Nishkasan (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Doodhnath Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
Author:
Doodhnath Singh
Language:
Hindi
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Hardback

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…’दाँये देखना ठीक नहीं। ‘गुरू जी ने कहा।’
और अगर दाँये गड्‌ढा-गुड्ढी हो तो गुरू जी?’
तो ज़्यादा बाँयें झुक जाओ।’ गुरू जी बोले।
‘और अगर उधर भी हो तो?’
‘तो आगे-पीछे हो जाओ।’
‘और आगे-पीछे भी हो तो?’
‘तो सवाल यह होगा कि तुम उस सुरक्षित, विचारहीन जगह पर पहुँचे ही कैसे?’ गुरू जी ने कहा।
‘यही तो मेरी भी समझ में नहीं आता गुरू जी!’
 
…’मान लीजिये आपकी बेटी है तब? मुफ़्ती की बेटी थी तब? तब तो सारा प्रशासन सिर के बल खड़ा हो गया था! अपहरण और आपूर्ति में ज़्यादा फ़र्क नहीं है पंडित जी! दोनों में अनिच्छित शोषण है। दोनों में हिंसा है। जबर्दस्त शारीरिक और मानसिक अपमान है। दोनों में बल-प्रयोग है, सिर्फ़ उसके तरीके में अन्तर है। दोनों में फिरौती है–एक में प्रत्यक्ष, दूसरे में परोक्ष। आप क्या समझते हैं, जो देवी जी वहाँ प्रतिष्ठित पद पर आसीन हैं और इस कुकर्म में लिप्त हैं उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं होगा? सिर्फ़ एक घिनौने मज़े के लिए वे ऐसा करती होंगी?…लेकिन नहीं, किसी खटिक की बेटी होने का क्या मतलब? उसे नरक में डालो और हँसो। या उसे आपकी तरह ‘अन्य मामलों’ के घूरे पर डालकर रफ़ा-दफ़ा कर दो। ‘महामहिम खाँसने लगे।’
 
…कटुए, क्रिश्चियन और कम्यूनिस्ट, तीनों देशद्रोही हैं–अन्तत: यह उनका और उनकी पार्टी का खुला-छिपा राजनैतिक नारा है।
 
…’यह कम्यूनिस्टों की साजिश है सर! ‘कुलपति ने कहा। महामहिम ने पीछे खड़े अपने प्रमुख सचिव को देखा, जैसे कह रहे हों, उस दिन लॉन में टहलते हुए मैंने आपको बेकार ही डाँटा था।
 
‘ये फ़ाइल है सर।’ कुलपति ने फ़ाइल प्रमुख सचिव की ओर बढ़ायी। ‘नहीं, उसकी अब कोई ज़रूरत नहीं।’ महामहिम ने हाथ के इशारे से मना किया।

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…’दाँये देखना ठीक नहीं। ‘गुरू जी ने कहा।’
और अगर दाँये गड्‌ढा-गुड्ढी हो तो गुरू जी?’
तो ज़्यादा बाँयें झुक जाओ।’ गुरू जी बोले।
‘और अगर उधर भी हो तो?’
‘तो आगे-पीछे हो जाओ।’
‘और आगे-पीछे भी हो तो?’
‘तो सवाल यह होगा कि तुम उस सुरक्षित, विचारहीन जगह पर पहुँचे ही कैसे?’ गुरू जी ने कहा।
‘यही तो मेरी भी समझ में नहीं आता गुरू जी!’
 
…’मान लीजिये आपकी बेटी है तब? मुफ़्ती की बेटी थी तब? तब तो सारा प्रशासन सिर के बल खड़ा हो गया था! अपहरण और आपूर्ति में ज़्यादा फ़र्क नहीं है पंडित जी! दोनों में अनिच्छित शोषण है। दोनों में हिंसा है। जबर्दस्त शारीरिक और मानसिक अपमान है। दोनों में बल-प्रयोग है, सिर्फ़ उसके तरीके में अन्तर है। दोनों में फिरौती है–एक में प्रत्यक्ष, दूसरे में परोक्ष। आप क्या समझते हैं, जो देवी जी वहाँ प्रतिष्ठित पद पर आसीन हैं और इस कुकर्म में लिप्त हैं उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं होगा? सिर्फ़ एक घिनौने मज़े के लिए वे ऐसा करती होंगी?…लेकिन नहीं, किसी खटिक की बेटी होने का क्या मतलब? उसे नरक में डालो और हँसो। या उसे आपकी तरह ‘अन्य मामलों’ के घूरे पर डालकर रफ़ा-दफ़ा कर दो। ‘महामहिम खाँसने लगे।’
 
…कटुए, क्रिश्चियन और कम्यूनिस्ट, तीनों देशद्रोही हैं–अन्तत: यह उनका और उनकी पार्टी का खुला-छिपा राजनैतिक नारा है।
 
…’यह कम्यूनिस्टों की साजिश है सर! ‘कुलपति ने कहा। महामहिम ने पीछे खड़े अपने प्रमुख सचिव को देखा, जैसे कह रहे हों, उस दिन लॉन में टहलते हुए मैंने आपको बेकार ही डाँटा था।
 
‘ये फ़ाइल है सर।’ कुलपति ने फ़ाइल प्रमुख सचिव की ओर बढ़ायी। ‘नहीं, उसकी अब कोई ज़रूरत नहीं।’ महामहिम ने हाथ के इशारे से मना किया।

About Author

दूधनाथ सिंह

जन्म : 17 अक्टूबर, 1936; उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के एक छोटे-से गाँव सोबन्धा में।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

कुछ दिनों (1960-62) तक कलकत्ता में अध्यापन। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग में।

लेखन की शुरुआत सन् 1960 के आसपास।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘आख़िरी कलाम’, ‘निष्कासन’ (उपन्यास); ‘सपाट चेहरे वाला आदमी’, ‘सुखान्त’, ‘प्रेमकथा का अन्त न कोई’, ‘माई का शोकगीत’, ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’, ‘तू फ़ू’ (कहानी-संग्रह); ‘कथा समग्र’ (सम्पूर्ण कहानियाँ); ‘नमो अंधकारं’ (आख्यान); ‘यमगाथा’ (नाटक); ‘अपनी शताब्दी के नाम’, ‘एक और भी आदमी है’,  ‘तुम्हारे लिए’, ‘युवा ख़ुशबू’, ‘एक अनाम कवि की कविताएँ’ (प्रस्तुति)(कविता-संग्रह); ‘सुरंग से लौटते हुए’ (लम्बी कविता); ‘निराला : आत्महन्ता आस्था’ (निराला की कविताओं पर एक सम्पूर्ण किताब); ‘लौट आ, ओ धार!’ (संस्मरण); ‘कहा-सुनी’ (साक्षात्कार और आलोचना); ‘महादेवी’ (महादेवी की सम्पूर्ण रचनाओं पर एक किताब)।

सम्पादन : ‘तारापथ’ (सुमित्रानन्दन पंत की कविताओं का संचयन), ‘दो शरण’ (निराला की भक्ति कविताओं का संचयन), ‘भुवनेश्वर समग्र’, ‘एक शमशेर भी है’, ‘चार यार : आठ कहानियाँ’।

अनुवाद : अंग्रेज़ी, जर्मन, मराठी, मलयालम, पंजाबी, गुजराती तथा बांग्ला भाषाओं में कहानियों, उपन्यासों तथा नाटकों का अनुवाद।

निधन: 12 जनवरी, 2018

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