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Abhishapta Katha
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Manu Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Manu Sharma
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹450 ₹338
Save: 25%
In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
248
कच उठ बैठा। उसने आचार्य के चरण छुए। “जीवेम शरद: शतम्।” आचार्य ने कहा। कच ने एक विजयी दृष्टि जयंती पर डाली। वह भी सफलता पर मुसकरा रही थी। “आपने अपना ज्ञान दिया, मैं कृतज्ञ हुआ, आचार्य!” कच ने विजयोन्माद में कहा। “क्या!” आचार्य का मुख खुला-का-खुला रह गया। उन्हें ऐसा लगा जैसे विस्फोट हो गया है। धधकते ज्वालामुखी में वह गिरते चले जा रहे हैं। आकाश से नक्षत्र टूट-टूटकर उन पर भहरा रहे हैं। वे उटज से पागलों-सा चिल्लाते हुए निकले, “मेरे साथ धोखा हुआ! मैं लूट लिया गया! मेरे वैभव में उन छलियों ने आग लगा दी! मैं भस्म हो रहा हूँ। मुझे बचाओ! मुझे बचाओ!” —इसी उपन्यास से ‘कृष्ण की आत्मकथा’ जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक श्री मनु शर्मा द्वारा लिखित कच-देवयानी की बहुचर्चित पौराणिक कथा पर आधारित पठनीय उपन्यास। यह औपन्यासिक कृति पौराणिक इतिहास की जानकारी देने के साथ ही तत्कालीन आर्यावर्त के सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक इतिहास का भी लेखा-जोखा है।.
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Description
कच उठ बैठा। उसने आचार्य के चरण छुए। “जीवेम शरद: शतम्।” आचार्य ने कहा। कच ने एक विजयी दृष्टि जयंती पर डाली। वह भी सफलता पर मुसकरा रही थी। “आपने अपना ज्ञान दिया, मैं कृतज्ञ हुआ, आचार्य!” कच ने विजयोन्माद में कहा। “क्या!” आचार्य का मुख खुला-का-खुला रह गया। उन्हें ऐसा लगा जैसे विस्फोट हो गया है। धधकते ज्वालामुखी में वह गिरते चले जा रहे हैं। आकाश से नक्षत्र टूट-टूटकर उन पर भहरा रहे हैं। वे उटज से पागलों-सा चिल्लाते हुए निकले, “मेरे साथ धोखा हुआ! मैं लूट लिया गया! मेरे वैभव में उन छलियों ने आग लगा दी! मैं भस्म हो रहा हूँ। मुझे बचाओ! मुझे बचाओ!” —इसी उपन्यास से ‘कृष्ण की आत्मकथा’ जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक श्री मनु शर्मा द्वारा लिखित कच-देवयानी की बहुचर्चित पौराणिक कथा पर आधारित पठनीय उपन्यास। यह औपन्यासिक कृति पौराणिक इतिहास की जानकारी देने के साथ ही तत्कालीन आर्यावर्त के सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक इतिहास का भी लेखा-जोखा है।.
About Author
‘आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो बरसों बाद मैं डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़ा जाऊँगा।’ इसी विश्वास के साथ मनु शर्मा की रचना-यात्रा खुद की बनाई पगडंडी पर जारी है। हिंदी की खेमेबंदी से दूर मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना- संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं। जन्म: सन् 1928 की शरत् पूर्णिमा को अकबरपुर, फैजाबाद में। अब तक: ‘तीन प्रश्न’, ‘राणा साँगा’, ‘शिवानी का आशीर्वाद’, ‘एकलिंग का दीवान’ ऐतिहासिक; ‘मरीचिका’, ‘गांधी लौटे’, ‘विवशता’, ‘लक्ष्मणरेखा’ सामाजिक तथा ‘द्रौपदी की आत्मकथा’, ‘द्रोण की आत्मकथा’, ‘कर्ण की आत्मकथा’, ‘कृष्ण की आत्मकथा’, ‘गांधारी की आत्मकथा’ और ‘अभिशप्त कथा’ पौराणिक उपन्यास हैं। ‘पोस्टर उखड़ गया’, ‘मुंशी नवनीत लाल’, ‘महात्मा’, ‘दीक्षा’ कहानी-संग्रह हैं। सम्मान-अलंकरण: गोरखपुर विश्व-विद्यालय से डी.लिट. की मानद उपाधि। उ.प्र. हिंदी संस्थान का ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान का ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’ एवं उ.प्र. सरकार का ‘यश भारती सम्मान’।.
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