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प्रवासी भारतीयों में हिंदी की कहानी –
यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह हैं। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सम्मिलित किया है। लेखकों के साथ विचार विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहाँ प्रस्तुत लेखों का अन्तिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरन्तर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गयी हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किये। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिन्तक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नयी अवधारणाएँ सशक्त हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विख्यात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक सन्दर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अन्त में प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।
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Description
प्रवासी भारतीयों में हिंदी की कहानी –
यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह हैं। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सम्मिलित किया है। लेखकों के साथ विचार विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहाँ प्रस्तुत लेखों का अन्तिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरन्तर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गयी हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किये। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिन्तक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नयी अवधारणाएँ सशक्त हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विख्यात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक सन्दर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अन्त में प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।
About Author
डॉ. सुरेन्द्र गंभीर -
यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया, कॉरनेल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कान्सिन में अध्यापन कार्य (1973-2008)। सम्प्रति सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्राचार्य यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया से भाषा-विज्ञान में पीएचडी। अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज़ भाषा-समिति के भूतपूर्व अध्यक्ष और भारत में 13 विभिन्न भाषा कार्यक्रमों के निदेशक। पैन-इन-इंडिया स्टडी-अबरॉड कार्यक्रम के भूतपूर्व संस्थापक निदेशक। अमेरिका में अनेक भाषा से सम्बन्धित कार्यक्रमों के सलाहकार। अमेरिका, चैक रिपब्लिक, मॉरीशस तथा भारत में अनेक संगोष्ठियों में बीज-वक्ता। गयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, मॉरीशस, भारत और अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के बीच फ़ील्ड-वर्क, शोध और लेखन। सामाजिक भाषा-विज्ञान, प्रवासी भारतीय समाज, विदेशी भाषा अधिग्रहण, व्यावसायिक भाषा, संस्कृत साहित्य, हिन्दू माइथोलॉजी, भारतीय दर्शन विषयों में विशेषज्ञता और प्रकाशन। सात पुस्तकें और सौ से अधिक शोध लेख। अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों से सम्मानित। विश्व हिंदी सम्मेलन, न्यूयार्क (2007) में और वर्ष 2012 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित। फ़िलाडेल्फ़िया (अमेरिका) में सपरिवार स्थायी निवास। लेखिका - डॉ. वशिनी शर्मा -
केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्राचार्य। उस्मानिया यूनिवर्सिटी (आन्ध्र प्रदेश) और क.मु. विद्यापीठ (आगरा) में शिक्षा। 40 वर्षों तक भारतीय और विदेशी छात्रों को हिंदी अध्यापन। बालभाषा विकास, वाक्-चिकित्सा, व्यावसायिक हिंदी, भाषा-प्रौद्योगिकी, ई-लर्निंग, हिंदी अनुसृजन विषयों में विशेषज्ञता। हिंदी शिक्षक बन्धु, गूगल समूह लिस्ट सर्व की संयोजक। अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता, प्रस्तुति और शोध-आधारित प्रकाशन।
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