Radheya (PB)
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‘कर्ण’ के जीवन की विडम्बनाएँ और उसके चरित्र की उदात्तता बार-बार आधुनिक रचनाकारों को आकर्षित करती रही हैं। उसका जीवन-चरित बार-बार नाटकों, खंड-काव्यों और उपन्यासों का विषय बनता रहा है। यह उपन्यास भी कर्ण के जीवन पर आधारित है।
ऐतिहासिक-पौराणिक कथानकों पर प्रभावशाली औपन्यासिक सृष्टि करने में सिद्धहस्त लेखक रणजीत देसाई ने अपनी इस कृति में कर्ण की एक व्यक्ति और एक परिस्थिति, दोनों रूपों में व्याख्या की है। माता-पिता के स्नेह से वंचित, सतत उपेक्षित और अपमानित कर्ण जीवन-भर किसी ऐसे अपराध की सज़ा भोगता रहता है, जिसमें वह कहीं शामिल नहीं था। क़दम-क़दम पर उससे उसकी जातिगत श्रेष्ठता का प्रमाण माँगा जाता है, जो वह नहीं दे पाता, जिसके कारण उसके व्यक्तित्व का प्राकृतिक तेज धूमिल पड़ जाता है। वह अकेला पड़ जाता है। ‘महाभारत’ के इतने विस्तृत फलक पर जिस तरह का अकेलापन कर्ण झेलता है, वह और कोई पात्र नहीं।
प्रस्तुत उपन्यास में गंगा के किनारे जाकर कर्ण को ध्यानस्थ होते देखना सचमुच उसे उस करुणा और सहानुभूति का अधिकारी बनाता है जिसे उसका देश-काल अपनी धार्मिक-सामाजिक सीमाओं के चलते नहीं दे पाया।
‘कर्ण’ के जीवन की विडम्बनाएँ और उसके चरित्र की उदात्तता बार-बार आधुनिक रचनाकारों को आकर्षित करती रही हैं। उसका जीवन-चरित बार-बार नाटकों, खंड-काव्यों और उपन्यासों का विषय बनता रहा है। यह उपन्यास भी कर्ण के जीवन पर आधारित है।
ऐतिहासिक-पौराणिक कथानकों पर प्रभावशाली औपन्यासिक सृष्टि करने में सिद्धहस्त लेखक रणजीत देसाई ने अपनी इस कृति में कर्ण की एक व्यक्ति और एक परिस्थिति, दोनों रूपों में व्याख्या की है। माता-पिता के स्नेह से वंचित, सतत उपेक्षित और अपमानित कर्ण जीवन-भर किसी ऐसे अपराध की सज़ा भोगता रहता है, जिसमें वह कहीं शामिल नहीं था। क़दम-क़दम पर उससे उसकी जातिगत श्रेष्ठता का प्रमाण माँगा जाता है, जो वह नहीं दे पाता, जिसके कारण उसके व्यक्तित्व का प्राकृतिक तेज धूमिल पड़ जाता है। वह अकेला पड़ जाता है। ‘महाभारत’ के इतने विस्तृत फलक पर जिस तरह का अकेलापन कर्ण झेलता है, वह और कोई पात्र नहीं।
प्रस्तुत उपन्यास में गंगा के किनारे जाकर कर्ण को ध्यानस्थ होते देखना सचमुच उसे उस करुणा और सहानुभूति का अधिकारी बनाता है जिसे उसका देश-काल अपनी धार्मिक-सामाजिक सीमाओं के चलते नहीं दे पाया।
About Author
रणजीत देसाई
जन्म : 8 अप्रैल, 1928, कोल्हापुर (महाराष्ट्र)।
शिक्षा : इंटरमीडिएट (राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर)।
प्रकाशित रचनाएँ : उपन्यास : बारी, माझा गाँव, स्वामी, श्रीमान योगी, राधेय, लक्ष्य वेध, समिधा, पावन खिंड, राजा रवि वर्मा।
कहानी : रूप महल, मधुमती, जाण, कणव, गंधाली, आलेख, कमोदिनी, कातक, मोरपंखी परछाइयाँ।
नाटक : कांचनमृण, उत्तराधिकार, अधूरा धन, पांगुलगाड़ा, ये बन्धन रेशमी, गरुड़ उड़ान, स्वामी, रामशास्त्री, तुम्हारा रास्ता अलग है, धूप की परछाईं।
फिल्म : रातें ऐसी रँगीं, सुनो मेरा सवाल, संगोली रायाण्णा (कन्नड़ में), नागिन।
मराठी साहित्य सम्मेलनों के कई बार अध्यक्ष चुने गए।
सम्मान : ‘स्वामी’ उपन्यास को सन् 1962 में महाराष्ट्र शासन पुरस्कार, सन् 1963 में हरिनारायण आप्टे पुरस्कार तथा सन् 1964 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने सन् 1973 में ‘पद्मश्री’ से विभूषित किया।
आजीवन लेखन और कृषि-कार्य से जुड़े रहे।
निधन : 6 मार्च, 1998
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