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Tum Kab Aaoge Shyava
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Suryakant Bali
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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ISBN:
Categories: Hindi, Literature & Translations
Page Extent:
192
सूर्यकांत बाली का यह उपन्यास वैदिक प्रेमकथा पर आधारित है। वैदिक काल के किसी कथानक को उपन्यास के माध्यम से पाठकों तक सशक्त और अत्यंत आकर्षक शैली में पहुँचाने वाले श्री बाली हिंदी ही नहीं, संभवतः समस्त भारतीय भाषाओं के प्रथम उपन्यासकार के रूप में हमारे सामने हैं। यह उपन्यास प्रसिद्ध वैदिक ऋषि श्यावाश्व आत्रेय के जीवन पर आधारित है। श्यावाश्व जिस कुल में पैदा हुए थे, उसे हम वैदिक अत्रि कुल के नाम से जानते हैं, और जब-जब भी अत्रि मुनि की बात करते हैं तो हमें उस ऐतिहासिक घटना का स्मरण हो जाता है, जब राम वनगमन के समय अत्रि और अनसूया के आश्रम में गए थे। उसी अत्रि कुल में पैदा हुए श्यावाश्व आत्रेय की प्रसिद्धि इस कारण भी हुई कि वे मन में ही संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण मानते थे। श्यावाश्व जिस अत्रि कुल में हुए उसे हम ऐतिहासिक आधार पर त्रेतायुग का और चार से छह हजार वर्ष पूर्व का मानते हैं, जब वैदिक काल अपने शिखर पर था। प्रेम और दार्शनिकता से भरपूर प्रस्तुत कथा ‘तुम कब आओगे श्यावा’ में ऋषि श्यावाश्व की ऐतिहासिक जीवनगाथा के साथ-साथ प्राचीन वैदिक काल के आश्रमों, राजप्रासादों और सामान्य जीवनशैली को बड़े ही सजीव तरीके से पाठकों के समक्ष रख दि गया है।
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Description
सूर्यकांत बाली का यह उपन्यास वैदिक प्रेमकथा पर आधारित है। वैदिक काल के किसी कथानक को उपन्यास के माध्यम से पाठकों तक सशक्त और अत्यंत आकर्षक शैली में पहुँचाने वाले श्री बाली हिंदी ही नहीं, संभवतः समस्त भारतीय भाषाओं के प्रथम उपन्यासकार के रूप में हमारे सामने हैं। यह उपन्यास प्रसिद्ध वैदिक ऋषि श्यावाश्व आत्रेय के जीवन पर आधारित है। श्यावाश्व जिस कुल में पैदा हुए थे, उसे हम वैदिक अत्रि कुल के नाम से जानते हैं, और जब-जब भी अत्रि मुनि की बात करते हैं तो हमें उस ऐतिहासिक घटना का स्मरण हो जाता है, जब राम वनगमन के समय अत्रि और अनसूया के आश्रम में गए थे। उसी अत्रि कुल में पैदा हुए श्यावाश्व आत्रेय की प्रसिद्धि इस कारण भी हुई कि वे मन में ही संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण मानते थे। श्यावाश्व जिस अत्रि कुल में हुए उसे हम ऐतिहासिक आधार पर त्रेतायुग का और चार से छह हजार वर्ष पूर्व का मानते हैं, जब वैदिक काल अपने शिखर पर था। प्रेम और दार्शनिकता से भरपूर प्रस्तुत कथा ‘तुम कब आओगे श्यावा’ में ऋषि श्यावाश्व की ऐतिहासिक जीवनगाथा के साथ-साथ प्राचीन वैदिक काल के आश्रमों, राजप्रासादों और सामान्य जीवनशैली को बड़े ही सजीव तरीके से पाठकों के समक्ष रख दि गया है।
About Author
सूर्यकान्त बाली भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. This is)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभात का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।
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