SaleHardback
Nishant Ke Sahyatri
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कुर्रतुलेन हैदर अनुवाद असगर वजाहत
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कुर्रतुलेन हैदर अनुवाद असगर वजाहत
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9788126319107
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
356
निशान्त के सहयात्री –
1989 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित देश की प्रख्यात कथाकार क़ुर्रतुलऐन हैदर का उपन्यास ‘आख़िर-ए-शब के हमसफ़र’ एक उर्दू क्लासिक माना जाता है; ‘निशान्त के सहयात्री’ उसका हिन्दी रूपान्तर है।
‘आग का दरिया’ और ‘कारे जहाँ दराज़’ जैसे उपन्यासों की लेखिका की कृतियों में ऐतिहासिक अहसास व सामाजिक चेतना के विकास का अनूठा सम्मिश्रण है। ‘निशान्त के सहयात्री’ में यही अहसास और चेतना बहुत गाढ़ी हो गयी है। यद्यपि यह उपन्यास केवल 33 वर्षों (1939-72) की छोटी-सी अवधि में ही हमारी ऐतिहासिक और सामाजिक परम्पराओं की विशालता को एक पैने दृष्टिकोण से अपने में समोता है। कहानी 1939 में पूर्वी भारत के एक प्रसिद्ध नगर से आरम्भ होती है। पर वास्तव में यह पाँच परिवारों— दो हिन्दू, एक मुसलमान, एक भारतीय ईसाई और एक अंग्रेज़— का इतिहास है जो आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस समय के क्रान्तिकारी परिवर्तन ने जन-सामान्य की मानसिकता, उसके नैतिक मूल्य, आदर्श और उद्देश्य के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित किया। इस सबका बड़ा वास्तविक चित्रण इस उपन्यास में है पर मानवीय संवेदना के साथ। उपन्यास के शिल्प ने कहानी की वास्तविकता और जीवन्तता के सम्मिश्रण को और भी प्रखर करके जो रस का संचार किया है वही इस कृति की विशेष उपलब्धि है।
प्रस्तुत है इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास का एक और नया संस्करण।
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Description
निशान्त के सहयात्री –
1989 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित देश की प्रख्यात कथाकार क़ुर्रतुलऐन हैदर का उपन्यास ‘आख़िर-ए-शब के हमसफ़र’ एक उर्दू क्लासिक माना जाता है; ‘निशान्त के सहयात्री’ उसका हिन्दी रूपान्तर है।
‘आग का दरिया’ और ‘कारे जहाँ दराज़’ जैसे उपन्यासों की लेखिका की कृतियों में ऐतिहासिक अहसास व सामाजिक चेतना के विकास का अनूठा सम्मिश्रण है। ‘निशान्त के सहयात्री’ में यही अहसास और चेतना बहुत गाढ़ी हो गयी है। यद्यपि यह उपन्यास केवल 33 वर्षों (1939-72) की छोटी-सी अवधि में ही हमारी ऐतिहासिक और सामाजिक परम्पराओं की विशालता को एक पैने दृष्टिकोण से अपने में समोता है। कहानी 1939 में पूर्वी भारत के एक प्रसिद्ध नगर से आरम्भ होती है। पर वास्तव में यह पाँच परिवारों— दो हिन्दू, एक मुसलमान, एक भारतीय ईसाई और एक अंग्रेज़— का इतिहास है जो आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस समय के क्रान्तिकारी परिवर्तन ने जन-सामान्य की मानसिकता, उसके नैतिक मूल्य, आदर्श और उद्देश्य के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित किया। इस सबका बड़ा वास्तविक चित्रण इस उपन्यास में है पर मानवीय संवेदना के साथ। उपन्यास के शिल्प ने कहानी की वास्तविकता और जीवन्तता के सम्मिश्रण को और भी प्रखर करके जो रस का संचार किया है वही इस कृति की विशेष उपलब्धि है।
प्रस्तुत है इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास का एक और नया संस्करण।
About Author
क़ुर्रतुलऐन हैदर (1927-2007) -
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और साहित्य अकादेमी की 'फ़ेलो' उर्दू की महान कथाकार क़ुर्रतुलऐन हैदर को साहित्यिक सृजनात्मकता विरासत में मिली। उनके पिता सज्जाद हैदर यल्दराम और माँ नज़र सज्जाद हैदर दोनों ही उर्दू के विख्यात लेखक थे। लगभग 35 वर्ष पहले उनके क्लासिक उपन्यास 'आग का दरिया' का जिस धूमधाम से स्वागत हुआ था उसकी गूँज आज तक सुनाई पड़ती है। इसके बाद उनके कई उपन्यास और निकले जिनमें उनकी मानवीय संवेदना प्रखर होती गयी। उनके उपन्यास सामान्यतः हमारे लम्बे इतिहास की पृष्ठभूमि में आधुनिक जीवन की जटिल परिस्थितियों को अपने में समाये हुए, समय के साथ बदलते मानव-सम्बन्धों के जीते-जागते दस्तावेज़ हैं।
उपन्यासों के अतिरिक्त उनके 4 कहानी-संग्रह और 4 उपन्यासिकाएँ भी उनकी संवेदनशीलता और शिल्प-सौष्ठव के परिचायक हैं। उनके कहानी-संग्रह 'पतझड़ की आवाज़' पर उन्हें साहित्य अकादेमी ने सम्मानित किया। विभिन्न भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त क़ुर्रतुलऐन हैदर की रचनाएँ अनेक विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हो चुकी हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित कृतियाँ: 'चाँदनी बेगम', 'निशान्त के सहयात्री' और 'यह दाग़ दाग़ उजाला'।
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