Trahi Trahi

Publisher:
Vani prakashan
| Author:
Narendra Kohli
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani prakashan
Author:
Narendra Kohli
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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344

अनासक्त विवेक जब न्याय के पक्ष में अपने आक्रोश को कलात्मक रूप में अभिव्यक्त करता है, तो व्यंग्य का जन्म होता है। व्यंग्य की आत्मा है, उसकी प्रखरता और तेजस्विता। हास-परिहास, विनोद, कटाक्ष इत्यादि उसके सहयोगी हो सकते हैं; किन्तु उनका असन्तुलित प्रयोग प्रखरता की हानि भी कर सकता है, जैसे पक्षपात तथा पूर्वाग्रह उसके तेज को नष्ट कर देता है। विधा के रूप में व्यंग्य का केन्द्रीय स्वरूप यद्यपि व्यंग्य-निबन्ध के शिल्प में ही उभरा है; किन्तु ‘कथा’ तथा ‘काव्य’ के ही समान ‘व्यंग्य’ एक ऐसा तत्त्व है, जिसमें व्यंग्य-निबन्ध, व्यंग्य-कथा, व्यंग्य-उपन्यास तथा व्यंग्य-नाटक का जन्म होता है। नरेन्द्र कोहली के सृजन में कथा तथा व्यंग्य-दोनों का ही संयोग है। उनकी आरम्भिक कहानियों में भी व्यंग्य की झलक देखी जा सकती है; किन्तु इस संकलन में केवल वे ही रचनाएँ सम्मिलित की गयी हैं, जो व्यंग्य के रूप में ही लिखी गयी हैं-उनका शिल्प चाहे निबन्ध का हो, संस्मरण का हो, कथा का हो, आत्मकथा का हो, उपन्यास का हो, नाटक का हो। उनकी रचनाओं में मौलिक प्रयोगों का अपना महत्त्व है। वे प्रयोग फंतासी तथा अवश्रद्ध कथा-रूपों में भी हो सकते हैं।

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Description

अनासक्त विवेक जब न्याय के पक्ष में अपने आक्रोश को कलात्मक रूप में अभिव्यक्त करता है, तो व्यंग्य का जन्म होता है। व्यंग्य की आत्मा है, उसकी प्रखरता और तेजस्विता। हास-परिहास, विनोद, कटाक्ष इत्यादि उसके सहयोगी हो सकते हैं; किन्तु उनका असन्तुलित प्रयोग प्रखरता की हानि भी कर सकता है, जैसे पक्षपात तथा पूर्वाग्रह उसके तेज को नष्ट कर देता है। विधा के रूप में व्यंग्य का केन्द्रीय स्वरूप यद्यपि व्यंग्य-निबन्ध के शिल्प में ही उभरा है; किन्तु ‘कथा’ तथा ‘काव्य’ के ही समान ‘व्यंग्य’ एक ऐसा तत्त्व है, जिसमें व्यंग्य-निबन्ध, व्यंग्य-कथा, व्यंग्य-उपन्यास तथा व्यंग्य-नाटक का जन्म होता है। नरेन्द्र कोहली के सृजन में कथा तथा व्यंग्य-दोनों का ही संयोग है। उनकी आरम्भिक कहानियों में भी व्यंग्य की झलक देखी जा सकती है; किन्तु इस संकलन में केवल वे ही रचनाएँ सम्मिलित की गयी हैं, जो व्यंग्य के रूप में ही लिखी गयी हैं-उनका शिल्प चाहे निबन्ध का हो, संस्मरण का हो, कथा का हो, आत्मकथा का हो, उपन्यास का हो, नाटक का हो। उनकी रचनाओं में मौलिक प्रयोगों का अपना महत्त्व है। वे प्रयोग फंतासी तथा अवश्रद्ध कथा-रूपों में भी हो सकते हैं।

About Author

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।

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