Shivani (Set Of 5 Books) : Bhairavee| Shamshan Champa| Pratinidhi Kahaniyan|Sunhu Tat Yah Akath Kahani| Bhikshuni

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Shivani
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Paperback)

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652
  1. Bhairavee :- …“कैसा आश्चर्य था कि वही चन्दन, जो कभी सड़क पर निकलती अर्थी की रामनामी सुनकर माँ से चिपट जाती थी, रात-भर भय से थरथराती रहती थी, आज यहाँ शमशान के बीचोबीच जा रही सड़क पर निःशंक चली जा रही थी। कहीं पर बुझी चिन्ताओं के घेरे से उसकी भगवा धोती छू जाती, कभी बुझ रही चिता का दुर्गंधमय धुआँ हवा के किसी झोंके के साथ नाक-मुँह में घुस जाता।…” जटिल जीवन की परिस्थितियों ने थपेड़े मार-मारकर सुन्दरी चन्दन को पतिगृह से बाहर किया और भैरवी बनने को बाध्य कर दिया। जिस ललाट पर गुरु ने चिता-भस्मी टेक दी हो क्या उस पर सिन्दूर का टीका फिर कभी लग सकता है? शिवानी के इस रोमांचकारी उपन्यास में सिद्ध साधकों और विकराल रूपधारिणी भैरवियों की दुनिया में भटककर चली आई भोली, निष्पाप चन्दन एक ऐसी मुक्त बन्दिनी बन जाती है, जो सांसारिक प्रेम-सम्बन्धों में लौटकर आने की उत्कट इच्छा के बावजूद अपनी अन्तर्आत्मा की बेड़ियाँ नहीं त्याग पाती और सोचती रह जाती है—क्या वह जाए? पर कहाँ?
  2. Shamshan Champa :- ‘चम्पा तुझ में तीन गुण, रूप, रंग अरु बास।अवगुण तुझमें एक है, भ्रमर न आवत पास।।’एक थी चम्पा। रूप, रंग और गुणों की मादक कस्तूरी गंध लिए चम्पा। लेकिन पिता की मृत्यु, बिगड़ैल छोटी बहन की कलंक-गाथा और स्वयं उसके दुर्भाग्य ने उसे बुरी तरह झकझोर डाला। बाहर से आत्मतुष्ट, संयमी और आत्मविश्वासी दीखनेवाली डॉक्टर चम्पा के अभिशप्त जीवन की वेदना की मार्मिक कहानी है ‘श्मशान चम्पा’। एक परम्परा प्रेमी और आज्ञाकारी बेटी जो सबको इलाज और निर्बाध सेवा दे सकती थी, पर अपने अभिशप्त एकाकी जीवन का सन्नाटा भंग नहीं कर पाती है। सुख के शिखर पर पहुँचाकर स्वयं नियति ही निर्ममता से उसे बार-बार नीचे गिराती अनिश्चय की घाटियों में भटकने को भेजती रहती है।
  3. Pratinidhi Kahaniyan :- शिवानी कुशल कथाशिल्पी भी थीं, और रूढ़िभंजक भी। उनकी कहानियों में एक दुचित्ते रूढ़िवादी और पिता केन्द्रित समाज की कई विडम्बनाएँ हम साफ पढ़ सकते हैं। बेटों की उत्कट कामना, लड़की को दूसरे दर्जे का जीव मानकर उस पर तमाम तरह के अंकुश, शादी-ब्याह तय करने के चतुर छल-कपटमय दाँव-पेंच, और युवा लड़कियों के विद्रोही तेवर सबको उन्होंने भरपूर जिया भी और दर्ज भी किया है। उनमें हमको 60 से 90 तक के युग के निरन्तर बदल रहे पर पितृसत्ताक मूल्यों के पक्षधर भारतीय राज समाज की घरेलू तथा कामकाजी औरतों के जीवन की कई अनकही सचाइयों का बेबाक दर्शन होता है, जो सामान्यत: पुरुष लेखकों ने बहुत कम पकड़ा है। पकड़ा भी है तो सेक्स या मातृत्व के भावुक चित्रण तक ही सीमित होकर। विचार और संशय, श्रद्धा और बुद्धि के बीच पाठक को निरन्तर चलायमान रखती शिवानी की इन कहानियों में हम आज भी कथा की चौखट लाँघकर मानव जीवन की सनातनता को छू सकते हैं।
