद राजकमल से ही छपकर दुनिया के सामने आई। • 'कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया' (कविता-संग्रह), 'आरम्भ है प्रचंड' (गीत-संग्रह) और 'गगन दमामा बाज्यो' (नाटक) के लिए प्रसिद्ध रचनाकार पीयूष मिश्रा का आत्मकथात्मक उपन्यास है—'तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा'। • 'गुलाल' फ़िल्म में अपने अभिनय के लिए बहुचर्चित पीयूष मिश्रा के अभिनय की असल प्रसिद्धि 'हैमलेट' नाटक में निभाया उनका मुख्य किरदार रहा है। बतौर अभिनेता उनके जीवन का अब तक का सफ़र किस तरह के उतार-चढ़ाव, संघर्ष-सफलता के साथ का रहा है, पहली बार मुकम्मल ढंग से यह किताब सामने ला रही है। • औपन्यासिक ओट में लिखी गई इस आत्मकथा से हम पीयूष मिश्रा के आसपास की दुनिया—ग्वालियर, दिल्ली, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के सुनहरे-अँधेरे हिस्सों के साथ उनकी भीतरी दुनिया, उनके मन के अब तक ढँके कोनों-अंतरों को भी बहुत करीब से जान और महसूस कर पाते हैं। • पीयूष कम-से-कम तीन पीढ़ियों के भाई, दोस्त, हमदम हैं। फिर भी वे नौजवान दिल के यारबाश आदमी हैं और युवा तो युवा, किशोरों से भी उतने ही घुले-मिले रहते हैं जैसे वे अपनी पीढ़ी के दोस्तों के बीच बैठे हों। यही वह खूबी है जिस कारण उनकी लिखाई में भाषा का भारीपन कहीं देखने को नहीं मिलता। उनके आत्मकथात्मक उपन्यास को पढ़ते हुए लगता है जैसे किसी युवतर पीढ़ी के लेखक ने आजकल की ज़बान में लिखा हो। • 'तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा' एक अभिनेता, गीतकार, नाटककार, कवि, गायक के जीवन की कहानी मात्र नहीं है। यह एक हौसले के टूटकर बिखर जाने से बचने और खुद को साबित करने की बेमिसाल प्रेरक कथा भी है। • ताजगी——भाषा में भी, कहने के अंदाज़ में भी। युवामन की सबसे ज़रूरी किताब। • कैसे भी डर और घिसेपिटेपन से पार पाने की अदम्य ज़िद। जीवन में भी, काम में भी। एक बेलौस ज़िन्दगी की कथा, जिसमें आत्ममुग्धता नहीं, अपनी भी बेरहम पड़ताल है। असफलताओं और गलतियों की साफ़बयानी है। गलतियों से पार पाने की भी कहानी है।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Tumhari Aukaat Kya
Hai” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Reviews
There are no reviews yet.