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Nirkhe Vahi Nazar (PB)
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इस समय भारतीय-कला जगत् में जो मूर्धन्य सक्रिय हैं उनमें गुलाममोहम्मद शेख़ ऊँचा स्थान रखते हैं। वे कला-मूर्धन्य होने के साथ-साथ गुजराती में एक बहुमान्य कवि और कला-चिन्तक भी हैं। बरसों उन्होंने वडोदरा विश्वविद्यालय के कलासंकाय में कला-इतिहास का लोकप्रिय और प्रभावशील अध्यापन भी किया है। इसलिए भी उनकी दृष्टि गहरे इतिहास-बोध में रसी-पगी है। इस पुस्तक में उन्होंने एक बड़े वितान पर गहरा विचार किया है। कला के बारे में गुलाम शेख के लेखक में चित्रकार-मन, कवि-मन और इतिहासकार सब एकमेक हैं और इस रसायन से जो अन्तर्दृष्टि वे रचते हैं वह हमें कला के इतिहास, स्वयं कला और उसके विभिन्न पहलुओं पर, कई मूर्धन्य कलाकारों पर साफ़ दिमाग़ और खुली नज़र से सोचने की उत्तेजना देती है। परम्परा, आधुनिकता, भारतीय बहुलता, सृजन-प्रकिया, जीवन, यात्रा, कला से आशा आदि के बारे में यह ऐसी नज़र है जो निरखती है और उस निरखन को हम आत्मसात् कर स्वयं अपनी नज़र गढ़ें इसके लिए उत्साहित करती है। कला पर इस अनूठी पुस्तक को हिन्दी अनुवाद में रज़ा फ़ाउंडेशन उत्साहपूर्वक प्रस्तुत करने में प्रसन्नता महसूस कर रहा है।
—अशोक वाजपेयी
इस समय भारतीय-कला जगत् में जो मूर्धन्य सक्रिय हैं उनमें गुलाममोहम्मद शेख़ ऊँचा स्थान रखते हैं। वे कला-मूर्धन्य होने के साथ-साथ गुजराती में एक बहुमान्य कवि और कला-चिन्तक भी हैं। बरसों उन्होंने वडोदरा विश्वविद्यालय के कलासंकाय में कला-इतिहास का लोकप्रिय और प्रभावशील अध्यापन भी किया है। इसलिए भी उनकी दृष्टि गहरे इतिहास-बोध में रसी-पगी है। इस पुस्तक में उन्होंने एक बड़े वितान पर गहरा विचार किया है। कला के बारे में गुलाम शेख के लेखक में चित्रकार-मन, कवि-मन और इतिहासकार सब एकमेक हैं और इस रसायन से जो अन्तर्दृष्टि वे रचते हैं वह हमें कला के इतिहास, स्वयं कला और उसके विभिन्न पहलुओं पर, कई मूर्धन्य कलाकारों पर साफ़ दिमाग़ और खुली नज़र से सोचने की उत्तेजना देती है। परम्परा, आधुनिकता, भारतीय बहुलता, सृजन-प्रकिया, जीवन, यात्रा, कला से आशा आदि के बारे में यह ऐसी नज़र है जो निरखती है और उस निरखन को हम आत्मसात् कर स्वयं अपनी नज़र गढ़ें इसके लिए उत्साहित करती है। कला पर इस अनूठी पुस्तक को हिन्दी अनुवाद में रज़ा फ़ाउंडेशन उत्साहपूर्वक प्रस्तुत करने में प्रसन्नता महसूस कर रहा है।
—अशोक वाजपेयी
About Author
गुलाममोहम्मद शेख
जन्म : 1937 सुरेन्द्रनगर (गुजरात)। शिक्षा : एम.ए. (फाइन), महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी, वडोदरा 1961 : ए.आर. सी.ए., रॉयल कॉलेज ऑफ़ आर्ट, लन्दन, 1966। अध्यापन : कला का इतिहास, महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी, 1961-63 और 1967-81, चित्रकला, वहीं 1982-93।
अतिथि कलाकार : आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो 1987 और 2002; चिवितेल्ला रानियेरी सेंटर, उम्बेरटिडे, इटली 1998, यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया, अमरिका 2000; मोन्ताल्वो, केलिर्फोनिया, अमरिका 2005; फेलो, दिल्ली यूनिवर्सिटी, 2004।
चित्र-प्रदशर्नियाँ देश-विदेश में 1961 से 2020 : विशेष प्रदर्शनी 1968 से 1985 तक के चित्रों में से पच्चीस चुने हुए चित्र, ज्योर्ज पोम्पीदू सेंटर, पैरिस 1985। संयोजक : कुमार स्वामी शताब्दी सेमिनार, नयी दिल्ली, 1977। कला-विषयक व्याख्यान देश-विदेश में। 2013 में छह अमरिकी विश्वविद्यालयों की व्याख्यान-यात्रा।
पुस्तकें : गुजराती : कविता-संग्रह 'अथवा' (1974) और 'अथवा अने' (2013), 'निरखे ते नजर' (2016), स्मरण-कथायें : 'घेर जतां' (2015), और विश्व-कला का इतिहास (सम्पादन शिरीष पंचाल के साथ), 'दृश्यकला, 1996' वगैरह।
सम्मान : 'कालिदास सम्मान' (2002), 'रविशंकर रावल पुरस्कार', (1997-1999), 'रवि वर्मा पुरस्कारम्' (2009), 'पद्मश्री' (1983), 'पद्मभूषण' (2014)।
ई-मेल : gmsheikh@gmail.com
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