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Shadi Ka Album (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Girish Karnad, Tr. Padmavati Rao
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Girish Karnad, Tr. Padmavati Rao
Language:
Hindi
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Hardback

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गिरीश कारनाड के नाटकों में मन की तहें खुलती हैं। उनके पौराणिक कथा-सूत्रों पर आधारित नाटकों में पाठकों-दर्शकों ने मनुष्य की आदिम वृत्तियों, उसकी अकुंठ जिजीविषा, वासना, नैतिक वर्जनाओं में कुलबुलाते और उनके सच को उघाड़ते आत्म को अनेक रूपों में देखा है।यह उनका आधुनिक परिवेश में घटित नाटक है। इसमें इक्कीसवीं सदी के भारत की एकदम नई पीढ़ी और उसके पीछे अब भी खड़े पुराने भारत की छवियाँ हैं। इस लिहाज़ से इस नाटक में वह एक भिन्न आस्वाद की रचना करते हैं। लेकिन व्यक्ति के भीतर और बाहर तथा समाज के दैनिक व्यवहारों और नैतिक प्रतिज्ञाओं के बीच की फाँक को प्रकाशित करने की उनकी लेखकीय शपथ यहाँ भी उतनी ही तीव्र है।यह नाटक हमें बताता है कि अब भी हमारा जीवन दो समानान्तर यथार्थों के साथ ही सम्भव है, कि आज इंटरनेट और ग्लोबल गाँव के वातावरण में भी हम वह पारदर्शिता प्राप्त नहीं कर पाए जिसका सपना हमारा वास्तविक आत्म अपने सबसे स्वच्छ क्षणों में देखता है, और जिसका आकर्षक चित्रांकन हमारे सब धर्म और नीति-संहिताएँ करती हैं।कहानी एक परिवार की है जहाँ दो शादियाँ होनी हैं। किसी भी भारतीय परिवार में शादी के आसपास जैसा वातावरण होता है, उसे संवादों और दृश्यों के रूप में जिस तरह यहाँ गिरीश कारनाड ने रूपायित किया है, वह अद्भुत है और उसके साथ-साथ, परिवार के अतीत में बिंधी अब तक अनकही सच्चाइयों और भावी पीढ़ी के सुविधावादी समझौतों को जितने बारीक नश्तर से उकेरा है, वह भी।नाटक में कहीं भी ऐसे किसी दृश्य का आयोजन नहीं है जिसे मंच पर उतारना कठिन हो, और न ही कहीं इतना शिथिल कि पढ़नेवाला पढ़ता न चला जाए।

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Description

गिरीश कारनाड के नाटकों में मन की तहें खुलती हैं। उनके पौराणिक कथा-सूत्रों पर आधारित नाटकों में पाठकों-दर्शकों ने मनुष्य की आदिम वृत्तियों, उसकी अकुंठ जिजीविषा, वासना, नैतिक वर्जनाओं में कुलबुलाते और उनके सच को उघाड़ते आत्म को अनेक रूपों में देखा है।यह उनका आधुनिक परिवेश में घटित नाटक है। इसमें इक्कीसवीं सदी के भारत की एकदम नई पीढ़ी और उसके पीछे अब भी खड़े पुराने भारत की छवियाँ हैं। इस लिहाज़ से इस नाटक में वह एक भिन्न आस्वाद की रचना करते हैं। लेकिन व्यक्ति के भीतर और बाहर तथा समाज के दैनिक व्यवहारों और नैतिक प्रतिज्ञाओं के बीच की फाँक को प्रकाशित करने की उनकी लेखकीय शपथ यहाँ भी उतनी ही तीव्र है।यह नाटक हमें बताता है कि अब भी हमारा जीवन दो समानान्तर यथार्थों के साथ ही सम्भव है, कि आज इंटरनेट और ग्लोबल गाँव के वातावरण में भी हम वह पारदर्शिता प्राप्त नहीं कर पाए जिसका सपना हमारा वास्तविक आत्म अपने सबसे स्वच्छ क्षणों में देखता है, और जिसका आकर्षक चित्रांकन हमारे सब धर्म और नीति-संहिताएँ करती हैं।कहानी एक परिवार की है जहाँ दो शादियाँ होनी हैं। किसी भी भारतीय परिवार में शादी के आसपास जैसा वातावरण होता है, उसे संवादों और दृश्यों के रूप में जिस तरह यहाँ गिरीश कारनाड ने रूपायित किया है, वह अद्भुत है और उसके साथ-साथ, परिवार के अतीत में बिंधी अब तक अनकही सच्चाइयों और भावी पीढ़ी के सुविधावादी समझौतों को जितने बारीक नश्तर से उकेरा है, वह भी।नाटक में कहीं भी ऐसे किसी दृश्य का आयोजन नहीं है जिसे मंच पर उतारना कठिन हो, और न ही कहीं इतना शिथिल कि पढ़नेवाला पढ़ता न चला जाए।

About Author

गिरीश कारनाड

1938, माथेरान, महाराष्ट्र में जन्मे गिरीश कारनाड की मातृभाषा कन्नड़ है। गणित की सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर ‘रोड्स स्कॉलर’ के रूप में ऑक्सफ़ोर्ड गए।

1963 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, मद्रास में नौकरी। 1970 में ‘भाषा फ़ेलोशिप’, नौकरी से त्याग-पत्र और स्वतंत्र लेखन की शुरुआत। पहला नाटक 'ययाति' 1968 में छपा और चर्चा का विषय बना। 'तुगलक' के लेखन-प्रकाशन और बहुभाषी अनुवादों-प्रदर्शनों से राष्ट्रीय स्तर के नाटककार के रूप में प्रतिष्ठा। 1971 में 'हयवदन' का प्रकाशन, अभिमंचन। 2015 में 'बलि'; 2017 में 'शादी का एलबम', 'बिखरे बिम्ब और पुष्प'; 2018 में

'टीपू सुल्तान के ख्वाब' का प्रकाशन। पूना के फ़िल्म संस्थान में प्रधानाचार्य, त्याग-पत्र और इस नए सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के प्रति दिलचस्पी। सन् 1988 से कुछ वर्ष पहले तक ‘संगीत नाटक अकादेमी’, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे।

‘संस्कार’, ‘वंशवृक्ष’, ‘काड़ू’, ‘अंकुर’, ‘निशान्त’, ‘स्वामी’ और 'गोधूलि' जैसी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत एवं प्रशंसित फ़‍िल्मों में अभिनय-निर्देशन। 'मृच्छकटिक' पर आधारित फ़‍िल्मालेख, 'उत्सव' के लेखक-निर्देशक तथा एक लोकप्रिय दूरदर्शन धारावाहिक के महत्त्वपूर्ण अभिनेता के रूप में बहुचर्चित।

सम्मान : ‘तुगलक’ के लिए ‘संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार’, 'हयवदन' के लिए ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार’, 'रक्त कल्याण' के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा साहित्य में समग्र योगदान के लिए ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

निधन : 10 जून, 2019

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