  4. Sunhu Tat Yah Akath Kahani :- कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई ज़मीन बनाई थी, जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे। उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज़्यादा पढ़े जानेवाले लेखकों में एक होकर रहीं। कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया। अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने क़रीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया। इस पुस्तक में शिवानी की आत्मवृत्तात्मक ‘सुनहु तात यह अकथ कहानी’ और ‘सोने दे’ शीर्षक के लेख शामिल हैं। आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसन्द आएँगी।
  5. Bhikshuni  :- महिला कथाकारों में जितनी ख्याति और लोकप्रियता शिवानी ने प्राप्त की है, वह एक उदाहरण है श्रेष्ठ लेखन के लोकप्रिय होने का। शिवानी लोकप्रियता के शिखर को छू लेनेवाली ऐसी हस्ती हैं, जिनकी लेखनी से उपजी कहानियाँ कलात्मक और मर्मस्पर्शी होती हैं।अन्तर्मन की गहरी पर्तें उघाड़नेवाली ये मार्मिक कहानियाँ शिवानी की अपनी मौलिक पहचान हैं जिसके कारण उनका अपना एक व्यापक पाठक वर्ग तैयार हुआ। इनकी कहानियाँ न केवल श्रेष्ठ साहित्यिक उपलब्धियाँ हैं, बल्कि रोचक भी इतनी अधिक हैं कि आप एक बार शुरू करके पूरी पढ़े बिना छोड़ ही न सकेंगे। प्रस्तुत संग्रह में ‘तोमार जे दोक्खिन मुख’, ‘ज्यूडिश से जयन्ती’, ‘भिक्षुणी’, ‘मामाजी’, ‘अनाथ’, ‘भूल’, ‘सती’, ‘मौसी’, ‘प्रतीक्षा’ एवं ‘लाटी’ कहानियाँ संकलित हैं। हर कथा अपनी मोहक शैली में अभिभूत कर देने की अपार क्षमता रखती है। कलात्मक कौशल के साथ रची गईं ये कहानियाँ हमारी धरोहर हैं जिन्हें आज की नई पीढ़ी अवश्य पढ़ना चाहेगी।
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  1. Bhairavee :- …“कैसा आश्चर्य था कि वही चन्दन, जो कभी सड़क पर निकलती अर्थी की रामनामी सुनकर माँ से चिपट जाती थी, रात-भर भय से थरथराती रहती थी, आज यहाँ शमशान के बीचोबीच जा रही सड़क पर निःशंक चली जा रही थी। कहीं पर बुझी चिन्ताओं के घेरे से उसकी भगवा धोती छू जाती, कभी बुझ रही चिता का दुर्गंधमय धुआँ हवा के किसी झोंके के साथ नाक-मुँह में घुस जाता।…” जटिल जीवन की परिस्थितियों ने थपेड़े मार-मारकर सुन्दरी चन्दन को पतिगृह से बाहर किया और भैरवी बनने को बाध्य कर दिया। जिस ललाट पर गुरु ने चिता-भस्मी टेक दी हो क्या उस पर सिन्दूर का टीका फिर कभी लग सकता है? शिवानी के इस रोमांचकारी उपन्यास में सिद्ध साधकों और विकराल रूपधारिणी भैरवियों की दुनिया में भटककर चली आई भोली, निष्पाप चन्दन एक ऐसी मुक्त बन्दिनी बन जाती है, जो सांसारिक प्रेम-सम्बन्धों में लौटकर आने की उत्कट इच्छा के बावजूद अपनी अन्तर्आत्मा की बेड़ियाँ नहीं त्याग पाती और सोचती रह जाती है—क्या वह जाए? पर कहाँ?
