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Sookha Gulab
Publisher:
Rajpal and Sons
| Author:
Shivani
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajpal and Sons
Author:
Shivani
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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Category: Hindi
Page Extent:
16
शिवानी (17 अक्तूबर 1923-21 मार्च 2003) हिन्दी की जानी-मानी लेखिका हैं। उनका पूरा नाम था गौरा पंत। उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक उपन्यास, कहानियां और यात्रा-वृत्तांत लिखे। हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए 1982 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। बच्चों के लिए सूखा गुलाब, स्वामीभक्त चूहा, राधिका सुन्दरी, बिल्ली और मूसारानी उनकी लोकप्रिय पुस्तकें हैं।
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Description
शिवानी (17 अक्तूबर 1923-21 मार्च 2003) हिन्दी की जानी-मानी लेखिका हैं। उनका पूरा नाम था गौरा पंत। उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक उपन्यास, कहानियां और यात्रा-वृत्तांत लिखे। हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए 1982 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। बच्चों के लिए सूखा गुलाब, स्वामीभक्त चूहा, राधिका सुन्दरी, बिल्ली और मूसारानी उनकी लोकप्रिय पुस्तकें हैं।
About Author
"शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। इनका जन्म १७ अक्टूबर १९२३ को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई! साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी,आमादेर शन्तिनिकेतन,विषकन्या चौदह फेरे आदि प्रमुख हैं।
हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी श्ख्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया|
कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था।
उनकी कृतियों से यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की।शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजारवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली [धर्मयुग] में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था।
भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास का बहुत प्यारा पन्ना थीं। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थीं। उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान बडा है
परिचय जन्म : 17 अक्टूबर 1923, राजकोट (गुजरात)"
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