Teen Din, Do Raten

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Virendra Jain
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Virendra Jain
Language:
Hindi
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Hardback

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इतना सुख है जीवन में! इतना कुछ है मेरे मन में! और अब तक मैं इससे वंचित था, अनजान था! भारतीय मध्यवर्ग में बढ़ती बाजारवाद, उपभोक्तावाद और भोगवाद की प्रवृत्तियों के संदर्भ में इससे बेहतर स्वीकारोक्ति नहीं हो सकती। लालसाएँ आदमी को घेरे रहती हैं, कुछ प्रत्यक्ष रूप में सामने आती हैं, तो कुछ अंतस में दबी रहती हैं और अनुकूल अवसर पाते ही पूर्ति हेतु सिर उठाने लगती हैं। लगता है जैसे आधुनिकतम महानगरीय मध्यवर्ग अपनी सभी लालसाओं की पूर्ति के लिए बेताब है। इसमें दो फाड़ की नौबत आ चुकी है। एक जो खुलकर इस खुलेपन को जी रहा है और दूसरे के पास आर्थिक संसाधन कम पड़ रहे हैं। ऐसे में उसे जब मौका मिलता है तो वह इसे जीने के लिए अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ता। बाजार इस वर्ग की मजबूरी और इच्छाओं को समझते हुए हमेशा चारा फेंकने की जुगत में रहता है। वह गैर-जरूरी चीजों के प्रति भी भ्रमपूर्ण लगाव पैदा कर भावनाओं का दोहन करने से नहीं चूकता। एक नई उपभोक्ता संस्कृति साकार ही नहीं हो रही, दिन-ब-दिन विकराल भी होती जा रही है। कुशल व्यवसायी सिर्फ माल नहीं बेच रहे, बड़ी चालाकी से विचार भी प्रत्यारोपित कर रहे हैं। उदारवाद के पीछे की चालाकी और चतुराई को उजागर करना नितांत आवश्यक हो गया है। ‘तीन दिन, दो रातें’ एक इनामी किस्से की कथा के बहाने इसी ज्वलंत समस्या को परत-दर-परत बेनकाब करता है। प्रसिद्ध लेखक वीरेंद्र जैन की यह खासियत है कि वे अपनी चुटीली भाषा-शैली के जरिए कथानक को चरम पर ले जाते वक्त भी यथार्थ को सहेजते हैं। इसीलिए उनका यह उपन्यास भौतिकवाद के विनाशकारी परिणामों का पुख्ता दस्तावेज बन पड़ा है|

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Description

इतना सुख है जीवन में! इतना कुछ है मेरे मन में! और अब तक मैं इससे वंचित था, अनजान था! भारतीय मध्यवर्ग में बढ़ती बाजारवाद, उपभोक्तावाद और भोगवाद की प्रवृत्तियों के संदर्भ में इससे बेहतर स्वीकारोक्ति नहीं हो सकती। लालसाएँ आदमी को घेरे रहती हैं, कुछ प्रत्यक्ष रूप में सामने आती हैं, तो कुछ अंतस में दबी रहती हैं और अनुकूल अवसर पाते ही पूर्ति हेतु सिर उठाने लगती हैं। लगता है जैसे आधुनिकतम महानगरीय मध्यवर्ग अपनी सभी लालसाओं की पूर्ति के लिए बेताब है। इसमें दो फाड़ की नौबत आ चुकी है। एक जो खुलकर इस खुलेपन को जी रहा है और दूसरे के पास आर्थिक संसाधन कम पड़ रहे हैं। ऐसे में उसे जब मौका मिलता है तो वह इसे जीने के लिए अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ता। बाजार इस वर्ग की मजबूरी और इच्छाओं को समझते हुए हमेशा चारा फेंकने की जुगत में रहता है। वह गैर-जरूरी चीजों के प्रति भी भ्रमपूर्ण लगाव पैदा कर भावनाओं का दोहन करने से नहीं चूकता। एक नई उपभोक्ता संस्कृति साकार ही नहीं हो रही, दिन-ब-दिन विकराल भी होती जा रही है। कुशल व्यवसायी सिर्फ माल नहीं बेच रहे, बड़ी चालाकी से विचार भी प्रत्यारोपित कर रहे हैं। उदारवाद के पीछे की चालाकी और चतुराई को उजागर करना नितांत आवश्यक हो गया है। ‘तीन दिन, दो रातें’ एक इनामी किस्से की कथा के बहाने इसी ज्वलंत समस्या को परत-दर-परत बेनकाब करता है। प्रसिद्ध लेखक वीरेंद्र जैन की यह खासियत है कि वे अपनी चुटीली भाषा-शैली के जरिए कथानक को चरम पर ले जाते वक्त भी यथार्थ को सहेजते हैं। इसीलिए उनका यह उपन्यास भौतिकवाद के विनाशकारी परिणामों का पुख्ता दस्तावेज बन पड़ा है|

About Author

वीरेंद्र जैन शिक्षक दिवस 1955 को मध्यप्रदेश के अशोक नगर जिलांतर्गत सिरसौद गाँव में जन्म, जो इन दिनों आधा जल और आधा काल के गाल में समाया हुआ है। 1969 में दिल्ली महानगर में जीविकोपार्जन की शुरुआत। 10 साल विभिन्न प्रकाशनों में और 35 साल पत्रकारिता में बिताए। प्रमुख प्रकाशित उपन्यास: शब्द-बध, सबसे बड़ा सिपहिया, डूब, पार, पंचनामा। लघु उपन्यास: दे ताली, गैल और गन, पहला सप्तक, तीन अतीत। कहानी-संग्रह: भार्या, बीच के बारह बरस। व्यंग्य-संग्रह: बहस बीच में, रचना की मार्केटिंग। बालोपयोगी कथाएँ: हास्यकथा बत्तीसी, तुम भी हँसो, बात में बात में बात। फुटकर गद्य: अभिवादन और खेद सहित, नसरुद्दीन के किस्से और तीन चित्रकथाएँ। पुरस्कार/सम्मान: शब्द-बध के लिए म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार, सबसे बड़ा सिपहिया के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली का साहित्यिक कृति पुरस्कार, डूब की पांडुलिपि के लिए वाणी प्रकाशन का प्रेमचंद महेश सम्मान और प्रकाशित रूप में डूब के लिए मध्य प्रदेश सहित्य परिषद् का अखिल भारतीय वीरसिंह देव पुरस्कार, पार के लिए श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार, पंचनामा के लिए निर्मल पुरस्कार, उपन्यास के क्षेत्र में निरंतर और सक्रिय योगदान के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस सम्मान, बात में बात में बात और तीन चित्रकथाएँ के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली से बाल साहित्य पुरस्कार।

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