  2. Shamshan Champa :- ‘चम्पा तुझ में तीन गुण, रूप, रंग अरु बास।अवगुण तुझमें एक है, भ्रमर न आवत पास।।’एक थी चम्पा। रूप, रंग और गुणों की मादक कस्तूरी गंध लिए चम्पा। लेकिन पिता की मृत्यु, बिगड़ैल छोटी बहन की कलंक-गाथा और स्वयं उसके दुर्भाग्य ने उसे बुरी तरह झकझोर डाला। बाहर से आत्मतुष्ट, संयमी और आत्मविश्वासी दीखनेवाली डॉक्टर चम्पा के अभिशप्त जीवन की वेदना की मार्मिक कहानी है ‘श्मशान चम्पा’। एक परम्परा प्रेमी और आज्ञाकारी बेटी जो सबको इलाज और निर्बाध सेवा दे सकती थी, पर अपने अभिशप्त एकाकी जीवन का सन्नाटा भंग नहीं कर पाती है। सुख के शिखर पर पहुँचाकर स्वयं नियति ही निर्ममता से उसे बार-बार नीचे गिराती अनिश्चय की घाटियों में भटकने को भेजती रहती है।
  3. Pratinidhi Kahaniyan :- शिवानी कुशल कथाशिल्पी भी थीं, और रूढ़िभंजक भी। उनकी कहानियों में एक दुचित्ते रूढ़िवादी और पिता केन्द्रित समाज की कई विडम्बनाएँ हम साफ पढ़ सकते हैं। बेटों की उत्कट कामना, लड़की को दूसरे दर्जे का जीव मानकर उस पर तमाम तरह के अंकुश, शादी-ब्याह तय करने के चतुर छल-कपटमय दाँव-पेंच, और युवा लड़कियों के विद्रोही तेवर सबको उन्होंने भरपूर जिया भी और दर्ज भी किया है। उनमें हमको 60 से 90 तक के युग के निरन्तर बदल रहे पर पितृसत्ताक मूल्यों के पक्षधर भारतीय राज समाज की घरेलू तथा कामकाजी औरतों के जीवन की कई अनकही सचाइयों का बेबाक दर्शन होता है, जो सामान्यत: पुरुष लेखकों ने बहुत कम पकड़ा है। पकड़ा भी है तो सेक्स या मातृत्व के भावुक चित्रण तक ही सीमित होकर। विचार और संशय, श्रद्धा और बुद्धि के बीच पाठक को निरन्तर चलायमान रखती शिवानी की इन कहानियों में हम आज भी कथा की चौखट लाँघकर मानव जीवन की सनातनता को छू सकते हैं।
  4. Sunhu Tat Yah Akath Kahani :- कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई ज़मीन बनाई थी, जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे। उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज़्यादा पढ़े जानेवाले लेखकों में एक होकर रहीं। कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया। अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने क़रीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया। इस पुस्तक में शिवानी की आत्मवृत्तात्मक ‘सुनहु तात यह अकथ कहानी’ और ‘सोने दे’ शीर्षक के लेख शामिल हैं। आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसन्द आएँगी।
  5. Bhikshuni  :- महिला कथाकारों में जितनी ख्याति और लोकप्रियता शिवानी ने प्राप्त की है, वह एक उदाहरण है श्रेष्ठ लेखन के लोकप्रिय होने का। शिवानी लोकप्रियता के शिखर को छू लेनेवाली ऐसी हस्ती हैं, जिनकी लेखनी से उपजी कहानियाँ कलात्मक और मर्मस्पर्शी होती हैं।अन्तर्मन की गहरी पर्तें उघाड़नेवाली ये मार्मिक कहानियाँ शिवानी की अपनी मौलिक पहचान हैं जिसके कारण उनका अपना एक व्यापक पाठक वर्ग तैयार हुआ। इनकी कहानियाँ न केवल श्रेष्ठ साहित्यिक उपलब्धियाँ हैं, बल्कि रोचक भी इतनी अधिक हैं कि आप एक बार शुरू करके पूरी पढ़े बिना छोड़ ही न सकेंगे। प्रस्तुत संग्रह में ‘तोमार जे दोक्खिन मुख’, ‘ज्यूडिश से जयन्ती’, ‘भिक्षुणी’, ‘मामाजी’, ‘अनाथ’, ‘भूल’, ‘सती’, ‘मौसी’, ‘प्रतीक्षा’ एवं ‘लाटी’ कहानियाँ संकलित हैं। हर कथा अपनी मोहक शैली में अभिभूत कर देने की अपार क्षमता रखती है। कलात्मक कौशल के साथ रची गईं ये कहानियाँ हमारी धरोहर हैं जिन्हें आज की नई पीढ़ी अवश्य पढ़ना चाहेगी।

About Author

जन्म : 17 अक्तूबर, 1923 को विजयादशमी के दिन राजकोट (गुजरात)। शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलनेवाली ‘नटखट’ नामक एक बाल-पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘गोरा’ पुकारते थे। उनकी ही सलाह कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर उन्होंने हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। शिवानी की पहली लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक अनवरत चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएँ ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृत्तात्मक आख्यान हैं। 1979 में शिवानी जी को ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया। उपन्यास, कहानी, व्यक्ति-चित्र, बाल उपन्यास और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ से निकलनेवाले पत्र ‘स्वतंत्र भारत’ के लिए शिवानी ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास-66, गुलिस्ताँ कालोनी के द्वार लेखकों, कलाकारों, साहित्य-प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग से जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे। निधन : 21 मार्च, 2003 (दिल्ली)।
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