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Mitho Paani Khaaro Paani

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
जया जादवानी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
जया जादवानी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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Book Type

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ISBN:
SKU 9789326351409 Category
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Page Extent:
272

मिठो पाणी खारो पाणी –
प्रस्तुत उपन्यास ‘मिठो पाणी खारो पाणी’ सिन्ध के पाँच हज़ार साल के इतिहास को छोटे-छोटे टुकड़ों में सँजोकर उत्तर-आधुनिक पैश्टिच शिल्प में लिखा गया है —जहाँ इतिहास, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, सांस्कृतिक इतिहास आदि विभिन्न विधाओं की आवाजाही एवं अन्तःसम्बद्धता बनी रहती है। पोस्ट माडर्निस्ट इंटरटेक्स्चुअलिटी की तरह इसकी यही विशेषता इसे हिन्दी भाषा में उत्तर हिस्टयोग्राफ़िक आधुनिक उपन्यासों की श्रेणी का मेटाफिक्शन की मान्यता प्रदान करता है। इसकी यही विशेषता एवं शक्ति इतिहास में जाकर अपने समय एवं सत्ता को न सिर्फ़ ललकारती है वरन उसे मुठभेड़ की चुनौती भी पेश करती है।
मिठो पानी ‘सिन्धु नदी’ से खारो पानी ‘अरब सागर’ तक की यह यात्रा एक दिलचस्प भौगोलिक यात्रा तो है ही, एक पूरी संस्कृति और सभ्यता को दर्शाने वाली आन्तरिक यात्रा भी है। यह कृति इस पूरी सभ्यता की कई सहस्राब्दियों के जन-इतिहास एवं लोक-चेतना को रेखांकित करती हुई एक अविरल हिन्दुस्तानी सभ्यता एवं संस्कृति की समीक्षा के साथ-साथ इसे एक नया अर्थ एवं आयाम देती है।
जया जादवानी ने सिन्धु नदी को उसकी सम्पूर्ण ऐतिहासिकता, मिथ और लोक-चेतना में व्याप्त उसके सम्पूर्ण सन्दर्भों सहित नायकत्व प्रदान किया है।
एक सर्वथा पठनीय कृति।

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Description

मिठो पाणी खारो पाणी –
प्रस्तुत उपन्यास ‘मिठो पाणी खारो पाणी’ सिन्ध के पाँच हज़ार साल के इतिहास को छोटे-छोटे टुकड़ों में सँजोकर उत्तर-आधुनिक पैश्टिच शिल्प में लिखा गया है —जहाँ इतिहास, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, सांस्कृतिक इतिहास आदि विभिन्न विधाओं की आवाजाही एवं अन्तःसम्बद्धता बनी रहती है। पोस्ट माडर्निस्ट इंटरटेक्स्चुअलिटी की तरह इसकी यही विशेषता इसे हिन्दी भाषा में उत्तर हिस्टयोग्राफ़िक आधुनिक उपन्यासों की श्रेणी का मेटाफिक्शन की मान्यता प्रदान करता है। इसकी यही विशेषता एवं शक्ति इतिहास में जाकर अपने समय एवं सत्ता को न सिर्फ़ ललकारती है वरन उसे मुठभेड़ की चुनौती भी पेश करती है।
मिठो पानी ‘सिन्धु नदी’ से खारो पानी ‘अरब सागर’ तक की यह यात्रा एक दिलचस्प भौगोलिक यात्रा तो है ही, एक पूरी संस्कृति और सभ्यता को दर्शाने वाली आन्तरिक यात्रा भी है। यह कृति इस पूरी सभ्यता की कई सहस्राब्दियों के जन-इतिहास एवं लोक-चेतना को रेखांकित करती हुई एक अविरल हिन्दुस्तानी सभ्यता एवं संस्कृति की समीक्षा के साथ-साथ इसे एक नया अर्थ एवं आयाम देती है।
जया जादवानी ने सिन्धु नदी को उसकी सम्पूर्ण ऐतिहासिकता, मिथ और लोक-चेतना में व्याप्त उसके सम्पूर्ण सन्दर्भों सहित नायकत्व प्रदान किया है।
एक सर्वथा पठनीय कृति।

About Author

जया जादवानी - जन्म: 1 मई, 1959, कोतमा, ज़िला शहडोल (म.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी) और (मनोविज्ञान)। जीवन के रहस्यों और दुर्लभ पुस्तकों का अध्ययन। यायावरी दर्शन और मनोविज्ञान में विशेष रुचि। प्रकाशित कृतियाँ: 'मैं शब्द हूँ', 'अनन्त सम्भावनाओं के बाद भी', 'उठता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य' (कविता संग्रह); 'मुझे ही होना है बार-बार', 'अन्दर के पानियों में कोई सपना काँपता है', 'उससे पूछो', 'मैं अपनी मिट्टी में खड़ी हूँ काँधे पे अपना हल लिये' (कहानी-संग्रह); 'तत्त्वमसि', 'कुछ न कुछ छूट जाता है' (उपन्यास)। 'अन्दर के पानियों में कोई सपना काँपता है' पर इंडियन क्लासिकल के अन्तर्गत एक टेलीफ़िल्म का निर्माण भी। अनेक रचनाओं का अंग्रेज़ी, उर्दू, पंजाबी, उड़िया, अरबी, सिन्धी, मराठी और बांग्ला भाषाओं में अनुवाद। पुरस्कार/सम्मान: 'मुक्तिबोध सम्मान' तथा कहानियों पर गोल्ड मैडल।

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