Samajwad Ka Sarathi

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Sanjay Lathar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

375

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1-4 Days

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Book Type

ISBN:
Page Extent:
264

अखिलेश यादव का जीवन संघर्षों की लंबी गाथा है। वे परिस्थितिवश सियासत में आए। मुलायम सिंह यादव ने उन्हें साल 2000 में समाजवाद की कठिन सियासी डगर पर उतार दिया। उस समय परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि न चाहते हुए भी अखिलेश यादव को पिता की बात मानकर राजनीति के मैदान में उतरना पड़ा। टेक्नोक्रेट बनने का सपना देखनेवाले अखिलेश तकरीबन एक दशक तक संसद् से लेकर सड़क तक सरकार और सिस्टम से युवाओं की लड़ाई लड़ते रहे। लंबे जुझारू संघर्ष की बदौलत वे युवाओं में एक उम्मीद बनकर उभरे। जब युवाओं के बीच अखिलेश यादव नाम की उम्मीद ने अँगड़ाई ली तो उसने सूबे की बागडोर महज 38 साल के इस युवा नेता के हाथों में सौंप दी। अखिलेश यादव ने डॉ. लोहिया की सोच को दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में जमीन पर उतारकर दिखा दिया। समाजवादी विकास का एक ऐसा एजेंडा पेश किया, जिसमें समाज के हर तबके की तरक्की के लिए कोई-न-कोई योजना है। विकासवादी राजनीति के कामयाब समाजवादी मॉडल के जरिए उन्होंने 20 करोड़ की विशाल आबादी वाले सूबे में हाशिए पर खड़े अंतिम इनसान तक संसाधनों को पहुँचाने का सफल प्रयास किया। अखिलेश ने समाजवाद की सियासत को एक नए अंदाज में गढ़ा और मौजूदा दौर में अप्रसांगिक करार दिए गए समाजवाद को पुनर्स्थापित कर दिया। समाजवादी आकाश में चमकते इस सितारे के संघर्ष और सफर पर अभी तक अकादमिक दृष्टि से रोशनी नहीं डाली गई। यह पुस्तक इस कमी को पूरा करने का एक प्रयास है।.

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अखिलेश यादव का जीवन संघर्षों की लंबी गाथा है। वे परिस्थितिवश सियासत में आए। मुलायम सिंह यादव ने उन्हें साल 2000 में समाजवाद की कठिन सियासी डगर पर उतार दिया। उस समय परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि न चाहते हुए भी अखिलेश यादव को पिता की बात मानकर राजनीति के मैदान में उतरना पड़ा। टेक्नोक्रेट बनने का सपना देखनेवाले अखिलेश तकरीबन एक दशक तक संसद् से लेकर सड़क तक सरकार और सिस्टम से युवाओं की लड़ाई लड़ते रहे। लंबे जुझारू संघर्ष की बदौलत वे युवाओं में एक उम्मीद बनकर उभरे। जब युवाओं के बीच अखिलेश यादव नाम की उम्मीद ने अँगड़ाई ली तो उसने सूबे की बागडोर महज 38 साल के इस युवा नेता के हाथों में सौंप दी। अखिलेश यादव ने डॉ. लोहिया की सोच को दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में जमीन पर उतारकर दिखा दिया। समाजवादी विकास का एक ऐसा एजेंडा पेश किया, जिसमें समाज के हर तबके की तरक्की के लिए कोई-न-कोई योजना है। विकासवादी राजनीति के कामयाब समाजवादी मॉडल के जरिए उन्होंने 20 करोड़ की विशाल आबादी वाले सूबे में हाशिए पर खड़े अंतिम इनसान तक संसाधनों को पहुँचाने का सफल प्रयास किया। अखिलेश ने समाजवाद की सियासत को एक नए अंदाज में गढ़ा और मौजूदा दौर में अप्रसांगिक करार दिए गए समाजवाद को पुनर्स्थापित कर दिया। समाजवादी आकाश में चमकते इस सितारे के संघर्ष और सफर पर अभी तक अकादमिक दृष्टि से रोशनी नहीं डाली गई। यह पुस्तक इस कमी को पूरा करने का एक प्रयास है।.

About Author

पत्रकार से राजनेता बने डॉ. संजय लाठर की पहचान युवा समाजवादी चिंतक और चुनाव-प्रबंधक के रूप में है। छात्र आंदोलनों में अपनी सक्रियता के दौरान वे समाजवाद से परिचित हुए। एक बार लोहिया को पढ़ना शुरू किया तो समाजवाद के रंग में रँगते ही चले गए। समाजवाद, राजनीति और सामाजिक ताने-बाने की गहरी समझ ने उन्हें सफल चुनाव-प्रबंधक बना दिया। वे समाजवादी पार्टी के युवा रणनीतिकार हैं। पार्टी की तरफ से उन्हें समय-समय पर चुनावी प्रबंधन की भी जिम्मेदारी मिलती रही है। डॉ. सजय लाठर समाजवादी छात्र सभा और समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। हरियाणा के जींद जिले की जुलाना तहसील के बूढ़ा खेड़ा लाठर गाँव में पैदा हुए संजय लाठर की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश रही है। छात्र जीवन का ज्यादातर वक्त भी यहीं बीता। राजनीति और समाजवाद की समझ भी यहीं बनी। राजनीति शास्त्र, इतिहास, कानून और जनसंचार में उच्च अध्ययन करनेवाले संजय लाठर ने पत्रकारिता में पी-एच.डी. भी की है। कुछ समय तक वे पत्रकारिता में सक्रिय रहे और विभिन्न मीडिया संस्थानों में काम भी किया। लेकिन समाज बदलने की डॉ. लोहिया की प्रेरणा ने उन्हें राजनीति की ओर मोड़ दिया। फिलहाल वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य हैं।.
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